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सब नश्वर,चरित्र कमाएं

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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जिनसे भी जन्म लिया,उसका अंत भी निश्चित है। मनुष्य मन के कारण ही मानव कहलाता है। जबसे मानव का प्रादुर्भाव हुआ,उसमें पाप यानी हिंसा,झूठ चोरी,कुशील और परिग्रह के साथ चार कषायों(क्रोध मान,माया लोभ यानी राग द्वेष) की युक्तता है। मनुष्य किस पर मद करता है-

ज्ञानं पूजां कुलम जातिं बलमृद्धिं तपो वपुः।
अष्टावाश्रित्य मानित्वं स्मयमा हुर्गृतस्मय॥

पुण्योदय से प्राप्त अपने ज्ञान,पूजा,कुल जाति, बल,रिद्धि,तप और वपु यानी शरीर इन आठों का आश्रय लेकर अपने उच्चत्व या श्रेष्ठत्व का अभिमान करने और हीनत्व के कारण दूसरों का अपमान करने को गर्व-रहित,मार्दव धर्म के धारक, विनयशील महर्षियों ने स्मय या मद कहा है। दूसरे का तिरस्कार और निंदा करने तथा अपनी प्रशंसा और अभिमान करने से सदा भय को देने वाला और अनेक कोटि भवों तक भी नहीं छूटने वाला ऐसा निंद्य-नीच गौत्र का कर्म बंधता है।
सांसारिक ऐश्वर्य,उत्तम जाति और कुलादि की प्राप्ति कर्मों के अधीन है। आज जो अपने उच्च कुलीन होने का मद करता है, वह आगामी भव में नीच कुल में जन्म लेता देखा जाता है। आज जो अपने ज्ञान या धन विभावादि का मद करता है,वही कल अज्ञानी और दरिद्र भिखारी बना दृष्टिगोचर होता है, अतः इन विनश्वर वस्तुओं का क्या गर्व करना ? गर्व तो उस वस्तु का करना चाहिए जो अपनी है,और सदा काल अपने पास रहने वाली है। यही कारण है कि आचार्यों ने जाति-कुलादि के मद करने को अज्ञान कहा है।
आज सब क्षेत्र में जिन्होंने सफलता प्राप्त कर उच्चता हासिल कर ली है,उनमें मद आ ही जाता है। ‘प्रभुता पाए मद जो आए’ पर यह सब अपने अपने कर्मों के साथ पुण्य का ठाठ है। पुण्य के उदय से सब-कुछ अनुकूल मिलता है,और जब पाप कर्म का उदय होता है,तो क्षण में अर्श से फर्श में आ जाते हैं।
राजनीति में जैसे कई को बहुत घमंड हैं,वे हर बात पर ‘मैंने,मैंने,मैं’ कहते हैं,पर ‘मैं-मैं’ करने वाले मेमने का अंत में हश्र क्या होता है,सब जानते हैं। ठीक है अभी आपके पुण्य का ठाठ है,पर वह भी कितने समय का। अंत में यह पद भी नहीं रहता,बस रहता है कर्मों का यश। वह भी अस्थायी,कारण कि, आप कितनों को याद करते हैं, जब आप नहीं करते तो आपको कौन याद करेगा।
धनवानों में कितने रहे,जब चक्रवर्ती तक इस धरा में समां गए तो इनको कौन याद करेगा ? फ़िल्मी दुनिया में हम जिनको अपना आदर्श मानकर चलते हैं,उनका जीवन,परिवार की दशा,दुर्दशा देखने सुनने में लगता है कि, इतना धन,वैभव सम्पन्नता के बाद भी क्या है ? उनकी सुंदरता के पीछे कितनी कुरूपता छुपी है,वह सुखद नहीं कह सकते। वैसे वे कोई विशेष नहीं हैं। वे भी हाड़-माँस के बने हैं,उनमें भी वही संवेदना है और उनका अंत भी सभी के जैसा होना है,पर इतना सब इकठ्ठा करने के बाद मात्र पाप और कषायों का संग्रह कर रहे हैं।
मानव बुराईयों का पुंज है,तब तक यह प्रक्रिया चलती रहेगी जब तक हम पंचम गति प्राप्त न कर लें। मानव को यह समझना चाहिए कि इस संसार में सब वस्तुएं नश्वर हैं तो क्यों धन के पीछे इतना लगाव क्यों ? किसी का शोषण कब तक और कितना करोगे। सबके सामने सिल्वर कुमार,जुबली कुमार,शौ-मैन चले गए तो आप कब तक बचोगे ?
याद रखें कि,नैतिकता,ईमानदारी,चरित्रिक व्यक्ति ही हमेशा पूज्य और स्मृति योग्य होता है। बाह्य सुंदरता अधिक दिनों तक स्थाई नहीं होती।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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