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न जाने कितने सपने

डॉ. रचना पांडे,
भिलाई(छत्तीसगढ़)
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काव्य संग्रह हम और तुम से


ना जाने कितने सपने आँखों में लिए,
हम तुम साथ-साथ चल दिए।
तुमने मुझे अपनाया,
अपने करीब लाया,
अब जिंदगी से मुझे कुछ ना चाहिए,
जीवनभर बस तेरा साथ चाहिए।
कभी कुछ मैं कहूं कभी कुछ तुम कहो,
इस अविरल सफर में।
कुछ दूर मैं चलूं कुछ दूर तुम चलो,
जाने क्यूँ थे एहसास हुआ।
ढलती उम्र में तेरा साथ हुआ,
तुम्हारी एक हँसी से बगिया का पत्ता काँप गया
धीरे-धीरे मेरा मन भी उम्र के पड़ाव को भांप गया।
उलझ गए थे कुछ इस तरह जिम्मेदारियों में,
बातें हो जाती थी कुछ इस कदर इशारों में
हाथ पर हाथ रखा जब तुमने,
तो मालूम हुआ कि
अनकही बातों को भी सुना जाता है।
अनजानों से झिझक थी फिर भी बोलना शुरु कर दिया,
तभी कानों ने कुछ सुना और जुबां ने शब्दों को बांध दिया।
अविरल बहने वाली धरा ने,
वर्षों की थकान को समेटने में
कुछ क्षण गुजार दिए।
ना जाने कितने सपने आँखों में लिए,
हम-तुम साथ चल दिए॥

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