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मातृभाषा आदमी के संस्कारों की संवाहक

डॉ.धारा बल्लभ पाण्डेय’आलोक’
अल्मोड़ा(उत्तराखंड)

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अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस स्पर्धा विशेष….

मातृभाषा शब्द की पृष्ठभूमि-
मातृ शब्द का अर्थ माँ और मातृभाषा का शाब्दिक अर्थ माता की भाषा होता है, परंतु मातृभाषा शब्द की पृष्ठभूमि पर जाएं तो ज्ञात होता है कि मातृभाषा शब्द बहुत पुराना नहीं है,मगर इसकी व्याख्या करते हुए लोग अक्सर इसे बहुत प्राचीन मान लेते हैं। हिन्दी का मातृभाषा शब्द अंग्रेजी के ‘मदरटंग’ मुहावरे का शाब्दिक अनुवाद है। चूँकि बच्चे का शैशव जहाँ बीतता है,उस माहौल में ही जननी भाव है। जिस परिवेश में वह गढ़ा जा रहा है,जिस भाषा के माध्यम से वह अन्य भाषाएं सीख रहा है,जहाँ विकसित-पल्लवित हो रहा है,वहीं उसकी मातृभाषा है।
हिन्दी के संदर्भ में इसका उद्भव बांग्लाभाषा और बांग्ला परिवेश से हुआ था। अंग्रेजी राज में जिस कालखंड को पुनर्जागरण काल कहा जाता है उसका आशय बंगाल भूमि से ही है। राजा राममोहन राय,ईश्वरचंद्र विद्यासागर जैसे उदार राष्ट्रवादियों के सहयोग से अंग्रेजों द्वारा शिक्षा प्रसार किया गया।
हर काल में शासक वर्ग की भाषा ही शिक्षा और राजकाज का माध्यम रही है। मुस्लिम दौर में अरबी-फारसी शिक्षा का माध्यम थी। यह अलग बात है कि अरबी-फारसी में शिक्षा ग्रहण करना आम भारतीय के लिए राजकाज और प्रशासनिक परिवेश को जानने में तो मदद करता था, मगर सुदूर पश्चिम में जो वैचारिक क्रांति हो रही थी उसे हिन्दुस्तान में लाने में अरबी-फारसी भाषाएं सहायक नहीं हो रही थी।
मदर टंग बांग्ला शब्द है और इसका अभिप्राय भी बांग्ला से ही था। तत्कालीन समाज सुधारक चाहते थे कि आम आदमी के लिए मातृभाषा बांग्ला भाषा में आधुनिक शिक्षा दी जाए। आधुनिक मदरसों की शुरूआत भी बंगाल से ही मानी जाती है।
मातृभाषा शब्द की प्राचीनता स्थापित करनेवाले ऋग्वेदकालीन एक सुभाषित का अक्सर हवाला दिया जाता है-‘मातृभाषा, मातृ संस्कृति और मातृभूमि ये तीनों सुखकारिणी देवियाँ स्थिर होकर हमारे हृदयासन पर विराजें।’ ‘इला सरस्वती मही तिस्त्रो देवीर्मयोभुवः।’
यहाँ तथ्य स्पष्ट है कि वैदिक सूक्त में कहीं भी मातृभाषा शब्द का उल्लेख नहीं मिलता है। ‘इला’ और ‘महि’ शब्दों का अनुवाद जहां संस्कृति, मातृभूमि किया है वहीं ‘सरस्वती’ का अनुवाद ‘मातृभाषा’ किया गया है। मातृभाषा का जो वैश्विक भाव है उसके तहत तो यह सही है मगर मातृभाषा का रिश्ता जन्मदायिनी माता के स्थूल रूप से जो़ड़ने से यह साबित नहीं कर पाएंगे कि सरस्वती का अर्थ मातृभाषा हो सकता है? यहाँ सरस्वती शब्द से अभिप्राय सिर्फ वाक् शक्ति से है,भाषा से है।
