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गाँव का भूत

डॉ. सोमनाथ मुखर्जी
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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व्याकरण में काल ३ प्रकार के होते हैं,ऐसा बताया गया है-भूत काल, भविष्य काल और वर्तमान काल। और ज्ञानी लोग कहते हैं कि हमारी दुनिया भी पंच भूत की बनी हुई है, लेकिन न जाने क्यों ‘भूत’ शब्द आने से ही शरीर में एक सिहरन-सी दौड़ जाती है। अगर रात का वक्त हुआ तो लोग अपने आस-पास भी एक बार देख लेते हैं, कि कहीं पर कोई है तो नहीं…।
          मैं दफ्तर में अपने गाँव की बहुत बड़ाई कर रहा था कि, गर्मी के समय हमारे गाँव में अपने घर के पेड़ का पका आम खाने में बहुत मज़ा आता है, उसके आगे बाज़ार के आम का स्वाद बहुत फीका होता है। दफ्तर में मेरे कुछ सहकर्मी जो दोस्त बन गए थे, बोले कि अगले हफ्ते शनिवार और रविवार के साथ सोमवार को भी छुट्टी है। चलो तुम्हारे गाँव के आम का स्वाद जरा चख कर आते हैं। मैंने सहर्ष स्वीकृति दे दी और गाँव में अपने भाई को खबर दे दी कि अगले हफ्ते मेरे २-३ साथी आएँगे। मेरा भाई भी खुश हो गया और मेरे दोस्तों की खातिरदारी की तैयारी करने लगा।
मैं अपने ३ शहरी दोस्तों को गाँव ले गया। हमारे गाँव में गर्मी के समय आम बहुत ही स्वादिष्ट और मीठा हुआ करता है। हम लोग दिन के समय माली से आम तुड़वाकर पानी भरी बाल्टी में रखवा देते थे, फिर शाम के वक्त घर के पास हल्के-से अंधियारे में पेड़ के नीचे रस्सी की खटिया में बैठकर मज़े से आम खाया करते थे। बाजू से एक पगडंडी जाया करती थी, जिससे अक्सर लोग आते-जाते थे।
 एक दिन हम लोग मुँह अंधेरे शाम के वक्त खटिया में बैठकर मज़े से आम खा रहे थे। बहुत तरह के विषय पर चर्चा चलते-चलते बात अंधविसवास तथा भूत-प्रेत, पिशाच आदि में शुरू हुई। मेरे तीनों दोस्त बोलने लगे कि ऐसा कुछ चीज़ होता ही नहीं है। हमने कभी भी भूत-प्रेत नहीं देखा है। कैसे मान लें की वे होते कि नहीं ! हमें इन सब चीजों से डर नहीं लगता है।
          तब मैंने कहा, वास्तव में आप लोग शहर में रहते हैं, ठीक ही कह रहे हैं, क्योंकि शहर की रोशनी में यह सब दिखाई नहीं पड़ता है, पर गाँव के आधे अंधियारे में बहुत समय भ्रम हो जाता है। लोग क्या देख रहे हैं, या क्या दिख रहा है का तार्किक विश्लेषण करने की जगह भय के वशीभूत होकर तरह-तरह की कहानियाँ बनाते हैं। खैर कोई बात नहीं, मैं आप लोगों को अपने गाँव में घटित एक सत्य घटना बता रहा हूँ, आप लोग जरा ध्यान से सुनिएगा।
मैं अपने गाँव की एक घटना के विषय में काफी नाटकीय अंदाज़ में बोलने लगा था, कुछ देर बोलने के बाद मैंने देखा कि आधे अंधियारे में मेरी प्रभावोत्पादक कहानी से माहौल काफी गंभीर हो चला था। शहर से आए तीनों दोस्तों को लगता है कि भय सताने लगा था, इसलिए वे खटिया में एक- दूसरे के साथ सटकर बैठ गए थे। इतने में मेरे २ दोस्त जो पगडंडी की और मुँह किए बैठे थे, एकाएक खटिया से उठकर भूत-भूत चिल्लाते हुए मेरे घर की और दौड़ पड़े…। और तीसरा दोस्त जो था, ने इन दोनों का डरी हुई आवाज में भूत-भूत चिल्लाना सुन कर और उन्हें तेज गति से घर की ओर भागते देखकर खटिया से उठने की पूरी कोशिश की, पर डर के मारे उसके हाथ-पाँव थर-थर कांप रहे थे…। उनमें ताकत भी नहीं थी नतीजतन वो खटिया पर ही मूर्छित हो कर गिर गया।
          मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि माजरा क्या है! मैंने पगडंडी की और देखा तो पाया कि एक मजदूर औरत जिसके हाथों में मिट्टी खोदने के औज़ार हैं, अपने बच्चे को कंधे पर बैठाकर चली जा रही थी। तब मैंने अपना साथी, जो मूर्छित हो गया था उसके मुँह पर पानी का छींटा मार-मार कर होश में ले आया। इतनी देर में मेरे दोनों दोस्त मेरे घर से मेरे भाई और अन्य २ आदमी जिनके हाथों में लाठी थी, को लेकर वापस आ गए थे।
      भाई ने मुझसे पूछा- कहाँ है भूत।
मुझे कुछ समझ में नहीं आया। मैंने पूछा- कौन-सा भूत ?
मेरे भाई ने कहा- दोनों दोस्त बता रहे थे कि दोनों ने भूत देखे, जो पगडंडी से चला जा रहा था।
          मैंने दोस्तों से पूछा- सच में क्या देखा था, जो इतना डर गए और भागकर घर पहुँच गए। तब दोनों ने बताया कि हम लोग देखे कि काली माँ अपने चारों हाथ फैलाए उस पगडंडी से चली आ रही थी और उसके हाथों में अस्त्र-शस्त्र थे। हम लोग उन्हे देख कर बहुत डर गए थे। जो साथी मूर्छित हो गया था, इतने में उसे होश आया तो उसने बताया कि, उसने कुछ भी नहीं देखा था, पर उन दोनों को डर कर भागते देख वह भी डर के मारे बेहोश हो गया था।
          उनकी बातें सुनकर मैं ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगा और बताया कि आप लोग जिसे काली माँ बोल रहे हो, दरअसल वह गाँव की एक मजदूर औरत थी, जो अपने बच्चे को कंधे पर बैठाकर बच्चे से बात करते हुए चली जा रही थी। बात करते-करते वे दोनों खेलने के लिए अपने हाथ फैलाकर आपस में कुछ-कुछ बोलते हुए जा रहे थे, जिसे आप  लोगों ने हल्के अंधेरे में काली माँ के चार हाथ समझा, और फिर बिना कुछ सोचे-समझे भूत-भूत बोलकर चिल्लाकर भाग गए। धन्य हैं आप जो बिना कुछ जाने कर डर कर मूर्छित हो गए। थोड़ी देर पहले तो आप लोग बड़े शेर बन रहे थे! अब क्या हुआ ? आप लोग यह बोलिए कि जब काली माँ को देखा है, तब भूत-भूत बोलकर उनका अपमान क्यों कर रहे थे ? मेरी बात सुनकर मेरा भाई तथा अन्य लोग जो उनके साथ लाठी लेकर आए थे, उनका हँसते-हँसते बुरा हाल हो गया था। मेरे तीनों दोस्त मुँह नीचा किए अपने द्वारा बिना सोचे-समझे कार्य पर पछता रहे थे। यह बात गाँव में फैलते देरी नहीं लगी। मेरे दोस्तों से गाँव के सभी लोग बस एक ही सवाल पूछने लगे कि क्या हुआ था…? मेरे तीनों दोस्त काफी शर्मशार हो चुके थे, और वे लोगों को जवाब देते-देते थक चुके थे। वे लोग घर में काम का बहाना बनाकर दूसरे ही दिन शहर के लिए रवाना हो गए…।    

