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हल्दी घाटी

बाबूलाल शर्मा
सिकंदरा(राजस्थान)
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‘महाराणा प्रताप और शौर्य’ स्पर्धा विशेष……….


सदी सोल्हवीं मुगल काल में,
अकबर का भारत पर राज।
झुके बहुत राजे रजवाड़े,
माना मुगल राज सरताजll

आन मान मेवाड़ धरा का,
गढ़ चित्तौड़ अनोखी शान।
उदय सिंह मर्यादा पाले,
बप्पा रावल वंश महानll

स्वाभिमान मेवाड़ी अखरा,
कुपित हुआ अकबर सुल्तान।
पन्द्रह सौ अड़सठ में घेरा,
गढ़ चित्तौड़ लिए अरमानll

जयमल पत्ता बड़े लड़ाके,
राणा के हित के राठौर।
गढ़ उनको सँभलाकर राणा,
कूच किया कुंभलगढ़ ओरll

गढ़ जीता अकबर ने ऐसे,
अपनी सेना धाक जमाय।
उदय सिंह ने नगर बसाया,
झील समीप उदयपुर जायll

साल बहत्तर पन्द्रह सौ में,
उदय सिंह का हो अवसान।
वीर प्रताप बने राणा तब,
मातृभूमि की लेकर आनll

अकबर चाहे बिना युद्ध के,
राणा मुझे मिले हर हाल।
दूत पठाया समझाने को,
उसने कुरची खान जलालll

असफल रहा प्रयास खान का,
भेजा मानसिंह कछवाह।
स्वाभिमान राणा का ऊँचा,
क्या करता इनकी परवाहll

टोडर मल भगवंत दास भी,
लौटे निष्फल दूत प्रयास।
बात नहीं माने राणाजी,
अकबर की तब टूटी आसll

सेना भेजी तब मुगलों की,
मानसिंह थे नायक साथ।
राणा भी तैयार खड़े थे,
हो दुश्मन से दो दो हाथll

कुंभल गढ़ से चल गोगुंदा,
राणा आ पहुंचे खमनोर।
माँडल गढ़ मुगलों का डेरा,
बढ़ता चले युद्ध की ओरll

जून अठारह सन पन्द्रह सौ,
साल छिहेत्तर की यह बात।
मुगल और मेवाड़ी सेना,
बेकाबू होते जज्बातll

हल्दी घाटी समरांगण में,
सेना थी दोऊ तैयार।
शाही लश्कर था मुगलों का,
इत राणा रजपूत सवारll

भारी सेना थी अकबर की,
सेनापति मुगलों के मान।
भील लड़ाके थे राणा के,
केसरिया अरु वीर जवानll

उभय पक्ष रजपूत समर में,
त्याग वीरता की पहचान।
मातृभूमि हित,अड़ता राणा,
लड़ता मान,मुगलिया मानll

आसफ खाँन बदाँयूनी भी,
लड़ते समर मुगलिया शान।
शक्ति सिंह भी बागी होकर,
थाम चुका था मुगल मचानll

एक ओर सम्मान धरा का,
दूजी ओर मुगल अरमान।
आन बान अविचल राणा की,
मुगल कमान सँभाले मानll

शान बान राणा की अपनी,
रखते आए ऊँची आन।
मुगलों की सेना से उसने,
कीन्हा युद्ध बड़ा घमसानll

जित राणा अरु चेतक निकले,
मुगलों में हो हाहा-कार।
थर-थर काँपे मुगल सिपाही,
सह न सके रजपूती वारll

रामदास राठौड़ सँभाले,
योद्धा जयमल का था पूतl
मुगल सैन्य को यूं संहारे
जैसे कूद पड़ा यम दूत!!

तीन पुत्र मय रामशाह भी,
राणा की सेना के शूरl
तँवर वंश के अजब लड़ाके,
दुनिया में जो थे मशहूर!!

जगन्नाथ कछवा माधोसिंह,
पीछे मुल्ला काजी खान।
मुगलों की सेना के नायक,
ढूँढ रहे जीवन का दान!!

