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मैं हिंदी हूँ

सुलोचना परमार ‘उत्तरांचली
देहरादून( उत्तराखंड)
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अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस स्पर्धा विशेष….

भारत माँ के भाल चमकती
में वो बिंदी हूँ,
जो हिन्द देश का मान बढ़ाए
में वो हिंदी हूँ।

सदियों से मुझसे ही तो
ज्ञान की ज्योति जली है,
मेरी ही गोदी में छोटी
उर्दू बहिन पली है,
सभी भाषाएं मेरी सहेली
जिन्हें साथ लेकर चलती हूँ।
मैं हिंदी हूँ,मैं हिंदी हूँ…॥

मेरा ही परचम लहराया
विश्व में विद्वानों ने,
‘अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस’ पर
दिखती हूँ रचनाओं में,
मैं ही हूँ जो मंचों पर
सबकी शान बढ़ाती हूँ।
मैं हिंदी हूँ,मैं हिंदी हूँ…॥

प्यार-मुहब्बत दिल की धड़कन
मुझसे ही सहारा पाते हैं,
मेरी शरण में आकर ही वो
गीत प्यार के गाते हैं,
सबकी माँ के होंठों पर में
लोरी बन सज जाती हूँ।
मैं हिंदी हूँ,मैं हिंदी हूँ…॥

आए विदेशी इस धरती पर
अपनी-अपनी भाषा लेकर,
मेरा मान मर्दन करने को
अंग्रेजी वो आए लेकर
टूट नहीं सकती जो कभी
में वो खड़ी चट्टान हूँ।
मैं हिंदी हूँ,मैं हिंदी हूँ…॥

मैं खुद में खुद को सजाए हूँ
कंठ,तालव्य,मूर्धन्य,दांतीय,
ओष्ठ्य,अन्तस्थ,ऊष्मा सबकी
वैज्ञानिकता ओढ़े बिछाए हूँ,
आदिकाल ऋषियों ने सहेजा
अब तुम्हारी थाती हूँ।
मैं हिंदी हूँ,मैं हिंदी हूँ…॥

गौरव गाथा की ध्वज वाहक
प्राणवायु साहित्य की,
इंटरनेट के युग में भी में
आसमान की सीढ़ी हूँ,
मैं हिंदी हूँ,मैं हिंदी हूँ…॥

परिचय: सुलोचना परमार का साहित्यिक उपनाम ‘उत्तरांचली’ है,जिनका जन्म १२ दिसम्बर १९४६ में श्रीनगर गढ़वाल में हुआ है। आप सेवानिवृत प्रधानाचार्या हैं। उत्तराखंड राज्य के देहरादून की निवासी श्रीमती परमार की शिक्षा स्नातकोत्तर है। आपकी लेखन विधा कविता,गीत, कहानी और ग़ज़ल है। हिंदी से प्रेम रखने वाली `उत्तरांचली` गढ़वाली भाषा में भी सक्रिय लेखन करती हैं। आपकी उपलब्धि में वर्ष २००६ में शिक्षा के क्षेत्र में राष्ट्रीय सम्मान,राज्य स्तर पर सांस्कृतिक सम्मान,महिमा साहित्य रत्न-२०१६ सहित साहित्य भूषण सम्मान तथा विभिन्न श्रवण कैसेट्स में गीत संग्रहित होना है। आपकी रचनाएं कई पत्र-पत्रिकाओं में विविध विधा में प्रकाशित हुई हैं तो चैनल व आकाशवाणी से भी काव्य पाठ,वार्ता व साक्षात्कार प्रसारित हुए हैं। हिंदी एवं गढ़वाली में आपके ६ काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। साथ ही कवि सम्मेलनों में राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर शामिल होती रहती हैं। आपका कार्यक्षेत्र अब लेखन व सामाजिक सहभागिता हैL साथ ही सामाजिक गतिविधि में सेवी और साहित्यिक संस्थाओं के साथ जुड़कर कार्यरत हैं।

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