राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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चीन से हाय ‘कोरोना’ आया है,
कितनी तबाहियां लाया है।
सारा विश्व हिला रख दिया,
अच्छा आतंक मचाया है।
सभी फोन पर कुशल-क्षेम,
पूछ रहे हैं एक-दूजे की।
सफाई,सुरक्षा,संयम,सर्तकता,
सबने सबको समझाया है।
कल तक जो बड़े व्यस्त थे,
अपनी धुन में रहते थे।
आज सभी वह साथ-साथ हैं,
घर अब घर में समाया है।
पल-पल दौड़ रही थी जिंदगी,
सब-कुछ ठहर गया अब जैसे,
फीके रिश्तों में मिठास भर,
रिश्तों का एहसास कराया है।
एक नन्हें से विषाणु से,
कांप रही मानव-जाति।
दुनिया मुट्ठी में रखने के,
भ्रम से अब पछताया है।
घर में रहना ही बचाव है,
डॉक्टर और दुआ ही साथ है।
अपनी सुरक्षा अपने हाथ है,
ये हर घर में अलख जगाया है।
मदद करें हम एक-दूजे की,
खाना,कपड़ा या पैसों की।
मानवता का धर्म यही है,
यह धर्म सभी ने अपनाया है॥
परिचय-राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।