सैय्यद मिहिर खान के साथी,
साँभर संग लोनकर राव।
खान हुसैनी फौजदार भी,
मुगल फौज को देते ताव!!

भीम सिंह डोड्या ने कूटे,
उन तीनों के दल कर भंग।
इत उत भाग रहे तीनों ही,
छूट गया वह शाही रंग!!

मुगल सैन्य विचलित जब होती,
धीरज दे कछवाहा मान।
हाथी के हौदे पर बैठा,
बीच समर जैसे शैतान॥

हाथी राम प्रसाद वहीं पर,
ताक रहा था अवसर एक।
मिले इशारा कब राणा का,
मुगल अश्व मारूँ प्रत्येक॥

गज मुक्ता लोना का साथी,
दोनों जूझ रहे संग्राम।
रण मदार को पीछे रखा,
तब तक कर ले वह आराम॥

जब ललकार भरे राणा जी,
होते सजग भील सरदार।
मुगलों के तोते उड़ जाते,
काँपे कछवाहा किरदार॥

तारा चंद शाह भी संगत,
भाई जिनके भामाशाह।
मन्ना झाला अमर वंश का,
वह करता किसकी परवाह॥

राणा कीका लड़े समर में,
होकर चेतक पीठ सवार।
भारी भरकम कर ले भाला,
एक हाथ थामे तलवार॥

भाला इक्यासी का कर में,
कवच बहत्तर किलो सँवार।
सेर एक सौ दस के राणा,
पचपन किलो खडग का भार॥

उसको लेकर चेतक दौड़े,
रण में कूदे नौ नौ ताल।
दुश्मन दल में शोर मचे तब,
भागो भागो आया काल॥

गज सुण्डी चेतक के लटके,
होते भ्रमित मुगलिया वीर।
भरे चौकड़ी चेतक रण में,
अरिदल होता तभी अधीर॥

पूँजा भील लड़ाका भारी,
राणा का वह था मनमीत।
तीर बाण के संग सदा ही,
गाता था बस रण के गीत॥

पूँजा संगत भील लड़ाके,
बरछे तीर लिए तलवार।
अजब शौर्य लड़ते भीलों का,
कटने लगे मुगल सरदार॥

भीलों की रण सिद्ध चपलता,
तिरछी चाल यथा खरगोश।
राणा की जय-जय कहते ही,
बढ़ जाता था जिनका जोश॥

भीलों के तीरों की वर्षा,
जैसे मेघ मूसलाधार।
भगदड़ मचती मुगल सैन्य में,
भील लड़ाके छापामार॥

खून खौलता अफगानों का,
दुश्मन का दुश्मन ही मीत।
राणा की सेवा में तत्पर,
मुगल सैन्य से सच विपरीत॥

सूरी हाकिम खान दागता,
तोपें गोले बारम्बार।
तोप सामने जो भी आते,
मुगलों की होती बरछार॥

नई-नई टुकड़ी मुगलों की,
बदल रहे नायक शमशीर।
नई चाल चलते वे रण की,
याद करे अपनी तकदीर॥

तोप धमाके भील लड़ाके,
मुगल अश्व हाथी बदकार।
मानसिंह बे चैन हो गया,
उत काँपे अकबर दरबार॥

तीर तोप बरछे अरु गोफन,
भाले तलवारों के वार।
हल्दी घाटी हर हर गूँजे
पीली पड़ी मुगलिया धार॥

अफगानी वो वीर तोपची,
राणा का था बाँया हाथ।
उसने अपना धर्म निभाया,
मरते दम राणा के साथ॥

एक भील गिरता जब रण में,
गुर्रा उठता हर अफगान।
एक पठान घिरा जो रण में,
आते त्वरित भील ले बान॥

राजपूत कट कट कर गिरते,
होती नहीं पक्ष पहचान।
मेवाड़ी धड़ लड़े शीश बिन,
भील थामते या अफगान॥

