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देवनागरी लिपि:पथ की बाधाएँ और उपाय

डॉ. एम.एल. गुप्ता ‘आदित्य’
मुम्बई(महाराष्ट्र)
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यह सर्वमान्य तथ्य है कि यदि हमें अपनी भाषाओं का प्रचार-प्रसार करना है तो भाषा के साथ-साथ इनकी लिपियों को बचाए रखना भी अत्यंत आवश्यक है,लेकिन कई वर्षों में यह देखने में आ रहा है कि हिंदी ही नहीं,अन्य ऐसी भाषाएं जो देवनागरी में लिखी जाती हैं,उन्हें भी ज्यादातर लोग
कम्प्यूटर,मोबाइल तथा अन्य इलेक्ट्रॉनिक
उपकरणों पर रोमन लिपि में लिखने लगे हैं।निश्चित रुप से देवनागरी लिपि पर पड़ने वाली चोट प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हिंदी और भारतीय भाषाओं पर पड़ने वाली चोट है,इसलिए यह आवश्यक है कि देवनागरी लिपि के गुणगान के बजाय हम देवनागरी लिपिकी राह की चुनौतियों और समस्याओं को समझ कर इन्हें दूर करने के उपाय करें।
किसी भी व्यक्ति के कानों में सर्वप्रथम अपनी माँ की भाषा के शब्द ही पड़ते हैं,इसलिए उसे मातृभाषा कहा जाता है। इसी प्रकार दुनिया में जब कहीं कोई विद्यालय में पढ़ने के लिए जाता है उसका सर्वप्रथम साक्षात्कार मातृभाषा की लिपि से ही होता है। भारत में हिंदी,मराठी,कोकणी,नेपाली, मैथिली,डोंगरी,बोडो आदि भाषाएं जो लोगों की मातृभाषाएं हैं,देवनागरी लिपि में लिखी जाती हैं ।अन्य देशों की तरह हमारे देश में भी इन भाषाओं के बच्चों का प्रथम साक्षात्कार अपनी मातृभाषा की लिपि यानी देवनागरी लिपि से भी तभी होना चाहिए ,जब वे पहले-पहल विद्यालय में पहुंचते हैं,लेकिन अंग्रेजी माध्यम के दौर और दौरे के चलते हम इस स्वभाविक राह को छोड़ते जा रहे हैं। अब हमारे देश में बच्चों को ढाई-तीन साल का होते-होते नर्सरी विद्यालयों में भेज दिया जाता है,जहां उन्हें अंग्रेजी और अंग्रेजी लिपि यानी रोमन लिपि रटाई जाती है। तब बच्चा ‘क,ख,ग’ नहीं, बल्कि दिन-रात वह ‘ए.बी. सी…’ रटता है। परिणाम यह होता है कि उनके लिए लिपि का अर्थ,मुख्यतः रोमन लिपि ही हो जाता है।
आगे चल कर जब प्राथमिक कक्षाओं में उन्हें हिंदी विषय पढ़ाया जाता है,तब उनका देवनागरी लिपि से परिचय होता है,लेकिन वहां भी स्थिति गंभीर होती है क्योंकि एक तो विद्यार्थी के माता-पिता और विद्यालय प्रबंधन हिंदी को इतना महत्व ही नहीं देता, जितना दिया जाना चाहिए। उस पर स्थिति यह भी है कि शिक्षक भी देवनागरी लिपि को वैज्ञानिक लिपि होने के बावजूद वैज्ञानि विधि से नहीं पढ़ाते। मैंने ऐसे अनेक युवाओं को देखा है जिन्हें १०-१२ वर्ष तक देवनागरी लिपि में हिंदी या मराठी आदि पढ़ने के बावजूद देवनागरी लिपि में बहुत से शब्दों और वर्णों को लिखने या उनके सही उच्चारण की जानकारी नहीं होती। इसकी गंभीरता का अंदाज मुझे तब हुआ,जब मैंने उत्तर प्रदेश में माध्यमिक कक्षा में पढ़नेवाली अपने रिश्तेदार की बेटी को हिंदी का पत्र रोमन लिपि में लिखते देखा। हालांकि,रोमन में उसकी हिंदी को समझना भी कोई आसान तो न था।
