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अघोरी पंथ, शक्तिपीठ और महाकुंभ का बहुत ही जानकारी युक्त वर्णन

चर्चा….

दिल्ली।

संतोष जी की भाषा कहीं-कहीं बहुत प्रांजल और बड़ी ईमानदार नज़र आती है। न केवल नागा साधु बल्कि, अघोरी पंथ, शक्तिपीठ और महाकुंभ का बहुत ही जानकारी युक्त वर्णन किया है। निश्चय ही यह नागा साधुओं पर लिखा पहला उपन्यास है।
यह बात कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ लघुकथाकार बलराम अग्रवाल ने कही। अवसर रहा अंतर्राष्ट्रीय विश्व मैत्री मंच (दिल्ली इकाई) के तत्वावधान में दिल्ली के हिंदी भवन सभागार में संध्या वरिष्ठ साहित्यकार संतोष श्रीवास्तव की पुस्तक ‘कैथरीन और नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया’ एवं डॉ. प्रमिला वर्मा की पुस्तक ‘कहानी ब्रिटिश सैन्य अधिकारी के प्रेम और जज़्बात की’ तथा ‘राबर्ट गिल की पारो’ पर चर्चा का। इस आयोजन में संतोष श्रीवास्तव ने इस उपन्यास को लिखने के अपने उद्देश्य, प्रक्रिया और शोध कार्य को स्पष्ट करते हुए कहा कि, बिना किसी सन्दर्भ सूत्र के नागाओं के प्रत्यक्ष अनुभवों को इसमें समेटा गया है।
डॉ. वर्मा ने बताया कि, उन्होंने अजिंठा ग्राम जाकर तथ्यों को इकट्ठा किया और लंदन से शोध-पत्र मंगवा कर इस उपन्यास पर शोधात्मक कार्य किया।
अध्यक्षीय उद्बोधन में वरिष्ठ व्यंग्यकार एवं सम्पादक प्रेम जनमेजय ने कहा कि दोनों ही उपन्यासों की एक बात मिलती-जुलती है कि, दोनों ही शोध परक हैं और प्रेम पर आधारित हैं। विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ पत्रकार हीरालाल नागर ने दोनों ही उपन्यासों को ऐतिहासिक दस्तावेज बताया। उन्होंने कहा कि, संतोष श्रीवास्तव को यह उपन्यास लिखने की जरूरत न पड़ती, यदि इसमें प्रेम न होता विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप श्रीवास्तव ने ‘रॉबर्ट गिल की पारो’ के लिए कहा कि अजंता की गुफाओं के भित्ति चित्रों को खोजने और उस पर कार्य करने के लिए रॉबर्ट गिल पर लिखी यह प्रथम पुस्तक है।

कार्यक्रम का आरंभ श्रीमती वंदना रानी दयाल ने सरस्वती वंदना तथा मंच की पूर्व निदेशक डॉ. सविता चड्ढा ने स्वागत वक्तव्य से किया। दिल्ली इकाई की अध्यक्ष श्रीमती शकुंतला मित्तल ने संस्था के उद्देश्य सबके समक्ष रखे। संचालन डॉ. कल्पना पांडे नवग्रह ने किया। आभार वीणा अग्रवाल ने सुंदर पंक्तियाँ सुना कर किया।

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