राणा के दो-दो सैनिक ही,
मुगल भले ही हों छ: चार।
उभय पक्ष में मचता रहता,
घायल सैनिक चीख पुकार॥

जोश भरा जाता वीरों में,
सुन-सुन राणा की ललकार।
चेतक की टापों से होते,
घोड़े मुगल हीन बदकार॥

उभय पक्ष का रक्त बहा था,
हल्दी घाटी रण के बीच।
पाँव सने घोड़ों के उछटे,
वर्षा जैसे खूनी कीच॥

भारी मार मची समरांगण,
जूझे योद्धा वीर तमाम।
मुगलों ने तब युक्ति निकाली,
बचे मुगल योद्धा इस्लाम॥

हो उन्मादी लड़े मुगल तब,
शैतानी बनकर यमदूत।
पक्ष-विपक्ष भूल कर काटे,
गिरने लगे वीर रजपूत॥

उभय पक्ष रजपूते मरते,
देखे चकित मुगलिया चाल।
रक्त उबल आया राणा का,
आँखें हुई क्रोध से लाल॥

शेर दहाड़े वन मे जैसे,
राणा ने तब की हूँकार।
सँभलों वीरों धरा बचाओ,
अरिदल की सेना संहार॥

किया इशारा फिर चेतक को,
चेतक ने भर लई उछाल।
रख दी टाप मान गज मस्तक,
राणा ने फेंका तब भाल॥

गज हौदे में छुपा मान तब,
खाली गया वीर का वार।
हस्तिदंत असि लगकर घायल,
हुआ अश्व चेतक लाचार॥

भाला दूर गिरा था जाकर,
मरते मुगल वहीं बाईस।
थर-थर काँपे मान कछावा,
अब की प्राण बचे अवनीश॥

इकला राणा मुगल घनेरे,
खूब लड़ा रण में रणधीर।
जित तलवार चले राणा की,
गिरती वहीं मुगल शमशीर॥

टिड्डी दल सी मुगल सैन्य थी,
कटे बीस आते पच्चीस।
काट काट कर राणा थकते,
सहस्त्र मुगल हुए बिन शीश॥

राणा घायल थकित समर में,
चेतक होता लहूलुहान।
झाला मान वंश बलिदानी,
आया बीच समर में मान॥

झाला बोला हे राणा जी,
घायल चेतक हुआ तुरंग।
समर क्षेत्र से बाहर जाओ,
हम लड़ते मुगलों के संग॥

राणा बोला नही हटूँगा,
जब तक चलती मेरी श्वाँस।
मातृभूमि का मै विश्वासी,
चेतक पर मुझको विश्वास॥

मार भगाऊँ दुश्मन को मैं,
रखनी है मेवाड़ी शान।
कैसे कर्तव्यों को भूले,
एकलिंग का यह दीवान॥

झाला ने अपना प्रण रोपा,
जैसे हो अंगद का पाँव।
एकलिंग की शपथ दिलाई,
मातृभूमि हित बचना ठाँव॥

राणै का सिरछत्र सँभाला,
बचा वीर मेवाड़ प्रताप।
पलक झपकते टूट पड़ा वह,
मुगलों पर बन के संताप॥

बलिदानी कुल वंश प्रथा वह,
एकलिंग का कर मन जाप।
अमर हुआ राणा के बदले,
निज कुरबानी देकर आप॥

मुगलों की भारी सेना अरु,
मक्कारी की चलते चाल।
हल्दीघाटी रक्तिम सारी,
रजपूती सेना थी काल॥

दशा देख राणा चेतक की,
करें पलायन ईश सहाय।
शीश भोम दोनों बच पाएँ
ऐसी जुगत लगाते जाय॥

पथ में गहरा नाला आया,
वीर गया मन में घबराय।
स्वामी को ले फाँदाँ चेतक,
शान बचाये प्राण गवाँय॥

आन बान को खूब निभाया,
चेतक स्वामिभक्त बलवान।
राणै नैन मेघ से झरते,
चेतक सखा वीर वरदान॥

