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बस इतना सा था इलाज अपना

डॉ. प्रो. मीनू पाण्डेय ‘नयन’
भोपाल (मध्यप्रदेश)
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काव्य संग्रह हम और तुम से


उन सघन व्याकुल से क्षण में,
तिमिर से लदे गहनतम वन में
कुछ उन वीभत्स उन्मादी पल में,
नयनों से बहते से जल में।
सुन लेते तुम जो साज अपना,
बस इतना सा तो था इलाज अपना।

कभी रूठ कर तुमसे रोई,
कभी चिंता में पूरी रात न सोई
किसी अनहोनी से डरा हुआ मन,
दंश सा चुभता काँटा कोई।
कह लेते तुम मुझको अपना,
बस इतना सा तो था इलाज अपना।

उन अधीर व्यथित लम्हों में,
जमाने की पीर पर्तों में जमे गमों में
पहुंचो कभी तो चीर आवरण,
उन व्यथाओं के जो कही नगमों में।
विदित कभी कर देते जो नयना,
बस इतना सा तो था इलाज अपना।

सदा तुम्हीं संग आश्रय पाकर,
खुद को हरदम तुम पर लुटाकर
प्रेम धर्म ही सदा निभाया,
पास लाए तुम्हें दूर जा जाकर।
तुम भी बनाते सबल बंधन अपना,
बस इतना सा तो था इलाज अपना।

जब जब हमें तुम याद आते,
बिन कहे तुम ही गर पास आ जाते
बिना जताए प्रेम भी कैसा,
काश तुम्हारा प्रेम प्रदर्शन पाते।
बाहुपाश में लेकर ले लेते जो चुंबन अपना,
बस इतना सा तो था इलाज अपना।

सारे जग से मोह नहीं है,
तेरी प्रीत की टोह नहीं है
हमें नहीं भाती वो दुनिया,
जिसमें मिलन विछोह नहीं है।
देते जो कुछ मधुरिम क्षण अपना,
बस इतना सा था इलाज अपना…॥

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