अनुराधा पाण्डेय
नई दिल्ली
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काव्य संग्रह हम और तुम से…..
नैन भर बस बोलते थे,
पावनी थी प्रीत कितनी ?
मौन हम भी,मौन तुम भी॥
एक-दूजे को बसाए,
नित रहे द्वय धड़कनों में।
कल कहेंगे,कल कहेंगे,
रह गए हम उलझनों में।
अंत तक पर बँध न पाई,
देह परिणय बंधनों में।
अन्य ने कर जब गहा था,
थी घड़ी विपरीत कितनी ?
मौन हम भी,मौन तुम भी…।
प्राण ही जब लुट गया था,
वेदना कैसे न होती ?
हाय! तुमको खो दिया जब,
यंत्रणा कैसे न होती ?
सुन्न बोलो! बिन तुम्हारे,
चेतना कैसे न होती ?
उफ! लगी तब थी किसी की,
यातनामय जीत कितनी ?
मौन हम भी,मौन तुम भी…।
एक युग तो हो गया है,
आज उस बीते प्रलय का।
ओह! दारुण क्लेश कितना,
हो रहा हारे हृदय का।
क्षीण बल लेकिन न अब तक,
हो सका पावन प्रणय का।
सोचते हैं,थी बलित पर-
प्रेम से वो रीत कितनी ?
मौन हम भी,मौन तुम भी…।
नैन भर बस बोलते थे,
पावनी थी प्रीत कितनी ?
मौन हम भी,मौन तुम भी…॥