विद्वानों का मानना है कि वेदकालीन भारत में निश्चित ही कई तरह की प्राकृत भाषाएं प्रचलित थीं। आज की बांग्ला,मराठी, मैथिली,अवधी जैसी बोलियाँ इन्हीं प्राकृतों से विकसित हुई। तात्पर्य यह है कि ये विभिन्न प्राकृत भाषाएं ही अपने-अपने परिवेश में मातृभाषा का दर्जा रखती होंगी और विभिन्न जनसमूहों में बोली जाने वाली इन्ही भाषाओं के बारे में उक्त सूक्त में सरस्वती शब्द का उल्लेख आया है। अत: मातृभाषा में मातृशब्द से अभिप्राय उस परिवेश,स्थान, समूह में बोली जाने वाली भाषा से है जिसमें रहकर कोई भी व्यक्ति अपने बाल्यकाल में दुनिया के सम्पर्क में आता है।
स्पष्ट है कि मातृभाषा से तात्पर्य उस भाषा से बिल्कुल नहीं है जिसे जन्मदायिनी माँ बोलती रही है। केवल माँ की भाषा को मातृभाषा से जोड़ना पूर्णतया उचित नहीं ठहराया जा सकता है। मातृसत्ताक और पितृसत्ताक के दायरे से बाहर आकर देखें तो भी बच्चे का शैशव जहाँ बीतता है,उस माहौल में ही जननी भाव है। जिस परिवेश में वह गढ़ा जा रहा है,जिस भाषा के माध्यम से वह अन्य भाषाएं सीख रहा है,जहाँ विकसित-पल्लवित हो रहा है,वही महत्वपूर्ण है। यही उसका मातृ-परिवेश कहलाएगा। मातृभाषा आदमी के संस्कारों की संवाहक है। मातृभाषा के बिना किसी भी देश की संस्कृति की कल्पना अनुचित है।
इतिहास एवं मनाने का उद्देश्य-
‘यूनेस्को’ द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की घोषणा से बांग्लादेश के भाषा आन्दोलन दिवस को अन्तर्राष्ट्रीय स्वीकृति मिली,जो बांग्लादेश में सन १९५२ से मनाया जाता रहा है। बांग्लादेश में इस दिन एक राष्ट्रीय अवकाश होता है। २००८ को अन्तर्राष्ट्रीय भाषा वर्ष घोषित करते हुए, संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के महत्व को फिर महत्त्व दिया था। सन् २००० में इस दिन को संयुक्त राष्ट्र ने अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस घोषित किया था। २१ फरवरी १९५२ को ढाका विवि के विद्यार्थियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने तत्कालीन पाकिस्तान सरकार की भाषायी नीति का कड़ा विरोध जताते हुए अपनी मातृभाषा का अस्तित्व बनाए रखने के लिए विरोध प्रदर्शन किया। पाकिस्तान की पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर गोलियां बरसानी शुरू कर दीं लेकिन लगातार विरोध के बाद सरकार को बांग्ला भाषा को आधिकारिक दर्जा देना पड़ा। आंदोलन में शहीद हुए युवाओं की स्मृति में यूनेस्को ने पहली बार १९९९ में २१ फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी। मनाने का उद्देश्य है भाषाओं और भाषाई विविधता को बढ़ावा देना है। इस साल उन्नीसवें मातृभाषा दिवस की विषय वस्तु-विकास,शांति और संधि में देशज भाषाओं को महत्व देना है। भाषा की मनुष्य के जीवन में अहम भूमिका है। भाषा के माध्यम से ही देश ही नहीं, बल्कि विदेशों के साथ संवाद स्थापित किया जा सकता है।
कुल भाषाएं लगभग ६९००-
