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मैं मजदूर…बहुत मजबूर

अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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मैं हर नींव का मजदूर,बहुत मजबूर,
पेट की खातिर,हर खुशी से-घर से दूर।

बहता हर सुबह-शाम मेरा पसीना,
मुश्किल हुआ रोटी की खातिर जीना।

मजबूर,पर नहीं हारता हिम्मत कभी,
नींव से ताजमहल तक सृजन मेरे सभी।

संतोषी हूँ दिल से,लालच करता नहीं,
करुँ महल खड़े,पर पेट भरता नहीं।

मैं गरीब,सदा बेबस-कैसी लाचारी,
फुटपाथ ही जिंदगी,किसको फिक्र हमारी।

देखे सबके नारे-वादे,समझे इरादे भी,
सिर्फ़ बातें,कल भी-आज भी-कल भी॥

बेहतर जिंदगी चाहिए हमें कल भी,
सुखद आसरा चाहिए कल भी,आज भी॥

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