अब अंग्रेजी माध्यम के चलते दूसरी बड़ी समस्या यह है कि बच्चे हिंदी या मराठी जो उनकी मातृभाषा है,उसे छोड़कर अन्य सभी विषय अंग्रेजी में ही पढ़ते हैं,इसलिए वे अन्य सभी विषयों को लिखने के लिए रोमन लिपि का ही प्रयोग करते हैं। यही नहीं,इसकी वर्तनी को रटने के लिए पूरी जिंदगी का बहुत बड़ा हिस्सा दे देते हैं,क्योंकि उसके बिना वे किसी अन्य विषय में आगे बढ़ ही नहीं सकते। नतीजतन अंग्रेजी माध्यम से पढ़ कर आए ज्यादातर बच्चे न तो ठीक से देवनागरी लिपि को पढ़ पाते हैं,और न ही ठीक से लिख पाते हैं।
फिर उच्च शिक्षा में हिंदी के हटने और केवल अंग्रेजी के चलने से देवनागरी में जो लिखना-पढ़ना होता था,वह भी छूट जाता है। फिर शासन-प्रशासन से ले कर निजी कंपनियों में अंग्रेजी के वर्चस्व के कारण जहां काम करते हैं,वे काम भी अंग्रेजी में रोमन लिपि के माध्यम से ही होते हैं। इस प्रकार धीरे-धीरे देवनागरी लिपि से खून का रिश्ता ही टूट जाता है।
मेरा विचार है कि,देवनागरी लिपि के लिए ही नहीं, किसी भी बच्चे के स्वभाविक विकास के लिए भी यह आवश्यक होना चाहिए कि बच्चा जब शाला में जाए तो उसका प्रथम साक्षात्कार मातृभाषा और मातृभाषा की लिपि से हो,भले ही विद्यालय हिंदी का हो या अंग्रेजी माध्यम का। प्रारंभिक स्तर पर
उस पर कोई अन्य भाषा या लिपि लादी नहीं जानी चाहिए। यहां इस बात का उल्लेख करना भी आवश्यक है कि भारत में देवनागरी लिपि के अतिरिक्त अन्य भारतीय भाषाओं की लिपियों की पद्धति भी लगभग पूरी तरह देवनागरी की तरह ही है,इसलिए जिन बच्चों को देवनागरी से अलग अपनी मातृभाषा की लिपियों में लिखने का अभ्यास होगा,वे भी देवनागरी लिपि सीखने में अधिक समय नहीं लगाएंगे।
देवनागरी लिपि में समय और स्थान के साथ निरंतरहोते परिवर्तनों ने भी इसके प्रयोग में बाधाएँ उत्पन्न की हैं। देवनागरी को सरल बनाने और उसे राष्ट्रीय लिपि के तौर पर विकसित करने के लिए भी उसमें निरंतर परिवर्तन होते रहे हैं। यही नहीं, विभिन्न राज्यों में देवनागरी लिपि के कई अक्षरों या उच्चारण के अलग-अलग रूप प्रयुक्त होने से भी प्रयोक्ताओं में अक्सरभ्रम की स्थिति बनी रहती है। इन तमाम कारणों से देवनागरी में लिखने वाले लोगों को विशेष कर विद्यार्थियों को बहुत ही कठिनाई होती है। उन्हें अक्सर यह समझ नहीं आता कि, अगर ‘हिंदी’ शब्द ही लिखना है तो वह बिंदु लगाकर लिखा जाएगा,आधा न लगाकर ‘हिन्दी’। यदि आप इस संबंध में किसी सामान्य विद्यार्थी या व्यक्ति से पूछेंगे तो वह ठीक से कोई जवाब नहीं दे सकेगा।
हालांकि,सरलता के लिए किए जा रहे इन परिवर्तनों को लेकर भी देश के विभिन्न विद्वानों में पर्याप्त मतभेद रहे हैं। ऐसे अनेक विद्वान हैं जो कथित सरलता के लिए देवनागरी लिपि के वैज्ञानिक स्वरुप को नष्ट किए जाने के पक्ष में नहीं है। इस अराजकता को दूर किए जाने की आवश्यकता है,क्योंकि देवनागरी भारत और नेपाल सहित देश के विभिन्न राज्यों में विभिन्न भाषाओं के लिए प्रयोग में लाई जाती है,इसलिए यहां यह अति आवश्यक हो जाता है कि,सभी स्थानों पर देवनागरीलिपि की एकरूपता बनी रहे। लिपि के मानक स्वरूप में कोई परिवर्तन किया जाना है तो देवनागरी लिपि का प्रयोग करने वाली भाषाओं के सभी राज्यों तथा विभिन्न भाषा विज्ञान के विद्वानों के स्तर पर व्यापक चर्चा और विचार-विमर्श करने और आम सहमति बनाने के बाद किसी एक केन्द्रीय संस्था द्वारा किया जाने चाहिए। इससे देवनागरी का प्रयोग करने वालों में भ्रम की स्थिति नहीं रहेगी और एकरूपता के चलते प्रयोग में सुविधा भी होगी।
