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मुझे एक मशाल दे दो

नमिता घोष
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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जब-जब भी मैं देखती हूँ,
निर्वासित करती हुई सती नारियाँ
बलात बिस्तर बनाई जाती है लड़कियाँ,
पौरुष के पहाड़ों से जूझती हुई कोमलांगी वादियाँ
पति के प्रबंधन में पदार्थ बनती बेटियाँ।
मेरे भीतर चीख उठती है,
सदियों से घनीभूत होती आई है
निराश्रित,पुरूष भक्ति पीड़ित नारियों के वे विलाप,
हाहाकार,क्रंदन और अरण्य रोदन
और टूटने लगती है मेरी खामोशी।
लगता है चीत्कार कर उठूँ,
और इसके पहले कि मेरी आवाज के अंतिम स्वर भी इतिहास के अम्बार में खो जाएँ,
मुझे एक आवाज दे दो।
मुझे एक चिंगारी दे दो,
मुझे एक मशाल दे दो॥

परिचय-नमिता घोष की शैक्षणिक योग्यता एम.ए.(अर्थशास्त्र),विशारद (संस्कृत)व बी.एड. है। २५ अगस्त को संसार में आई श्रीमती घोष की उपलब्धि सुदीर्घ समय से शिक्षकीय कार्य(शिक्षा विभाग)के साथ सामाजिक दायित्वों एवं लेखन कार्य में अपने को नियोजित करना है। इनकी कविताएं-लेख सतत प्रकाशित होते रहते हैं। बंगला,हिन्दी एवं अंग्रेजी भाषा में भी प्रकाशित काव्य संकलन (आकाश मेरा लक्ष्य घर मेरा सत्य)काफी प्रशंसित रहे हैं। इसके लिए आपको विशेष सम्मान से सम्मानित किया गया,जबकि उल्लेखनीय सम्मान अकादमी अवार्ड (पश्चिम बंगाल),छत्तीसगढ़ बंगला अकादमी, मध्यप्रदेश बंगला अकादमी एवं अखिल भारतीय नाट्य उतसव में श्रेष्ठ अभिनय के लिए है। काव्य लेखन पर अनेक बार श्रेष्ठ सम्मान मिला है। कई सामाजिक साहित्यिक एवं संस्था के महत्वपूर्ण पद पर कार्यरत नमिता घोष ‘राष्ट्र प्रेरणा अवार्ड- २०२०’ से भी विभूषित हुई हैं।

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