विजय मेहंदी
जौनपुर(उत्तरप्रदेश)
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गुरु ही तो रसखान है,
गुरु ही गुण की खान।
गुरु ही देता ज्ञान,
गुरु से ही संज्ञान।
गुरु ही जीवन का दर्शक,
गुरु ही पथ-प्रदर्शक।
गुरु ही माली फुलवारी औ-,
बालवाड़ी का आकर्षक।
गुरु से ही कला उपजे,
गुरु से ही सतज्ञान।
गुरु से ही जीवन लीला,
गुरु से ही विज्ञान।
गुरु ही कृपा निधान है,
सत-गुरु ही भगवान।
गुरु से बढ़ती आन है,
गुरु से ही सम्मान।
गुरु की महिमा सर्वोपरि,
गुरु से ही कल्याण।
गुरु ज्ञान से परिपूर्ण हो,
कोई बनता है विद्वानll