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हम और तुम

डॉ.स्मिता( श्वेता मिश्रा)
गुड़गाँव(हरियाणा)
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काव्य संग्रह हम और तुम से….


हम और तुम
मिले हैं जबसे,कुछ खट्टे
कुछ मीठे,अनुभव किए।
तुम्हें ख़ुश रखने के,किए लाखों जतन,
लेकिन तुम भी कमाल,की चीज़ हो
कहाँ से लाते हो,ऐसी सशक्त आलोचना शक्ति!
हर बात में कमी ढूँढ लेते हो।
हम है कि लगे हैं,उम्मीद की डोर से बंधे हैं,
कहते हैं-‘प्रेम’ पीपल का बीज है
ज़रा-सी सम्भावना हो,वहीं पनप जाता है,
कई बार देखा है इसे,दाएँ-बाएँ,प्रस्फुटित होते।
खींच लाती हूँ हर बार इस उम्मीद से,
कभी तो हमारे आँगन में
अंकुरित होगा पीपल का बीज,
और तब तुम्हें अच्छा लगेगा
हमारा पहनावा,सजाया हुआ घर
क़रीने से लगाए बिस्तर,
रुचि कर बनाया भोजन
और तब नहीं निकालोगे,
नुक़्स हर एक बात में
तब हम दोनों साथ बैठेंगे।
तुम नहीं बोलोगे एसे शब्द,
जिन्हें सुन तिलमिला जाती हूँ
चुप रह कर,घंटों बेचैन रहती हूँ।
हम और तुम मिले हैं जबसे,
कुछ खट्टे-कुछ मीठे अनुभव किए हैं॥

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