डॉ. शुचिता सेठ,
दतिया (मध्यप्रदेश)
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काव्य संग्रह हम और तुम से
चलो इस बार,
फिर से कोई
सपना सजाते हैं।
तारों की सुंदर,
चादर तले
ख़्वाबों का मज़मा,
लगाते हैं।
कभी हम तुम्हें,
कभी तुम हमें
नए प्यार के,
गीत सुनाते हैं।
अमवा तरे,
ख़ुशियों का
झूला लगाते हैं।
कभी तुम हमें,
कभी हम तुम्हें
झूला झुलाते हैं।
नीले गगन तले,
समंदर किनारे
रेत पर,
घरौंदे बनाते हैं।
हम दोनों,
मिलकर
सुनहरे सपने सजाते हैं॥