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अतुलनीय भारतीय:विपदाओं का विकल्प तलाशें भारतवासी

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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वक्त गुजरता रहता है। वक्त के साथ आबो-हवा माहौल,या कहें कि हालात बदलते रहते हैं। हालांकि,सुख-सुविधा,साधन,सम्पन्नता के प्रति आकर्षण मानवीय स्वभाव के लक्षण हैं,परन्तु अपनी सम्पदा, सम्प्रभुता को खोकर हासिल किए गए सुख-सुविधा,साधन कितने भी समृद्ध क्यों न हों,भविष्य में कभी न कभी नुकसानदायी ही बनते हैं। बदलाव तो नियति के लक्षण हैं,परन्तु इक्कीसवीं सदी में दिख रहे भारतीयता के पारिवारिक परिवेश में बदलाव चिन्तनीय हैं। बहुतायत की संख्या में भारतीय युवा पीढ़ी शिक्षा ग्रहण के नाम पर विदेश जाती है। फिर उनमें से ७५ फीसदी वहीं बस जाते हैं। पाश्चात्य चकाचौंध का आकर्षण उन्हें भाने लगता है। दूसरा बड़ा कारण जो उन्हें दिखता है,वो ये कि वे समझते हैं कि भारत में उनकी योग्यता के अनुसार मानदेय नहीं मिलेगा। इस दुविधा के लिए बहुत हद तक भारतीय राजनीति, वर्तमान शिक्षा प्रणाली,भारतीय इतिहासकार, वर्तमान भारतीय मीडिया आदि सभी जिम्मेदार हैं।
#भारतीय राजनीति-
भारत की आरक्षण नीति,जिसका इस्तेमाल भारत तमाम राजनीतिक दल अपने-अपने फायदे के लिए गलत ढंग से करते हैं,जिसकी वजह से वास्तविक हकदार को वांछित होना पड़ता है। अयोग्य व्यक्ति को आरक्षण नीति के तहत मौका मिलता है। विदेश की नौकरी में जिसे यहां से दस-बीस गुना मानदेय मिलेगा,वो क्यों वापस आएगा।
#शिक्षा प्रणाली-
भारतीय शिक्षा पद्धति में जो स्थान भारतीय आध्यात्म,पौराणिक परम्पराओं शक्तियों का होना चाहिए,वो नहीं है। वर्तमान में शायद ही कोई भी छात्र भारतीय वेद-पुराण,सतयुग,त्रेता या द्वापर काल के बारे में जानता होl नहीं तो पुरातन काल में किस विज्ञान से `रामसेतु` बना,किस विज्ञान से द्वापर युग में भीम ने पाण्डवों के अज्ञातवास के दौरान उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में एशिया के सबसे बड़े `शिवलिंग` का निर्माण किया,किस विधा से अर्जुन ने तैरती मछली की आँख को बिना देखे भेदा। ऐसी ही असंख्य बातें हैं,जिनके बारे में आज के छात्र नहीं जानते। पूजा तो हर कोई श्री राम,श्री कृष्ण,भगवान शंकर की करता है,परन्तु श्रीराम के गुणों को कोई नहीं समझताl श्री कृष्ण,सुदामा,देवकी,नन्द के क्या संबंध थे, कोई नहीं जानता। कहने का आशय ये है कि हमारे भारतवर्ष जैसी महानताएं दुनिया में कहीं नहीं, परन्तु जरूरत है उन्हें उजागर करने की,जो प्राथमिकता के तौर पे शाला के समय से ही बच्चों को ज्ञात हो। इतनी महानताएं जानकर कौन कहीं और जाना चाहेगा।
ऐतिहासिक शिक्षा भी पाठ्यक्रम में अलग-अलग २ तरह की होनी चाहिए-राष्ट्रीय इतिहास (आवश्यक) तथा विश्व इतिहास (एच्छिक),ताकि हर कोई भारतवर्ष की महानताओं से अवगत हो।
#इतिहासकार एवं वर्तमान मीडिया-
हमारे इतिहास में शायद अब तक भारतीय इतिहास को छोड़कर विश्व इतिहास को अधिक महत्व दिया गया है। उसी परिपाटी में वर्तमान मीडिया भी दौड़ लगा रहा है,जबकि आवश्यकता है कि नई पीढ़ी के समक्ष देश के पुरातन इतिहास को उजागर किया जाए। दु:ख होता है यह कहते हुए कि,सदियों की गुलामी से कैसे-कैसे शहीदों ने आजादी ली,परन्तु `सोने की चिड़िया` कहलाने वाला हमारा भारत आज विदेशों की ओर आकर्षित हो रहा है। आज जरूरत है कि प्रत्येक भारतवासी ऐसी विपदाओं का विकल्प तलाशे और भारतवर्ष को विश्व पटल के शीर्ष पर स्थापित करने को संकल्पित हो।

परिचय-हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।

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