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मैं जल हूँ

डॉ. रचना पांडे
भिलाई(छत्तीसगढ़)
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ज से जल जीवन स्पर्धा विशेष…

मेरी एक एक बूँद को यूँ बर्बाद ना करना,
मैं जल हूँ मुझे नजर अंदाज ना करना।
जिस रफ्तार से बहाते हो मुझे,
तुम्हारे कूड़ा करकट डालने से मैं हो जाता हूँ प्रदूषित।
बन जाता हूँ वाहक अनेक दु:ख-दर्द का,
इस तरह मुझे परेशान ना करना।
मैं जल हूँ मुझे…

मेरी स्वच्छ जलधारा कर देती है पवित्र तुम्हें,
प्रकृति के पांच तत्वों में से एक हूँ मैं।
तरस जाओगे एक दिन तुम मेरे लिए,
मिट जाएगा वजूद तुम्हारा मेरे बिन।
जब तड़पता है मनुष्य एक बूंद के लिए
तब यूँ पानी का अपमान मत करना।
मैं जल हूँ मुझे…

पानी बिन सब सून जगत में यह अनुपम धन है,
जल से ही सुंदर अन्न फल पुष्पित उपवन है।
बादल जब अमृत जल लाता है,
सभी के घर-आँगन बरसाता है।
सर्वोत्तम सौंदर्य है यह प्रकृति का,
बनकर मेघ वायुमंडल में छटा बिखेरता।
पर्वत पर हिम बनकर शीत स्पर्श बिखेर जाना,
मैं जल हूँ…मुझे नजरअंदाज ना करना॥

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