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मैं जीवन हूँ

सुख-दु:ख दोनों साथ लिए,आशाओं का आभास लिए,
कभी विचलित कभी अविचल,कभी कल्पना को साथ लिए
कभी थीर कभी कम्पित पग से,कभी गाँव कभी विस्तृत जग से,
आगे बढ़ता जाता हूँ,इसीलिए जीवन कहलाता हूँ।

कभी अगणित कभी गणित सरल,कभी पयस कभी विकट गरल,
कभी तप्त कभी शीतल,कभी मधुर कभी खारा जल
कभी अनन्त कभी निकट व्योम,कभी शून्य तो कभी सरल होम,
मैं ऐसा रुप दिखाता हूँ,इसीलिए जीवन कहलाता हूँ।

कभी आशाहीन कभी संबल,कभी बलवान कभी निर्बल,
कभी ज्ञानी तो कभी अज्ञानी,कभी शिष्ट कभी अभिमानी
कभी उदास तो कभी मस्त,कभी अकेला कभी व्यस्त,
कभी क्षोभ से भर जाता हूँ,इसीलिए जीवन कहलाता हूँ।

मैं तृप्ति हूँ मैं भूख हूँ,कभी पीछे कभी सम्मुख हूँ,
मैं पैदल हूँ मैं हयदल भी हूँ,कभी सुगंध तो कभी मल भी हूँ
मैं रुदन हूँ मैं गीत हूँ,कभी दुश्मन तो कभी मीत हूँ,
मैं बहलता हूँ बहलाता हूँ,इसीलिए जीवन कहलाता हूँ।

मैं राजा हूँ मैं रंक हूँ,मैं ही निष्पाप मैं ही कलंक हूँ,
मैं सन्दर्भ हूँ मैं सारांश हूँ,मैं ही पूर्ण मैं ही अंश हूँ
मैं दयालु हूँ मैं निष्ठुर हूँ,मैं पास तो कभी काफी दूर हूँ,
मैं सीखता हूँ मैं सिखलाता हूँ,इसीलिए जीवन कहलाता हूँ।

मैं वर्तमान हूँ मैं भूत हूँ,मैं आदेशक मैं दूत हूँ,
मैं इलाज हूँ मैं रोग हूँ,मैं हकीकत और संयोग हूँ
मैं अकाल हूँ मैं बाढ़ हूँ,कभी जेठ कभी आषाढ़ हूँ,
मैं नित ये बताता हूँ,इसीलिए जीवन कहलाता हूँ।

मैं शासक हूँ और मैं शासित हूँ,मैं चिरंजीवी और शापित हूँ,
मैं अध्येता मैं अध्यापक हूँ,मैं ही उपासना और उपासक हूँ
मैं पिता हूँ मैं पुत्र हूँ,मैं समाधान का सूत्र हूँ,
मैं ही रचित मैं ही विधाता हूँ,इसीलिए जीवन कहलाता हूँ।

मैं झूठ हूँ मैंं मैं सच्चाई हूँ,मैं वफा मैं बेवफाई भी हूँ,
मैं ही कातिल की सजा,मैं ही रिहाई भी हूँ,
मैं कल हूँ
मैं कल हूँ मैं आज हूँ,मैं ही सुर और मैं ही साज हूँ,
मैं सुनता और सुनाता हूँ,इसीलिए जीवन कहलाता हूँ।

सहर के साथ रोज मैं ये बातें लिखता था,
आँखें खोलते ही तुम्हेंं साफ-साफ दिखता था
ये न कहना कि मैंने तुम्हें बताया ही नहीं,
ये न कहना कि मैंने तुम्हेंं चेताया ही नहीं।

मैंने अपना कर्म किया मेरा कोई दोष नहीं,
मदान्ध मतवाले रहा तुम्हें कभी होश नहीं।
मैं तो पल-पल अपना रुप दिखाता रहता हूँ,
इसीलिए सुनो ‘राय’ मैं जीवन कहलाता हूँ॥

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