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भारत खंडन को तुले

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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भोजन जल शिक्षा दवा,चाहिए सब निःशुल्क।
वतन विमुख नेतागिरी,तोड़ो अपना मुल्क॥

चिथड़ों में लिपटे हुए,शीत ताप बरसात।
लावारिस की जिंदगी,कोटि-कोटि दिन-रात॥

दिवास्वप्न शिक्षा यहाँ,भूख वसन बिन गेह।
इनकी चिन्ता है किसे,मुफ़्तखोर बस ध्येय॥

धन कुबेर शिक्षा सुलभ,मुफ़्त मिला आवास।
भोजन पानी सब मिले,चढ़े शान आकाश॥

राजनीति चौसर बने,अब शिक्षा संस्थान।
शिक्षक चाहे छात्र हों,विमुख राष्ट्र अवदान॥

हो शिक्षा के नाम पर,केवल राष्ट्र अवमान।
लुटा कोष सरकार निज,जे एन यू को दान॥

दे सपोर्ट आतंक को,गाते अफ़जल गान।
भारत खण्डन पर तुले,मार्क्सवाद बिन ज्ञान॥

दिया समर्थन पाक को,गाली दे निज देश।
टुकड़े-टुकड़े गैंग फिर,सुलगाता उपवेश॥

वामपंथ के नाम पर,जलता शिक्षण स्थान।
तोड़-फोड़ दहशत बने,धूल धुसरित अरमान॥

कवि ‘निकुंज’ ख़ुद का अतीत,गौरवमय सम्मान।
फिर विद्या मन्दिर बने,उच्च शिक्षण संस्थान॥

मार-पीट निज झूठ कपट,इतरेतरर अपमान।
सख्त बने सरकार अब,करे नाश गद्दार॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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