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खामोश भीड़

नरेंद्र श्रीवास्तव
गाडरवारा( मध्यप्रदेश)
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आकाश में चमकती बिजली,
गरजते बादलों के साथ
बरसते मूसलाधार पानी का,
छप्पर से टपक-टपक कर गिरना।

पूस की रात में,
कड़कड़ाती ठंड में
ओढ़ने और बिछाने के कपड़े,
कम पड़ना।

सन्नाटे में पसरी धूप,
गरम लू के थपेड़ों से
बढ़ती उमस और,
बहता पसीना।

उतना परेशान नहीं करते,
जितना करते हैं
उसे,
स्कूल जाते-आते
छेड़ते मनचले।
और,
खामोश भीड़…॥

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