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पिता की यादें

डॉ. वंदना मिश्र ‘मोहिनी’
इन्दौर(मध्यप्रदेश)
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‘पिता दिवस’ २१ जून विशेष

यह मेरी नियति की मुझे मेरे पिता का प्रेम बहुत लंबे समय नहीं मिल पाया,आज जब में उम्र के इस दौर से गुजर रही हूँ तो पिता के साथ की आवश्यकता महसूस होती है। पिता की यादें मेरे हृदय में कई दफा उभरती हैं।हालांकि,मेरे पिता आज के पिता की तरह आधुनिकता में रचे बसे नहीं थे। उनकी एक आवाज से मैं डर जाया करती थी,कभी उन्होंने मुझसे प्रेम का प्रदर्शन नहीं किया,पर उनके प्रेम की अथाह गहराई को इस उम्र में समझ पायी,जब वो मेरे साथ नही हैं। आज जब भी अपने-आपको अकेला पाती हूँ तो लगता है कि कोई छाया मजबूती से मेरा हाथ थाम कर कहती है कि में हूँ न तेरे साथ..और मैं उठ खड़ी होती हूँ उनके साथ चलने को। अभी भी इतने वर्ष के बाद भी स्वप्न में उनको देखा करती हूँ,पता नहीं क्यों इस अचेतन मन से उनकी स्मृति कभी धूमिल नहीं होती। मुझे लगता है कि,माँ से ज्यादा प्रेम मुझे किसी ने नही किया,पर पिता के मूक प्रेम और स्नेह व सीख से स्वयं को आज सराबोर पाती हूँ। यह मेरी पसंदीदा तस्वीर है…और इन तस्वीर में मौजूद शख्सियत ने मेरे जीवन को कई दफ़े संभाला था। मुझे आपके तप और संघर्षों का अनुमान है। आपने जिस त्याग से मुझे इस लायक बनाया है,वो संस्कार हमेशा मुझे संबल प्रदान करते हैं।

परिचय-डॉ. वंदना मिश्र का वर्तमान और स्थाई निवास मध्यप्रदेश के साहित्यिक जिले इन्दौर में है। उपनाम ‘मोहिनी’ से लेखन में सक्रिय डॉ. मिश्र की जन्म तारीख ४ अक्टूबर १९७२ और जन्म स्थान-भोपाल है। हिंदी का भाषा ज्ञान रखने वाली डॉ. मिश्र ने एम.ए. (हिन्दी),एम.फिल.(हिन्दी)व एम.एड.सहित पी-एच.डी. की शिक्षा ली है। आपका कार्य क्षेत्र-शिक्षण(नौकरी)है। लेखन विधा-कविता, लघुकथा और लेख है। आपकी रचनाओं का प्रकाशन कुछ पत्रिकाओं ओर समाचार पत्र में हुआ है। इनको ‘श्रेष्ठ शिक्षक’ सम्मान मिला है। आप ब्लॉग पर भी लिखती हैं। लेखनी का उद्देश्य-समाज की वर्तमान पृष्ठभूमि पर लिखना और समझना है। अम्रता प्रीतम को पसंदीदा हिन्दी लेखक मानने वाली ‘मोहिनी’ के प्रेरणापुंज-कृष्ण हैं। आपकी विशेषज्ञता-दूसरों को मदद करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिन्दी की पताका पूरे विश्व में लहराए।” डॉ. मिश्र का जीवन लक्ष्य-अच्छी पुस्तकें लिखना है।

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