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार-विश्व में बोली जाने वाली कुल भाषाएं लगभग ६९०० है। इनमें से ९० फीसद भाषाएं बोलने वालों की संख्या १ लाख से कम है। दुनिया की कुल आबादी में तकरीबन ६० फीसद लोग ३० प्रमुख भाषाएं बोलते हैं,जिनमें से १० सर्वाधिक बोले जानी वाली भाषाओं में जापानी ,अंग्रेजी,रूसी,बांग्ला,पुर्तगाली,अरबी,पंजाबी,हिंदी,
मंदारिन,और स्पैनिश है।
दिवस और हिंदी-
भारतीय संविधान निर्माताओं की आकांक्षा थी कि स्वतंत्रता के बाद भारत का शासन अपनी भाषाओं में चले,ताकि आम जनता शासन से जुड़ी रहे और समाज में सबकी प्रगति हो सके। यह भी सच है कि इस प्रगति का लाभ देश की आम जनता तक पूरी तरह पहुँच नहीं पा रहा है। इसके कारणों की तरफ़ जब हम दृष्टि डालते हैं तो पाते हैं कि शासन जनता तक उसकी भाषा पहुँचाने में अभी तक क़ामयाब नहीं हैं। यह एक प्रमुख कारण है। अन्तर्राष्ट्रीय मानचित्र पर अंग्रेज़ी के प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता,किन्तु वैश्विक दौड़ में आज हिन्दी कहीं भी पीछे नहीं है। यह सिर्फ़ बोलचाल की भाषा ही नहीं,बल्कि सामान्य काम से लेकर इंटरनेट तक के क्षेत्र में इसका प्रयोग बख़ूबी हो रहा है। हमें यह अपेक्षा अवश्य है कि शासकीय कार्यालयों में सभी कामकाज हिन्दी में हो। हर क्षेत्र में भी निर्धारित प्रतिशत के अनुसार हिन्दी का प्रयोग होता रहे।
हिन्दी ने हमें विश्व में एक नई पहचान दिलाई है। हिन्दी विश्व में बोली जाने वाली प्रमुख भाषाओं में से एक है। विश्व की प्राचीन, समृद्ध और सरल भाषा होने के साथ-साथ हिन्दी हमारी ’राष्ट्रभाषा’ भी है। वह दुनियाभर में हमें सम्मान भी दिलाती है। यह भाषा हमारे सम्मान,स्वाभिमान और गर्व की है। हिन्दी भाषा विश्व में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली तीसरी भाषा है।
अंतरराष्ट्रीय मातृभाषाओं में हिन्दी का महत्व-
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धीरे-धीरे हिन्दी भाषा का प्रचलन बढ़ता जा रहा है और इस भाषा ने राष्ट्रभाषा का रूप ले लिया है। अब हमारी राष्ट्रभाषा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बहुत पसंद की जाती है। इसका एक कारण यह है कि हमारी भाषा हमारे देश की संस्कृति और संस्कारों का प्रतिबिंब है। आज विश्व के कोने-कोने से विद्यार्थी हमारी भाषा और संस्कृति को जानने के लिए हमारे देश का रुख कर रहे हैं। एक हिंदुस्तानी को कम से कम अपनी भाषा यानी हिन्दी तो आनी ही चाहिए,साथ ही हमें हिन्दी का सम्मान भी करना सीखना होगा। राष्ट्रभाषा किसी भी देश की पहचान और गौरव होती है। हिन्दी हिंदुस्तान को बांँधती है।
भारत विविध संस्कृति और भाषा का देश रहा है। सन् १९६१ की जनगणना के अनुसार भारत में १६५२ भाषाएं बोली जाती थी। वर्तमान भारत में फिलहाल १३६५ मातृभाषाएं हैं,जिनका क्षेत्रीय आधार अलग-अलग है। दूसरी लोकप्रिय हिंदी भाषा है। अन्य मातृभाषी लोगों के बीच भी हिंदी दूसरी भाषा के रूप में लोकप्रिय है।
