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रिश्तों को खोखला करता है अहंकार

डॉ. वंदना मिश्र ‘मोहिनी’
इन्दौर(मध्यप्रदेश)
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‘अहम’ या अहंकार होना एक सहज प्रवृत्ति है जो समान्यतः बहुत से लोगों में पायी जाती है। जिसमें अहंकार होता है वह अपने बल,बुद्धि,राज्य,भाषा, संस्कृति और अपनी प्रत्येक चीज पर घमंड’ करता है,उन्हें ‘श्रेष्ठतम समझता है और अन्यों को तुच्छ या हीन! इस कारण वह आक्रान्ता(आक्रामक) हो जाता है। वह दूसरों के विचारों पर हमेशा हमला करता है व अपना वजन स्थापित करने की चेष्टा करता है। कई बार ऐसा करते हुए वह इस क्रम में सत्य,न्याय, रिश्ते,मित्रता की भी अवहेलना करता है,जो उसके लिए ही हानिकारक है। इसका मुख्य कारण उसका अहम है। इससे पग-पग पर उसे सन्देह करना, अस्थिर रहना और दूसरों को अपने से सदैव कम आँकना उनका स्वभाव बन जाता है,लेकिन जो स्वाभिमानी होते हैं,वह अपने बल,बुद्धि,राज्य,भाषा, संस्कृति और अपनी प्रत्येक चीज पर ‘गर्व’ करते हैं, उन्हें ‘श्रेष्ठ’ समझते हैं(लेकिन श्रेष्ठतम नहीं) और अन्य की भी इन्हीं चीजों का सम्मान करते हैं। वह दूसरों से भी कुछ-कुछ सीखकर व सहयोग लेकर अपने से जुड़ी हर घटना को और बेहतर बनाने की सतत चेष्टा करते हैं। वह आक्रान्ता नहीं होते,परन्तु अपने पर किए आक्रमण को सहन भी नहीं करते, समुचित प्रत्युत्तर अवश्य देते हैं। प्रत्येक दशा में वह सत्य एवं न्याय का पक्ष लेते हैं।
तीसरे प्रकार के वो होते हैं,जो बिना प्रतिरोध किए अधर्मी,अहंकारी,आततायी के समक्ष घुटने टेक देते हैं,या जान कर भी अनजान बने रहते हैं। वे कायर और नपुंसक होते हैं। हमारा समाज ऐसे लोगों से भरा पड़ा है।
अहम इतना भी नहीं होना चाहिए कि उसमें रिश्तों की कोमलता नष्ट हो जाए। कई बार कुछ लोग अपनी अहम की पूर्ति के लिए किसी को किसी भी हद तक नीचा दिखाने का कार्य बड़ी तीव्रता से करते हैं। इसके कई कारण हो सकते हैं-अकेलापन,जीवन में प्रेम की कमी,अधिक महत्वकांक्षी होना,अपनी शक्ति सिद्ध करने की लालसा आदि।
अहं की नाव में सवार व्यक्ति अपने आसपास के बहाव को नहीं देख पाता है। उसे लगता है ‘मैं ही हूँ जो भी है’,जबकि ‘मैं भी हूँ’ यह भावना होना चाहिए ।
मेरे कार्यालय के एक मित्र सहकर्मी श्रीमान ‘क’ हर पल खुशमिजाज रहते हुए हमेशा सबकी मदद करने को तत्पर रहते हैं। ऐसे ज्यादातर सहकर्मी हैं,पर कुछ सहकर्मी ‘क’ जैसे बिल्कुल नहीं। उन्हें अहम, अपने वरिष्ठ होने या पता नहीं अपना वर्चस्व समाप्त होने डर सताया रहता है। वो किसी साथी सहकर्मी की टांग खीचने में एक मौका भी नहीं छोड़ते। ऐसे में वह हमेशा दूसरों की घृणा के पात्र बनते चले जाते हैं,जबकि उन्हें यह सब पता नहीं चल पाता है,और वो अपने आसपास के वातारण को दूषित करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाहन करते नजर आते हैं,क्योंकि उनका अहं उन पर हावी हो जाता है।
ऐसे कई उदाहरण हमें अपने आसपास देखने को मिलते हैं,जिसके कारण तख्तो-ताज पलट जाते हैं। अहम कितनी ही मर्यादाओं का उल्लंघन करता हुआ कितने रिश्तों पर चोट करता हुआ आगे बढ़ता जाता है,पता तब चलता है,जब एक दिन वो खुद गर्त में नजर आता है।
अहम या घमण्ड उस हिमालय की तरह है,जो अपनी ईर्ष्या की आग से पिघलता नजर आता है, क्योंकि अहम का जन्म ईर्ष्या से होता है,जिसमें कितने ही रिश्तों की बलि चढ़ जाती है। अहमवादी सिर्फ स्वयं के बारे में सोचता है। उसे लगता है वो जो कर रहा है,वो सही है। इससे वो अपनी जिंदगी को बहुत कठिन बना लेता है। कई प्रकार के खोखले आदर्श,झूठे सिद्धान्त का घेरा अपने आसपास बना लेता है,जिसमें वो स्वयं घिरा रहता है। अहं की अपनी दुनिया होती है। यह कई प्रकार के होते हैं,जैसे-दिखावटी अहम,झूठे अहम आदि।
अहम की दुनिया बड़ी बलवती होती है,जो उफनती नदी की तरह बहती है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि हममें जो करने की क्षमता नहीं है,वह यदि कोई करता है तो हमारे अहम को धक्का लगता है,तथा उसकी निंदा करने में तल्लीन हो जाते है। निंदा करने से मनुष्य के अहम की तुष्टि होती है।
अहमवादी व्यक्ति कभी किसी के साथ सहज नहीं हो पाता। वह हमेशा एकाकी जीवन जीने का आदी हो जाता है। अगर रिश्तों को जीना है तो अहम को छोड़ना होगा।

परिचय-डॉ. वंदना मिश्र का वर्तमान और स्थाई निवास मध्यप्रदेश के साहित्यिक जिले इन्दौर में है। उपनाम ‘मोहिनी’ से लेखन में सक्रिय डॉ. मिश्र की जन्म तारीख ४ अक्टूबर १९७२ और जन्म स्थान-भोपाल है। हिंदी का भाषा ज्ञान रखने वाली डॉ. मिश्र ने एम.ए. (हिन्दी),एम.फिल.(हिन्दी)व एम.एड.सहित पी-एच.डी. की शिक्षा ली है। आपका कार्य क्षेत्र-शिक्षण(नौकरी)है। लेखन विधा-कविता, लघुकथा और लेख है। आपकी रचनाओं का प्रकाशन कुछ पत्रिकाओं ओर समाचार पत्र में हुआ है। इनको ‘श्रेष्ठ शिक्षक’ सम्मान मिला है। आप ब्लॉग पर भी लिखती हैं। लेखनी का उद्देश्य-समाज की वर्तमान पृष्ठभूमि पर लिखना और समझना है। अम्रता प्रीतम को पसंदीदा हिन्दी लेखक मानने वाली ‘मोहिनी’ के प्रेरणापुंज-कृष्ण हैं। आपकी विशेषज्ञता-दूसरों को मदद करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिन्दी की पताका पूरे विश्व में लहराए।” डॉ. मिश्र का जीवन लक्ष्य-अच्छी पुस्तकें लिखना है।

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