यह भी कि हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए केन्द्रीय स्तर से लेकर राज्यों के स्तर पर जो संस्थाएँ यानी अकादमियाँ आदि बनाई गई,जिन्हें हिंदी में हिंदी साहित्य अकादमी का नाम दिया गया है। यह एक विडंबना ही कि ऐसी ज्यादातर अकादमियां अपने को केवल ललित साहित्य यानी कहानी-कविता आदि तक सीमित रखे हुई हैं। इनके लिए भाषा का अभिप्राय केवल साहित्य और साहित्य का अभिप्राय केवल ललित साहित्य तक ही सीमित है। यहां तक कि इनमें देवनागरी लिपि को आगे बढ़ाने के लिए भी कोई विशेष रुचि नहीं दिखाई देती। आज जबकि हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए भाषा प्रौद्योगिकी समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है। इसलिए यह आवश्यक है कि अकादमियों में ऐसे विद्वानों को शामिल किया जाए,जो भाषा को केवल ललित साहित्य तक सीमित न करते हुए भाषा, साहित्य और लिपि सहित हिंदी के सर्वांगीण विकास के लिए कार्य कर सकें।
यदि पीछे मुड़ कर देखें तो पाते हैं कि भाषा-प्रौद्योगिकी की अपेक्षित प्रगति के अभाव में देवनागरी लिपि प्रचलन के स्तर पर अपेक्षित प्रगति नहीं कर सकी। जब भारत में अंग्रेजी में काम-काज के लिए टाइपराइटर आया तो उस समय हिंदी के लिए देवनागरी टाइपराइटर उपलब्ध नहीं था। जब तक हम इस बारे में सोचते,तब तक कम्प्यूटर रुपी महाशक्ति हमारे बीच आ चुकी थी। एक बार फिर हम देवनागरी में कार्य करने में स्वयं को असहाय-सा महसूस कर रहे थे। कुछ दिनों बाद ही हमारे यहां इस दिशा में कुछ कार्य हुआ। आई.आई.टी कानपुर और सीडैक पुणे आद देश की प्रतिष्ठित संस्थाओं ने इसके लिए कुछ इस प्रकार की व्यवस्था की,जिससे विशेष तौर पर बनाए गए भाषा सॉफ्टवेयरों के माध्यम से हिंदी में देवनागरी लिपि में काम कियाजा सकता था,लेकिन तब भी हमारी उड़ान बहुत ही सीमित थी।उस दौर में कुछ केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों द्वारा ही ऐसे कुछ सॉफ्टवेयर लेकर हिंदी में कार्य करना प्रारंभ किया गया,लेकिन आम आदमी के लिए यह तब भी आसान न था। इन तमाम कारणों से धीरे-धीरे हिंदी को रोमन लिपि में लिखने की परम्पराएं आगे बढ़ती रही। आखिर वह समय भी आया,जब हिंदी सहित तमाम भारतीय भाषाओं की लिपियों को लिखने के लिए यूनिकोड की व्यवस्था हो गई और हम सभी के कम्प्यूटर में तमाम भारतीय भाषाओं को उनके लिपियों में लिखने के लिए यूनिकोड मंगल फोंट्स ही नहीं,बल्कि उन्हें लिखने के लिए अति वैज्ञानिक और सरल इंस्क्रिप्ट कुंजी पटल(की-बोर्ड) भी उपलब्ध करवा दिया गया।
