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बढ़ती दूरियाँ

डाॅ. मधुकर राव लारोकर ‘मधुर’ 
नागपुर(महाराष्ट्र)

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सामाजिक सम्बन्ध और दूरी स्पर्धा विशेष………..


कोरोना वायरस ने तो आज,
सामाजिक संबंधों में,पैदा कर दी दूरी।
पहले मिलते थे,आपस में,
अब ‘तालाबंदी’ की,है मजबूरी॥

पहले कर्फ्यू,फिर ‘तालाबंदी’,
अब तो इसे,बढ़ाने की है तैयारी।
ससुराल में है,नातिन की शादी,
उफ ये संबंध और कोरोना की महामारी॥

‘स्टे होम,सेव लाईफ’,
नारा है सभी,के लिए संजीवनी।
कोरोना ने हर ली हमारी सामाजिकता,
विकट बनी,सबकी जीवनी॥

घर की देहरी,पार करना,
लक्ष्मण रेखा पार,करने जैसा हुआ।
जरूरत का सामान,लाना और,
सुरक्षित आना,अब सपना हुआ॥

तीज-त्यौहार,धर्म,अर्थ के काम,
सभी के सभी,अब बाधित हुए।
कोरोना से,दूरी रखना यह,
सोच,बाहर निकलना बंद हुए॥

हालात की गंभीरता कुछ,नहीं समझ रहे,
घर छोड़ रहे,लेकर स्वार्थ का सहारा।
सामाजिक संबंधों की, निकटता,
कहीं परिवार को,ना करे बेसहारा॥

सभी के लिए है,उचित सलाह,
गिरफ्त से दूर रहो,कोरोना के।
किसी की भी निकटता,है जोखिम भरी,
घर पर रहो,सुरक्षित रहो,अपनों के॥

परिचय-डाॅ. मधुकर राव लारोकर का साहित्यिक उपनाम-मधुर है। जन्म तारीख़ १२ जुलाई १९५४ एवं स्थान-दुर्ग (छत्तीसगढ़) है। आपका स्थायी व वर्तमान निवास नागपुर (महाराष्ट्र)है। हिन्दी,अंग्रेजी,मराठी सहित उर्दू भाषा का ज्ञान रखने वाले डाॅ. लारोकर का कार्यक्षेत्र बैंक(वरिष्ठ प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त)रहा है। सामाजिक गतिविधि में आप लेखक और पत्रकार संगठन दिल्ली की बेंगलोर इकाई में उपाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-पद्य है। प्रकाशन के तहत आपके खाते में ‘पसीने की महक’ (काव्य संग्रह -१९९८) सहित ‘भारत के कलमकार’ (साझा काव्य संग्रह) एवं ‘काव्य चेतना’ (साझा काव्य संग्रह) है। विविध पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी को स्थान मिला है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में मुंबई से लिटरेरी कर्नल(२०१९) है। ब्लॉग पर भी सक्रियता दिखाने वाले ‘मधुर’ की विशेष उपलब्धि-१९७५ में माउंट एवरेस्ट पर आरोहण(मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व) है। लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी की साहित्य सेवा है। पसंदीदा लेखक-मुंशी प्रेमचंद है। इनके लिए प्रेरणापुंज-विदर्भ हिन्दी साहित्य सम्मेलन(नागपुर)और साहित्य संगम, (बेंगलोर)है। एम.ए. (हिन्दी साहित्य), बी. एड.,आयुर्वेद रत्न और एल.एल.बी. शिक्षित डाॅ. मधुकर राव की विशेषज्ञता-हिन्दी निबंध की है। अखिल भारतीय स्तर पर अनेक पुरस्कार। देश और हिन्दी भाषा के प्रति विचार-
“हिन्दी है काश्मीर से कन्याकुमारी,
तक कामकाज की भाषा।
धड़कन है भारतीयों की हिन्दी,
कब बनेगी संविधान की राष्ट्रभाषा॥”

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