छोटे भाषा समूह जब एक स्थान से दूसरे स्थान पर बसता है तो वे एक से अधिक भाषा बोलने-समझने में सक्षम हो जाते हैं।४३ करोड़ लोग देश में हिंदी बोलते हैं,इसमें १२ फीसद द्विभाषी है। हिंदी-मॉरीशस, त्रिनिदाद-टोबैगो,गुयाना और सूरीनाम की प्रमुख भाषा है,तो फिजी की सरकारी भाषा है।
भारत में १३६५ भाषाएं हैं,लेकिन हिंदी पहली मातृभाषा नहीं है। ‘कोस-कोस पर बदले पानी,चार कोस पर बानी’ ये कहावत मातृभाषा की महत्ता समझाने के लिए पर्याप्त है।
इस निमित्त अंतर्राष्ट्रीय दिवस पर अधिकतर विद्यालयों और महाविद्यालयों में इसके तहत रंगारंग कार्यक्रम एवं प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं। इसमें भाषण,वाद-विवाद,गायन,निबंध,लेखन प्रतियोगिता,चित्रकला प्रतियोगिता,संगीत और नाटकीय प्रदर्शन का भी आयोजन किया जाता है।

परिचय–डॉ.धाराबल्लभ पांडेय का साहित्यिक उपनाम-आलोक है। १५ फरवरी १९५८ को जिला अल्मोड़ा के ग्राम करगीना में आप जन्में हैं। वर्तमान में मकड़ी(अल्मोड़ा, उत्तराखंड) आपका बसेरा है। हिंदी एवं संस्कृत सहित सामान्य ज्ञान पंजाबी और उर्दू भाषा का भी रखने वाले डॉ.पांडेय की शिक्षा- स्नातकोत्तर(हिंदी एवं संस्कृत) तथा पीएचडी (संस्कृत)है। कार्यक्षेत्र-अध्यापन (सरकारी सेवा)है। सामाजिक गतिविधि में आप विभिन्न राष्ट्रीय एवं सामाजिक कार्यों में सक्रियता से बराबर सहयोग करते हैं। लेखन विधा-गीत, लेख,निबंध,उपन्यास,कहानी एवं कविता है। प्रकाशन में आपके नाम-पावन राखी,ज्योति निबंधमाला,सुमधुर गीत मंजरी,बाल गीत माधुरी,विनसर चालीसा,अंत्याक्षरी दिग्दर्शन और अभिनव चिंतन सहित बांग्ला व शक संवत् का संयुक्त कैलेंडर है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में बहुत से लेख और निबंध सहित आपकी विविध रचनाएं प्रकाशित हैं,तो आकाशवाणी अल्मोड़ा से भी विभिन्न व्याख्यान एवं काव्य पाठ प्रसारित हैं। शिक्षा के क्षेत्र में विभिन्न पुरस्कार व सम्मान,दक्षता पुरस्कार,राधाकृष्णन पुरस्कार,राज्य उत्कृष्ट शिक्षक पुरस्कार और प्रतिभा सम्मान आपने हासिल किया है। ब्लॉग पर भी अपनी बात लिखते हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-हिंदी साहित्य के क्षेत्र में विभिन्न सम्मान एवं प्रशस्ति-पत्र है। ‘आलोक’ की लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा विकास एवं सामाजिक व्यवस्थाओं पर समीक्षात्मक अभिव्यक्ति करना है। पसंदीदा हिंदी लेखक-सुमित्रानंदन पंत,महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’,कबीर दास आदि हैं। प्रेरणापुंज-माता-पिता,गुरुदेव एवं संपर्क में आए विभिन्न महापुरुष हैं। विशेषज्ञता-हिंदी लेखन, देशप्रेम के लयात्मक गीत है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का विकास ही हमारे देश का गौरव है,जो हिंदी भाषा के विकास से ही संभव है।”

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