कुल पृष्ठ दर्शन : 359

You are currently viewing माफ करो,शर्मिन्दा हूँ

माफ करो,शर्मिन्दा हूँ

गोपाल चन्द्र मुखर्जी
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
************************************************************

हैदराबाद घटना-विशेष रचना……….
हे प्रणम्य ईश्वरचन्द्र विद्यासागर जी-
अच्छा ही हुआ,आज आप नहीं रहे,
नहीं तो अश्रुसिक्त नयन से आप बोले होते-
संघर्ष भूल था नारियों को स्वाबलंबी करने का,
जरूरत नहीं है आज नारी शिक्षा की
जरूरत नहीं है नारियों का स्वावलंबी होने कीl
आप जरूर बोलते-रह जाओ घर की चौहद्दी में,
छोड़ कर पढ़ाई-लिखाई,मगन रहो चूल्हा-चौका में,
जिंदगी बिताओ पुरुषों की छत्रछाया में-सेवा में
कम-से-कम रहोगी तो सुरक्षा के घेरे मेंl
आज विवश है नारी,हवस के शिकारियों से,
इंसानियत डूब गई हैवानियत के सागर में!
नहीं है कोई ठोस कानून,तुम्हारी रक्षा के लिए,
चल रहे हैं सिर्फ नाटक,लोक दिखावे के लिए!
जब देखा सुबह का अख़बार-
झुक गया है सिर मेरा होकर शर्मसार,
घटनाएंड तेलंगाना-हैदराबाद की
इज्ज़त लुटाकर जान गंवाई सुश्री लड़की।
जागो चरित्र,जागो,यही है नारी,
जो है माता,जगत की जन्मदात्री।
शिशुजन की रक्षा करती है जो,
उन्हीं की ही इज्जत से तुम खेलते होl
माफ करो मुझे,मैं हताश हूँ,विवश हूँ,
लाचार होकर शर्मिन्दा हूँ…ll

परिचय-गोपाल चन्द्र मुखर्जी का बसेरा जिला -बिलासपुर (छत्तीसगढ़)में है। आपका जन्म २ जून १९५४ को कोलकाता में हुआ है। स्थाई रुप से छत्तीसगढ़ में ही निवासरत श्री मुखर्जी को बंगला,हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। पूर्णतः शिक्षित गोपाल जी का कार्यक्षेत्र-नागरिकों के हित में विभिन्न मुद्दों पर समाजसेवा है,जबकि सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत सामाजिक उन्नयन में सक्रियता हैं। लेखन विधा आलेख व कविता है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में साहित्य के क्षेत्र में ‘साहित्य श्री’ सम्मान,सेरा (श्रेष्ठ) साहित्यिक सम्मान,जातीय कवि परिषद(ढाका) से २ बार सेरा सम्मान प्राप्त हुआ है। इसके अलावा देश-विदेश की विभिन्न संस्थाओं से प्रशस्ति-पत्र एवं सम्मान और छग शासन से २०१६ में गणतंत्र दिवस पर उत्कृष्ट समाज सेवा मूलक कार्यों के लिए प्रशस्ति-पत्र एवं सम्मान मिला है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समाज और भविष्य की पीढ़ी को देश की उन विभूतियों से अवगत कराना है,जिन्होंने देश या समाज के लिए कीर्ति प्राप्त की है। मुंशी प्रेमचंद को पसंदीदा हिन्दी लेखक और उत्साह को ही प्रेरणापुंज मानने वाले श्री मुखर्जी के देश व हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिंदी भाषा एक बेहद सहजबोध,सरल एवं सर्वजन प्रिय भाषा है। अंग्रेज शासन के पूर्व से ही बंगाल में भी हिंदी भाषा का आदर है। सम्पूर्ण देश में अधिक बोलने एवं समझने वाली भाषा हिंदी है, जिसे सम्मान और अधिक प्रचारित करना सबकी जिम्मेवारी है।” आपका जीवन लक्ष्य-सामाजिक उन्नयन है।

Leave a Reply