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स्त्री हूँ ना

सुखमिला अग्रवाल ‘भूमिजा’
मुम्बई(महाराष्ट्र)
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महिला दिवस स्पर्धा विशेष……

स्त्री हूँ ना मैं,
हृदय में अंकित चित्रों को
शब्दों में पिरोना,
कहाँ जान पाई हूँ,
घुमड़ते भावों के सागर को,
सीखा मैंने तो पी जाना
भीगी पलकों पर मुस्कुराहट,
सजा लेना।
बचपन से सुनती आई हूँ,
पराए घर जाना है
यह घर तुम्हारा नहीं।
तब भी चाहा,प्रश्न पूछूं,
उमड़ते प्रश्नों को बरसने दूं
सीखा ही नहीं किंतु,
प्रतिकार करना।
वेदना को आँसूओं में बहा देना,
बस यही तो सीखा है मैंने
छुप-छुपकर पीड़ा को पी जाना,
यही तो देखा है मैंने।
अपनी माँ को,
वो जो माँ के ‘तुम’ हैं ना…
माँ के लिए वह भी तो,
एक अनसुलझी पहेली हैं।
देखा है मैंने माँ की पलकों के,
तट बंधों पर ज्वार से उमड़ते हुए
और फिर मेरा दूसरा घर…
किंतु यह घर भी मेरा कहां है ?
खूबसूरत पेन्टिंग-सी सजा दी गई हूँ,
इस घर का कोई कोना
मुझे अपना-सा मानता ही नहीं,
अनुत्तरित प्रश्नों का बोझ
कभी न पूछे गए,ना कभी सुलझे।
निस्तब्ध खामोशी,
बस खामोशी ओढ़ ली मैंने
सदा के लिए,
और तुम…!
सब कहते हैं-तुम मेरे सब कुछ हो,
मैं केन्द्र तुम मेरी धुरी हो,
सच कौन जान पाया।
क्या ये सच नहीं कि,
तुम मेरे केन्द्र और मैं तुम्हारी धुरी हूँ…
वेदना,पीड़ा,दर्द,टूटे ख्वाब लेकर,
तुम्हारे इर्द-गिर्द,तुम्हारे घर में,
अवनि की तरहा…निस्तब्ध…॥

परिचय-सुखमिला अग्रवाल का उपनाम ‘भूमिजा’ है। आपका जन्म स्थान जयपुर (राजस्थान) एवं तारीख २१ जुलाई १९६५ है। वर्तमान में मुम्बई स्थित बोरीवली ईस्ट(महाराष्ट्र)में निवास,जबकि स्थाई पता जयपुर ही है। आपको हिंदी,मारवाड़ी व अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। हिंदी साहित्य व समाज विज्ञान में स्नातकोत्तर के साथ ही संगीत में मध्यमा आदि की शिक्षा प्राप्त की है। नि:शुल्क अभिरुचि कक्षाएं चला कर पढ़ाने के अलावा महिलाओं को जागृत करने के कार्य में भी आप सतत सक्रियता से कार्यरत हैं। लेखन विधा-काव्य (गीत,छंद आदि) एवं लेख,संस्मरण आदि है। १० साँझा संग्रह में इनकी रचनाएँ हैं तो देश के विभिन्न स्थलों से समाचार पत्रों में भी स्थान मिलता रहता है। लगभग २५० सरकारी,गैर सरकारी संस्थाओं से आपको सम्मान व पुरस्कार मिल चुके हैं। ब्लॉग पर भी सक्रियता है,तो विशेष उपलब्धि प्रकाशित रचनाओं पर प्राप्त प्रतिक्रिया से मनोबल बढ़ना व अव्यक्त खुशी मिलना है। सुखमिला अग्रवाल की लेखनी का उद्देश्य-सर्वप्रथम आत्म संतुष्टि तो दूसरा-विलुप्त होती जा रही हमारी संस्कृति से आने वाली पीढ़ी को परिचित करवाना,महिलाओं को जागृत करना तथा उदाहरण प्रस्तुत करना है। इनके पसंदीदा लेखक सभी छायावादी रचनाकार हैं,तो प्रेरणापुंज-आदर्श स्वतंत्रता सेनानी नानी,पिता एवं बड़े भाई हैं।
हिंदी के प्रति विचार-‘हिंदी मेरी माँ है,मित्र है,संरक्षक है,मेरा दिल,दिमाग,आत्मा है।’

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