कुल पृष्ठ दर्शन : 183

इंदौरी बेटी ने प्रकाशित की स्वतंत्रता सेनानी पिता के आलेखों की पुस्तक

सर्वाधिक आयु के लेखक के रूप में स्थापित हुआ ‘आर्यावर्त से इण्डिया बरास्ते भारत’ पर विश्व कीर्तिमान

इंदौर(मप्र)।

प्रयागराज(उप्र) निवासी पंडित विश्वम्भरनाथ तिवारी सारे जीवन बेबाक़ी से भारतीय सनातन मूल्यों,संस्कृति और देशहित के लिए शोधपरक शैली में अपने विचारों को लिखते रहे। ज़िम्मेदारियों के कारण कभी पुस्तक प्रकाशन की ओर ध्यान नहीं दे पाए,पर इंदौर में रहने वाली उनकी बड़ी बेटी साहित्यकार श्रीमती पद्मजा बाजपेयी ने लगभग १०२ वर्ष की आयु के पिता की पहली पुस्तक ‘आर्यावर्त से इण्डिया बरास्ते भारत’ प्रकाशित की है,जो सर्वाधिक आयु में प्रथम कृति के लेखक का विश्व कीर्तिमान स्थापित कर गई है।
स्वतंत्रता सेनानी एवं भारत रत्न महामना पंडित मदनमोहन मालवीय के स्वतंत्रता से पूर्व प्रारम्भ समाचार पत्र ‘लीडर’ में उप-संपादक रहे पंडित श्री तिवारी की बेटी श्रीमती बाजपेयी ने पिता के आलेखों की पुस्तक प्रकाशित कर उन्हें भेंट करने की योजना बनाई थी,और अंततः पद्मजा प्रकाशन से यह प्रकाशित हो गई। इनके अनुसार सर्वाधिक आयु में प्रथम कृति प्रकाशन का विश्व कीर्तिमान इंग्लैण्ड की सुश्री बर्था वुड के नाम(सौ वर्ष की आयु में अपनी पहली कृति प्रकाशित) था,अब सभी श्रेणी में रिकॉर्ड श्री तिवारी के नाम है। वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्ड के अध्यक्ष एवं उच्चतम न्यायालय अधिवक्ता संतोष शुक्ला ने यह कीर्तिमान भारतीय के नाम होने पर विशेष प्रसन्नता ज़ाहिर की है।
मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. विकास दवे ने पुस्तक पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि,विश्वम्भरनाथ तिवारी द्वारा रचित पुस्तक ‘आर्यावर्त से इंडिया बरास्ते भारत’ को पढ़ना मानो अपनी जड़ों से जुड़ने और मन में ऊर्जा का स्फूरण पैदा करने जैसी अनुभूति देता है। आज शताधिक वय को प्राप्त करना प्रकृति को तो चुनौती है ही, आधुनिक जीवन शैली के अभिशाप में उलझी नई पीढ़ी के लिए प्रेरणास्पद संदेश भी है। १०२ वर्ष की अवस्था में सक्रिय जीवन जीते हुए लेखन कर्म में प्रवृत्त रहना अत्यंत गौरवशाली विषय है।
श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति के साहित्य मंत्री हरेराम बाजपेयी ने कहा कि उनका अध्ययन बहुत गहन रहा और उनके लेखन में राष्ट्र प्रेम,धर्म के प्रति निष्ठा और संस्कृति के प्रति लगाव स्पष्ट परिलक्षित होता है। उनके लेखन में वे किसी बालक की तरह जिज्ञासु नज़र आते हैं,किसी नवयुवक की तरह अध्यवसायी और किसी प्रौढ़-बुज़ुर्ग की तरह विश्लेषण क्षमता से भरे।
श्री तिवारी की पुस्तक को विश्वविख्यात चित्रकार बिजय बिस्वाल ने नयनाभिराम चित्र से सुसज्जित किया है। श्री तिवारी की पुस्तक अपने कथ्य,शैली और शोधपरकता से भी विद्वानों को प्रभावित कर रही है।

Leave a Reply