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समूची संस्कृति की आग का ही नाम है हिंदी

डॉ.अर्चना मिश्रा शुक्ला
कानपुर (उत्तरप्रदेश)
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साहित्य और अनुसंधान के शिखर पुरुष, भारत के ३ विश्‍वविद्यालयों से डी.लिट. की सर्वोच्च उपाधि से सम्मानित कवि, साहित्यकार,समालोचक तथा महापण्डित राहुल सांकृत्यायन की प्रेरणा से काल के गर्भ में खोई दुर्लभ पाण्डुलिपियों को श्रमसाध्य यात्राओं द्वारा खोजकर अनुसंधान एवं अन्वेषण के मनीषी,कविता को गाँवों की चौपालों तक पहुँचाने के लिए गाँव-गाँव कवि सम्मेलनों का आयोजन, महाकवि जयशंकर प्रसाद पुरस्कार से सम्मानित व्यक्तित्व का नाम `डॉ. चन्द्रिका प्रसाद दीक्षित ‘ललित’ हैl
बड़े सौभाग्य की बात है कि अपने गुरुवर ‘ललित’ जी से की गई बातचीत के कुछ अंश बतौर साक्षात्कार प्रस्तुत कर रही हूँ…

प्रश्‍न-सर,अपनी जीवन यात्रा के बारे में बताइए ?
उत्तर-टेसू के घने जंगलों के बीच फतेहपुर जनपद के ग्राम्यांचल टीसी गाँव में १९४२ में मेरा जन्म हुआ। काव्य,अनुसंधान एवं साहित्य के लिए समर्पित बुन्देलखण्ड विश्‍वविद्यालय के सर्वाधिक गौरव प्रतिमानक महाविद्यालय पं. जे.एल.एन. कालेज(बाँदा) में १९७१ से हिंदी विभाग में कार्यरत रहा एवं अपनी सम्पूर्ण ऊर्जा से हजारों छात्र-छात्राओं को ललित कण्ठ से निसृत कविता कर शोध के नए कीर्तिमान स्थापित किए। २००२ में विभाग को सर्वोत्तम ऊँचाइयां प्रदान करते हुए सेवानिवृत्त हुआ,किंतु हिंदी के प्रति मेरी लेखनी सतत् गतिमान है।

प्रश्‍न-सर,आप अपने अनुसंधान एवं अन्वेषण पर कुछ बताइए ?
उत्तर-मेरे द्वारा ३ हजार दुर्लभ पाण्डुलिपियों की खोज,जिसमें विविध भारतीय भाषाओं एवं लिपियों में लिखी हुई प्राचीन हस्तनिर्मित कागज,भोज-पत्र आदि पर साहित्य,दर्शन,व्याकरण,काव्य,ज्योतिष, आयुर्वेद,भूगर्भ शास्त्र आदि की दुर्लभ सामग्री को खोजकर ‘चंददास शोध संस्थान’ में संग्रहित किया,जिससे साहित्य और भारतीय ज्ञान-विज्ञान की नई-नई जानकारियाँ प्राप्त हुई।

प्रश्‍न-सर,आप अपनी पहली पुस्तक के बारे में बताइए ?
उत्तर-जब मैं स्नातक छात्र था,उस समय थामस हार्डी के टेस ऑफ़ दी डीउर्बरविल्स उपन्यास से प्रभावित होकर अपनी पहली पुस्तक टीसी का टेसू भरा उपवन की रचना की। बीहड़ और घने जंगलों के बीच बसा मेरा टीसी जब टेसू के फूलों से आच्छादित हो जाता,उसका वह मनोरम दृश्य आज भी मन में प्रफुल्लता भर देता है।

प्रश्‍न-सर,आपने अपने नाम के साथ ललित शब्द कब और कैसे जोड़ा ?
उत्तर-कुछ याद नहीं,शुरुआत से ही युवावस्था से ही ललित शब्द लिखने लगा। जीवन में लालित्य हो, इसलिए मैं साहित्य में इस शब्द को साकार करता रहा। मेरी रेडियो वार्ता भी डॉ. ललित के नाम से ही प्रसारित होती रही।

प्रश्‍न-सर,आप अपनी कुछ महत्वपूर्ण खोज के बारे में बताइए ?
उत्तर-मैंने महाकवि चंद के ‘पृथ्वीराज रासो’ के बाद के एक दर्जन महाकाव्यों की खोज करके सिद्ध कर दिया कि,महाकवि चंद चारण काल के नहीं, मध्यकाल के महान कवि थे। इसके साथ ही तुलसीकृत ‘युगल ध्यानपद’,लालदास कृत ‘अवधविलास’ महाकाव्य जिसमें राम जन्मभूमि का प्रमाण मिल सका और उच्च न्यायालय ने निर्णय में इस ग्रंथ को साक्ष्य के रुप में प्रस्तुत किया। इतना ही नहीं,मैंने बुन्देलखण्ड के असाव कवियों की रचनाओं की खोजकर हिंदी साहित्य को समृद्ध किया है।

प्रश्‍न-सर,सामाजिक क्षेत्र में अपनी कुछ मुख्य उपलब्धियों के बारे में चर्चा कीजिए ?
उत्तर-मैंने १९७३ से अब तक लगभग ४३ वर्षों से राष्ट्रीय रामायण मेला,चित्रकूट की बौद्धिक सभाओं का संचालन किया,जिसमें राष्ट्रीय तथा अर्न्तराष्ट्रीय विद्वानों ने सहभागिता की। विश्‍व के सबसे बड़े जन संगम वाले महाकुंभ मेला,प्रयाग में आँखों देखा प्रसारण हेतु उद्‌घोषक के रुप में चर्चित एवं पुरस्कृत। आकाशवाणी तथा दूरदर्शन द्वारा लगभग २५ कविताएं एवं १५ वार्ताएं प्रसारितl ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्व के स्थल कालिंजर और चित्रकूट टेलीफिल्म (भारत सरकार द्वारा निर्मित)में शीर्षक गीतों की रचना भी की।

प्रश्‍न-सर,आप अपने ललित कंठ से काव्य का कोई मार्मिक उद्धरण गेय शैली में सुनाइए ?
उत्तर-मैंने तो अपने संपूर्ण जीवन का,साहित्य और संस्कृति के विकास के लिए तथा हिंदी के प्रति लोकार्पण कर दिया-

समूची संस्कृति की आग का ही नाम है हिंदी, सड़क पर,खेत या खलिहान में जो काम करते हैं करोड़ों कंठ के उस राग का ही नाम हिंदी है, वही हिंदी कि जो संवेदना के छोर छूती है कला के अग्निपथ पर जिंदगी के साथ जूझी हैl

प्रश्‍न-सर,पाठकों एवं नए रचनाकारों को आप क्या संदेश देना चाहेंगें ?
उत्तर-मैं पाठकों एवं नए रचनाकारों को यही संदेश देना चाहता हूँ कि अपने राष्ट्र के प्रति प्रेम भावना रखते हुए ईमानदारी से अपने क्षेत्र में कार्य करते हुए हिंदी की सतत सेवा करते हुए आगे बढ़ें
सर,आपने अपना बहुमूल्य समय देकर मुझे जानकारी दी,इसके लिए धन्यवाद देती हूँ।

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