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त्याग की मूरत हैं माँ-बाप

कविता जयेश पनोत
ठाणे(महाराष्ट्र)
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धरती पर त्याग और स्नेह की मूरत है माँ-बाप,
सूरज बन रोशन करें
अन्न,पानी,दे पोषण करें,
दिन-रात एक कर पूरे करें
अपनी संतानों के ख्वाब।
एक बीज से पौधा बना,
दुनिया में अस्तित्व हमारा बनाए
बुढ़ापे में बन दादा-दादी,
लाड़ लड़ाए नन्हों के।
जीवन के अन्तिम छोर तक,
निःस्वार्थ ये करते रहते त्याग
दुनिया के इस बाजार में जहाँ,
बिकता हो ईमान भी चन्द रुपयों में
वहाँ कौन कर पाता है त्याग ऐसा।
बोलो संतानें भी बदल दे रंग अपना,
जब खाली हो माँ-बाप की जेब में पैसा।
लेकिन माँ-बाप-सा त्याग नहीं कोई कर पाता,
जिन बेटों ने उन्हें ठुकराया,
उन्हीं ने उनकी संतानों को कलेजे का,
टुकड़ा बना गले से लगाया।
त्याग की पावनता का उदाहरण,
माँ-बाप से अच्छा कौन ?
भला संसार में है,
क्या समझा पाया॥

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