आज जबकि देश-दुनिया में पुस्तकें पढ़ने और कलम से लिखने का प्रचलन लगातार कम होता जा रहा है,और युवा पीढ़ी ज्यादातर कागज पर लिखने के बजाए कम्प्यूटर और मोबाइल पर ज्यादा लिख रही है,ज्ञान-विज्ञान और सूचना ही नहीं,साहित्य भी सोशल मीडिया के जरिए देश-दुनिया में विस्तार पा रहा है,ऐसे में भी यदि हिंदी केवल कलम तक सिमट कर रह जाए और प्रौद्योगिकी के पंखों से इंटरनेट के अनंत क्षेत्रों पर उड़ान न भर पाए तो हम दुनिया की अन्य भाषाओं के मुकाबले आगे कैसे बढ़ पाएंगे ? इसके लिए आवश्यक है कि हम देवनागरी लिपि को प्रौद्योगिकी से सज्जित कर अंकीय (डिजिटल) युग के साथ आगे बढ़ाएँ।अगर हमें बदलते समय के साथ आगे बढ़ती हुई विश्व की श्रेष्ठतम और अत्यधिक वैज्ञानिक लिपि कोआगे लेकर जाना है तो नए दौर के तौर-तरीकों को भी अपनाना होगा।
इसलिए यह अत्यंत आवश्यक है कि देवनागरी को इंटरनेट के माध्यम से आगे पहुंचाने के लिए आधुनिकतम प्रौद्योगिकी को अपनाने और अपने विद्यार्थियों तक पहुंचाने के लिए शिक्षण-प्रशिक्षण और परीक्षा- व्यवस्था में शामिल करने जैसे तमाम उपाय किए जाएँ। शायद यह कार्य भी विदेशियों को कर ही करना होगा ? जब देश के तमाम विद्यालय और विश्वविद्यालय कम्प्यूटर, मोबाइल आदि तमाम उपकरणों पर देवनागरी में कार्य की जानकारी ही नहीं दे रहे और इन उपकरणों को अंग्रेजी का मानते हुए केवल रोमन लिपि में ही कार्य करने का प्रशिक्षण देंगे तो देवनागरी लिपि का प्रयोग कैसे बढ़ सकता है। सरकार को कई बार यह सिफारिश की जा चुकी है कि विद्यार्थियों को शाला में ही कम्प्यूटर पर कार्य के लिए सर्वमान्य तथा सर्वाधिक उपयुक्त हिंदी में कार्य करने संबंधी अति सरल इंस्क्रिप्ट कुंजी-पटल का प्रशिक्षण दिया जाए,लेकिन अभी तक यह कार्यान्वित नहीं हो सका है।यह भी उल्लेखनीय है कि इंस्क्रिप्ट की-बोर्ड न केवल हिंदी के लिए,बल्कि भारत की तमाम भारतीय भाषाओं के लिए एक समान है। यदि आपने किसी भी एक भारतीय भाषा के लिए इसको सीख लिया तो किसी भी भाषा में काम कर सकते हैं। आज भी स्थिति यह है कि,देश की जनसंख्या का एक बहुत बड़ा तबका जो अंग्रेजी ठीक से नहीं जानता और हिंदी बहुत अच्छी तरह लिखना-पढ़ना जानता है,फिर भी वह कम्प्यूटर-मोबाइल आदि पर हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं को रोमन लिपि में लिखता है। इसी का परिणाम यह था कि अंग्रेजी लेखक चेतन भगत ने हिंदी को बचाने के लिए रोमन लिपि को अपनाने तक की वकालत कर डाली।
प्रौद्योगिकी की गति बहुत तेज है। पिछले दो-एक साल में मोबाइल आदि में बहुत ही सरल किस्म के ऐसे अनेक कुंजी-पटल आ गए हैं,अब तो गूगल वॉयस के रुप में ऐसी नि:शुल्क प्रौद्योगिकी भी उपलब्ध हो गई है जिसकी मदद से कोई भी व्यक्ति सरलता से बोल कर अपने मोबाइल आदि पर देवनागरी लिपि में टाइप कर सकता है,पर बात तो फिर वहीं घूम-फिर कर आ जाती है कि,जब इनकी जानकारी आज विद्यार्थियों को भी नहीं दी जा रही तो ऐसे में अन्य लोगों से यह अपेक्षा करना कि वे इन तमाम सुविधाओं के माध्यम से देवनागरी लिपि में लिखने के लिए प्रयास करें,यह व्यावहारिक नहीं लगता। देवनागरी लिपि को राष्ट्रीय स्तर पर और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रचलित और प्रतिष्ठित करने के लिए यह आवश्यक है कि लिपियों के लिए उपलब्ध नवीनतम प्रौद्योगिकी को अपनाते हुए और उसके लिए देश के विद्यार्थियों और जनसामान्य को जागरूक तथा तैयार करते हुए हम दुनिया के साथ आगे बढ़ें।

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