परिचय- डॉ. सोमनाथ मुखर्जी (इंडियन रेलवे ट्रैफिक सर्विस -२००४) का निवास फिलहाल बिलासपुर (छत्तीसगढ़) में है। आप बिलासपुर शहर में ही पले एवं पढ़े हैं। आपने स्नातक तथा स्नाकोत्तर विज्ञान विषय में सीएमडी(बिलासपुर)एलएलबी,एमबीए (नई दिल्ली) सहित प्रबंधन में डॉक्टरेट की उपाधि (बिलासपुर) से प्राप्त की है। डॉ. मुखर्जी पढाई के साथ फुटबाल तथा स्काउटिंग में भी सक्रिय रहे हैं। रेलवे में सहायक स्टेशन मास्टर के पद से लगातार उपर उठते हुए रेल के परिचालन विभाग में रेल अधिकारी के पद पर पहुंचे डॉ. सोमनाथ बहुत व्यस्त रहने के बावजूद पढाई-लिखाई निरंतर जारी रखे हुए हैं। रेल सेवा के दौरान भारत के विभिन्न राज्यों में पदस्थ रहे हैं। वर्तमान में उप मुख्य परिचालन (प्रबंधक यात्री दक्षिण पूर्व मध्य रेल बिलासपुर) के पद पर कार्यरत डॉ. मुखर्जी ने लेखन की शुरुआत बांग्ला भाषा में सन १९८१ में साहित्य सम्मलेन द्वारा आयोजित प्रतियोगिता से की थी। उसके बाद पत्नी श्रीमती अनुराधा एवं पुत्री कु. देबोलीना मुख़र्जी की अनुप्रेरणा से रेलवे की राजभाषा पत्रिका में निरंतर हिंदी में लिखते रहे एवं कई संस्था से जुड़े हुए हैं।

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