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कोरोना ने बदले सामाजिक दृश्य

संदीप सृजन
उज्जैन (मध्यप्रदेश) 
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दुनिया का दृश्य बदल गया है।`कोरोना` के कहर ने आधुनिकता की कमर तोड़ कर रख दी है। जो लोग पैसा पाने के लिए दौड़ लगा रहे थे,वे आज अपनी जान बचाने के लिए घरों में हैं। जो परिवार को समय नहीं दे पा रहे थे,वे चौबीसों घंटे परिवार के साथ हैं। जो पड़ोसियों से कभी नहीं मिले,वे एक-दूसरे का हाल पूछ रहे हैं। दूर के रिश्तेदार जिसने बात किए बरसों हो गए,उनसे सौहार्दपूर्वक कुशल क्षेम पूछी जा रही है। जिन्होंने कभी मानव सेवा के कार्यों में अपना योगदान नहीं दिया, वे वक्त की नजाकत को देखते हुए आगे आकर सेवा दे रहे हैं। जिस पुलिस का खौफ ही लोगों के बीच था,वही पुलिस सेवा कार्यों में दिन-रात लगी हुई है। जिसे आधुनिकता की चकाचौंध में आप और हम ‘पुरानी (ओल्ड) मानसिकता’ का जुमला देते आ रहे थे,वही मानसिकता आज महामारी के दौर में सोना(गोल्ड) बन गई है।
कोरोना के कारण आज पूरे विश्व में हाहाकार मचा हुआ है। ‘तालाबंदी’ कर इससे बचाव के प्रयास जारी हैं। कोरोना से बचाव के तरीकों और तालाबंदी के कारण हमारी जीवन-शैली में एक बड़ा परिवर्तन आया है। आज कारोबार,कार्यालय,शिक्षा,चिकित्सा हर क्षेत्र में हर कोई इस महामारी के बाद दुनिया के बदलावों के अनुरूप ढल रहा है। कोरोना ने समाज के रहन-सहन,खान-पान के ढंग,सामाजिक व्यवहार हर जगह एक बड़ा परिवर्तन ला दिया है।
सामाजिक जीवन में २ गज की दूरी और घर से बाहर न निकलने के सरकारी अनुरोध को जनता समझ रही है और इसका पालन भी कर रही है। कोरोना की वजह से बदलते हालात में मुँह पट्टी (मास्क)भी हमारे जीवन का हिस्सा बन रहा है। स्वच्छता के प्रति जो हमारी उदासीनता थी,वह दूर हो गई। आज हर कोई किसी भी काम को करने के पहले और बाद में हाथों की सफाई पर ध्यान दे रहा है। सार्वजनिक स्थलों पर थूकने जैसी लोगों की तमाम आदतों में भी बदलाव आया है। लोग समझने लगे हैं,’जान है तो जहान है।’
तालाबंदी के दौरान शहरों और गाँवों में जन सहयोग से स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा जरूरतमंद लोगों तक दवाई और खाना पहुंचाने का बीड़ा उठाया गया,एवं मानवता के इस काम को भारतीय संस्कृति के अनुरूप करके दिखाया गया,जो देश और हमारे मनुष्य समाज के लिए गर्व की बात है। यह व्यवस्था मनुष्य को मनुष्य से जोड़ रही है। बिना किसी भेद-भाव के लोग नि:स्वार्थ भाव से एक-दूसरे के प्रति समर्पित हो कर सेवा दे रहे हैं। पूरे देश में,गली-मोहल्ले में जगह-जगह पर आज लोग एक-दूसरे की सहायता के लिए आगे आए हैं। धन से बड़ी मानवता है,इस बात को लोग आधुनिकता की चकाचौंध में भूल रहे थे,वो फिर याद आ गई है।