चेतक की गर्दन से लिपटे,
वा रे एकलिंग दीवान।
जब तक धरती सूरज चंदा,
राणा-चेतक अमर निशान॥

पीछा करते आए सैनिक,
शक्तिसिंह की पड़ी निगाह।
मार गिराये उनको शक्ता,
राणा हुए शक्ति आगाह॥

शंका के सब मेघ छँटे तब,
लौटा भ्रातृभाव विश्वास।
पाँव धरा पर थे दोनों के,
ताक रहे नैना आकाश॥

शक्तिसिंह भ्राता से मिलते,
राणा मिले भुजा फैलाय।
चारों आँखें झर झर बहती,
आँसू जल चेतक नहलाय॥

पाए शक्ता बंधु प्रतापी,
राणा मिले शक्ति बलवान।
दो-दो बेटे मातृभूमि के,
मेवाड़ी धरती धनवान॥

राम-भरत सा मिलन अनोखा,
‘जनम भूमि’ के ये अरमान।
शक्ता ने घोड़ा निज देकर,
रखे धरा के आन गुमान॥

आन बान अरु शान बचाई,
मातृभूमि राणा की जान।
वाह बंधु शक्ता अभिमानी,
रजपूती असली पहचान॥

युद्ध समापन हुआ शाम को,
लौटे शिविरों में रणधीर।
मुगलों के लश्कर भी लौटे,
याद सालती लेकर पीर॥

युद्ध विजेता किसको कह दूँ,
धर्म विजेता शक्ति प्रताप।
ऐसे वीर हुए जिस भू पर,
हरते मातृ भूमि संताप॥

वन वन भटका था वो राणा,
मेवाड़ी रजपूती भान।
हरे घास की रोटी खाकर,
रखता मातृभूमि की आन॥

जीवित है कुल यश मर्यादा,
राणा ऐसा वीर महान।
आजादी के पथ दर्शक का
करता विश्व सदा गुणगान॥

धन्य धन्य मेवाड़ी धरती,
राणा एकलिंग दीवान।
गढ़ चित्तौड़ उदयपुर वंदन,
हल्दी घाटी धरा महान॥

धन्य सपूत दिये जो रण में,
आहुति प्राण बिना परवाह।
सर्वस देकर जिसने अपना
धन्य वीर वर भामाशाह॥

नमन करूँ उन सब वीरों को,
राजस्थानी छोड़ी छाप।
नमन करूँ मँगरा चट्टानें,
पड़ी जहाँ चेतक की टाप॥

वीर छंद वीरों को अर्पित,
और समर्पित शारद माय।
भारत माता वंदन करता,
ऐसे वीर सदा निपजाय॥

मन के भाव शब्द बन उभरे,
लिखता शर्मा बाबू लाल।
चंदन माटी हल्दीघाटी,
उन्नत सिर मेवाड़ी भाल

जून अठारह सन पन्द्रह सौ,
साल छिहेत्तर की है बात।
महाराणा प्रताप प्रतापी,
मायड़़ की अनुपम सौगात॥

परिचय : बाबूलाल शर्मा का साहित्यिक उपनाम-बौहरा हैl आपकी जन्मतिथि-१ मई १९६९ तथा जन्म स्थान-सिकन्दरा (दौसा) हैl वर्तमान में सिकन्दरा में ही आपका आशियाना हैl राजस्थान राज्य के सिकन्दरा शहर से रिश्ता रखने वाले श्री शर्मा की शिक्षा-एम.ए. और बी.एड. हैl आपका कार्यक्षेत्र-अध्यापन(राजकीय सेवा) का हैl सामाजिक क्षेत्र में आप `बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ` अभियान एवं सामाजिक सुधार के लिए सक्रिय रहते हैंl लेखन विधा में कविता,कहानी तथा उपन्यास लिखते हैंl शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र में आपको पुरस्कृत किया गया हैl आपकी नजर में लेखन का उद्देश्य-विद्यार्थी-बेटियों के हितार्थ,हिन्दी सेवा एवं स्वान्तः सुखायः हैl

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