प्रो.डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला(मध्यप्रदेश)
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वह हट्टा-कट्टा बॉडी बिल्डर-सा दिखने वाला आदमी चलती हुई बस में दो की सीट पर अकेला फैलकर ऐसे बैठा हुआ था,मानो पूरी बस का मालिक वही है! उसे देखकर पिछले स्टॉप पर चढ़ा हुआ एक दुबला-पतला किशोर वय का लड़का अपनी वैशाखी संभालते हुए आगे बढ़ा,और हिम्मत करके उस तगड़े आदमी से डरते-डरते बोला-“भाईसाहब थोड़ा खिसक जाइए न,मैं भी बैठ जाऊंगा!”
इस पर उस पहलवान ने ऐसे घूरा,मानो उस लड़के ने कोई अपराध कर दिया हो! फिर लगभग गुर्राते हुए कहा-“तुम्हें दिख नहीं रहा क्या ? सीट खाली कहां है ?”
“भाईसाहब जी,दो लोग बैठते हैं!” लड़के ने जवाब देने की हिम्मत जुटा ही ली!
“ले बैठ जा,ज़िद करता है तो!” कहकर वह आदमी थोड़ा-सा कुछ इस तरह खिसक गया,मानो बहुत बड़ा अहसान कर रहा हो!
तभी अगले स्टॉप पर एक बूढ़ी औरत हांफते-हूंपते सिर पर एक पोटली रखे बस में दाखिल हुई,और चारों ओर नज़र घुमाकर भरी हुई बस देखकर निराश होकर चुपचाप एक ओर खड़ी हो गई! यह उस विकलांग लड़के से न देखा गया,वह बहुत ही विनम्रता से उस औरत की ओर मुख़ातिब होकर बोला-“माताजी,आप इधर मेरी जगह बैठ जाइए,मैं खड़ा हो जाता हूँ!” इस पर उस तगड़े आदमी ने उस लड़के को यूँ घूरा,मानो उसने कोई आश्चर्यजनक बात कह दी हो!
“नहीं बेटा,तुम तो बैठे रहो,तुम तो वैसे भी शरीर से दिक्कत में दिख रहे हो,पर बिटवा तुम तो भगवान की दया से ठीक हो,तुम खड़े हो जाओ न!” बूढ़ी माँ ने एकसाथ उन दोनों से कहाl
“नहीं,मैं क्यों खड़ा होऊं ? आपको बैठना है तो इस लड़के की जगह पर बैठ जाओ,यह भी तो मेरी ही सीट है,मैंने ही इसे दी है!” वह आदमी ऐंठते हुए स्वर में बोलाl
“प्लीज माताजी,आप मेरी जगह पर बैठ जाइए न। मुझे कोई परेशानी नहीं। मुझे परेशानी तो तब होगी,जब एक वृद्ध माँ खड़ी रहेगी,और बेटा बैठा रहेगा।” यह सुनकर बस के सारे लोग उस शारीरिक विकलांग लड़के की ओर देखने लगे,क्योंकि उसने बड़प्पन और मानवता का एक ऐसा बड़ा उदाहरण पेश कर दिया था,जिसके आगे सारे बौने हो गए थेl वे सब ये भी जान चुके थे कि असली विकलांग वह लड़का नहीं,बल्कि उस हट्टे-कट्टे आदमी सहित बस के सारे लोग लोग हैं।
परिचय-प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे का वर्तमान बसेरा मंडला(मप्र) में है,जबकि स्थायी निवास ज़िला-अशोक नगर में हैl आपका जन्म १९६१ में २५ सितम्बर को ग्राम प्राणपुर(चन्देरी,ज़िला-अशोक नगर, मप्र)में हुआ हैl एम.ए.(इतिहास,प्रावीण्यताधारी), एल-एल.बी सहित पी-एच.डी.(इतिहास)तक शिक्षित डॉ. खरे शासकीय सेवा (प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष)में हैंl करीब चार दशकों में देश के पांच सौ से अधिक प्रकाशनों व विशेषांकों में दस हज़ार से अधिक रचनाएं प्रकाशित हुई हैंl गद्य-पद्य में कुल १७ कृतियां आपके खाते में हैंl साहित्यिक गतिविधि देखें तो आपकी रचनाओं का रेडियो(३८ बार), भोपाल दूरदर्शन (६ बार)सहित कई टी.वी. चैनल से प्रसारण हुआ है। ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं(विशेषांकों)का सम्पादन कर चुके डॉ. खरे सुपरिचित मंचीय हास्य-व्यंग्य कवि तथा संयोजक,संचालक के साथ ही शोध निदेशक,विषय विशेषज्ञ और कई महाविद्यालयों में अध्ययन मंडल के सदस्य रहे हैं। आप एम.ए. की पुस्तकों के लेखक के साथ ही १२५ से अधिक कृतियों में प्राक्कथन -भूमिका का लेखन तथा २५० से अधिक कृतियों की समीक्षा का लेखन कर चुके हैंl राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में १५० से अधिक शोध पत्रों की प्रस्तुति एवं सम्मेलनों-समारोहों में ३०० से ज्यादा व्याख्यान आदि भी आपके नाम है। सम्मान-अलंकरण-प्रशस्ति पत्र के निमित्त लगभग सभी राज्यों में ६०० से अधिक सारस्वत सम्मान-अवार्ड-अभिनंदन आपकी उपलब्धि है,जिसमें प्रमुख म.प्र. साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार(निबंध-५१० ००)है।