देश जब एक दल या समूह बनकर काम करता है तब क्या कुछ होता है,ये अनुभव सामने आ रहे हैं। आज केन्द्र सरकार हो,राज्य सरकारें हो,इनका हर एक विभाग और संस्थान राहत लिए मिल-जुल कर पूरी गति से काम कर रहे हैं। चिकित्सक हो,पुलिस हो,प्रशासनिक लोग हो,हवाई क्षेत्र में काम कर रहे लोग हों,रेलवे कर्मचारी हों,ये दिन-रात मेहनत कर रहे हैं,ताकि देशवासियों को कम से कम समस्या हो,एवं इस महामारी से जल्दी छुटकारा मिल सके। आज हर कोई बस यही सोच कर काम कर रहा है कि हम रहें या न रहें,ये देश रहना चाहिए। देश सुरक्षित रहे,लोग सुरक्षित रहें,इसके लिए हर कोई समर्पित हो कर सेवा दे रहा है।
किसान इस महामारी के बीच अपने खेतों में दिन-रात मेहनत कर रहे हैं और इस बात की भी चिंता कर रहे हैं कि इस देश में कोई भूखा न सोए। कोई किराया माफ कर रहा है,तो कोई अपनी पूरी पेंशन या पुरस्कार में मिली राशि को ‘पीएम केयर्स फंड’ में जमा करा रहा है। कोई खेत की सारी सब्जियां दान दे रहा है तो कोई रोज सैकड़ों गरीबों को मुफ्त में भोजन करा रहा है। कोई मुँह-मुख पट्टी बना रहा है, कहीं हमारे मजदूर भाई-बहन संगरोध(क्वारेंटाइन) में रहते हुए जिस शाला में रह रहे हैं,उसकी रंगाई-पुताई कर रहे हैं। दूसरों की मदद के लिए आपके भीतर हृदय के किसी कोने में जो ये उमड़ता-घुमड़ता भाव है ना,वही कोरोना के खिलाफ भारत की इस लड़ाई को ताकत दे रहा है। हर कोई अपने सामर्थ्य के हिसाब से इस लड़ाई को लड़ रहा है। प्रधानमंत्री के शब्दों में कहें तो-शहर हो या गाँव,ऐसा लग रहा है,जैसे देश में एक बहुत बड़ा महायज्ञ चल रहा है,जिसमें हर कोई अपना योगदान देने को आतुर है।
सेहत के लिए योग से होने वाले लाभ को देखकर ही दुनिया ने इसे अपनाया और अब उसी प्रकार कोरोना महामारी के वैश्विक संकट के दौरान भारत के सदियों पुराने आयुर्वेद के सिद्धांतों को भी अपनाया गया जा रहा है। यह आयुर्वेद के विश्वव्यापी प्रसार करने का सुअवसर हमारे बीच है। दुनिया ने योग की तरह ही आयुर्वेद को भी अब सम्मान के भाव से देखना शुरु कर दिया है। आधुनिकता की अंधी दौड़ में हम प्राचीन पारम्परिक ज्ञान की परम्पराओं को नकारने लगे थे,वो पुनः स्वीकार करने का यह समय है। सैकड़ों साल की गुलामी के कारण हमने जो खो दिया,उसे पाने का यह एक अवसर हमारे बीच आया है। पूरी दुनिया को आज भारत से ही उम्मीद की किरण आती दिखाई दे रही है,तो हमारा भी दायित्व बनता है कि एक बार हम अपनी उन परम्पराओं को अपनाएं,उस संस्कृति को अपनाएं,जिसका उद्देश्य सिर्फ यही रहा-सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत्॥ “सभी सुखी हों,सभी रोगमुक्त रहें,सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े।”
कोरोना के कारण जो बदलाव समाज और हमारी रफ़्तार से चलती जीवन-शैली में आए हैं,वे कोरोना के जाने के बाद भी हमारे जीवन में बने रहें तो भविष्य में कोई भी जैविक हमला हमारे ऊपर सफल नहीं होगा,यह तय है। हम विचारों से आधुनिक बनें,लेकिन संस्कारों से पुरातन रहें,यही आने वाले समय की मांग है।

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