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शांति दूत बुद्ध देव की वाणी का पालन आवश्यक

गोपाल चन्द्र मुखर्जी
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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वैसाखी पूर्णिमा या बुद्धपुर्णिमा व गौतम बुद्ध जी के अवतरण दिवस के अवसर पर भगवान बुद्धदेव जी के श्रीचरणों में प्रणाम एवं श्रद्धार्घ अर्पण।
‘नित्य शुद्ध बुद्ध भव’ यथार्थ ही कहा करते थे ठाकुर परमहंस श्रीरामकृष्णदेव जी,जिसका मर्मार्थ यह है कि जिनका चित्त या मन शुद्ध होता है,वे शुद्ध बोध या मुक्त ज्ञान के अधिकारी होकर ब्रह्माण्ड में ईश्वर के अवतार के रूप में परिचित होकर सबके पूज्य होते हैं।
पूर्णिमा की निर्मल ज्योत्सना के साथ ई.पू. ५६३ से ई.पू. ४८३ की समयावधि के लिए विश्व शान्ति एवं अहिंसा के धर्म के संस्थापक मुक्तबोध के अधिकारी प्रकृत अर्थ में ‘समदर्शी’ के शिक्षादाता गौतम बुद्धदेव जी जगत में आविर्भूत हुए थे। उनका सिद्धांत या लोकशिक्षा हेतु दिए गए उपदेशों का पर्याप्त उदाहरण उन्हीं की जीवन शैली में उपलब्ध होता है।
बुद्ध देव जी का मूल उपदेश या शिक्षा है-अहिंसा एवं समदर्शन,जिसका प्रकृत प्रतिपालन होने से विश्व में शान्ति, सहावस्थान,मैत्री,भाईचारे का परिवेश संस्थापित होना अनिवार्य होते हुए विश्व का सर्व कल्याण व उन्नयन निश्चित है। बुद्ध देव जी के अनुसार “जैसे मैं हूँ,वैसे ही वे हैं,और जैसे वे हैं,वैसा ही मै हूँ।” इसी प्रकार सबको अपना जैसा समझकर न किसी को मारें,यानी हत्या करें,न ही किसी को हत्या करने या मारने के लिए प्रेरित करें।
अनुरूप जीवन दर्शन या शान्तिपूर्ण जीवन जीने का मार्ग भी उन्होंने बताया है ‘क्षमा में ही है शान्ति।’ विशुद्ध जीवन जीने के लिए बुद्धदेव का जीवनचरित प्रेरणा का स्रोत है। बुद्ध देव जी के अनुसार-यदि कोई क्रमागत किसी को गाली देता है,और यदि उन गालियों को अनसुना कर दिया जाता है तो,गाली देने वाले थक कर आश्चर्यचकित होकर गाली देने में से विरत हो कर शांत हो जाता है,और विवाद भी नहीं होता है। परिवेश में शान्ति विराजित रहती है,जो वर्तमान समय में उदासी,असंतोष आदि से बचने के लिए आवश्यक है।
उदासीपन में इजाफा होने का कारण वर्तमान में विश्व के प्राय: सभी देशों में ‘आत्महत्या’ करने की प्रबलता या प्रचलन में क्रमागत वृद्धि होती जा रही है। उदासीपन के चलते मानसिक अशान्ति के कारण समग्र विश्व में हिंसा,असहयोग,असन्तोष, अनैतिक प्रतिस्पर्धा से क्रमागत वृद्धि हो रही है। सुन्दर विश्व ध्वंस की ओर तेजी से अग्रसर होता जा रहा है।
इतिहास के अनुसार-सम्राट अशोक बौद्धधर्म से प्रभावित होकर कलिंग युद्ध के बाद हिंसा को परित्यागते हुए बौद्ध धर्म के अनुयायी होकर विभिन्न देश व महादेशों में अहिंसा के नीति व भ्रातृत्वबोध समृद्ध बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए उद्योगी होकर अपने लड़का-लड़की एवं अन्यजनों को भेजा करते थे,जिससे समूचे विश्व में बौद्ध धर्म की नीति के अनुसार अहिंसा का परिवर्तन,स्थायी शांति का वातावरण स्थापित हो सके,लेकिन बहुत ही दु:ख की बात यह है कि,आज के समय में विश्व में बौद्ध धर्म के अनुयायी कुछ शक्तिशाली व प्रभावशाली महादेश समूचे विश्व में त्रास के परिवेश को सृजित करते हुए इंसानों व प्राणियों की हत्या करने का प्रबन्ध कर विश्व को ध्वंस करने,अशांत करने के लिए षड्यंत्र रच रहे हैं। यह बहुत ही आश्चर्यजनक होते हुए बुद्ध धर्म की सम्पूर्ण नीति के विपरीत है।
अतः,सम्पूर्ण विश्व के कल्याण या स्थायी शांति की स्थापना के लिए गौतम बुद्धदेव के वाणी या उपदेशों का प्रतिपालन होना आवश्यक है। आइए,विश्व में शांति व भाईचारा संस्थापित हो,इसलिए हम सब एकसाथ समस्वर व उच्च स्वर से उद्घोष करते हैं-‘बुद्धम शरणम गच्छामि।’

परिचय-गोपाल चन्द्र मुखर्जी का बसेरा जिला -बिलासपुर (छत्तीसगढ़)में है। आपका जन्म २ जून १९५४ को कोलकाता में हुआ है। स्थाई रुप से छत्तीसगढ़ में ही निवासरत श्री मुखर्जी को बंगला,हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। पूर्णतः शिक्षित गोपाल जी का कार्यक्षेत्र-नागरिकों के हित में विभिन्न मुद्दों पर समाजसेवा है,जबकि सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत सामाजिक उन्नयन में सक्रियता हैं। लेखन विधा आलेख व कविता है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में साहित्य के क्षेत्र में ‘साहित्य श्री’ सम्मान,सेरा (श्रेष्ठ) साहित्यिक सम्मान,जातीय कवि परिषद(ढाका) से २ बार सेरा सम्मान प्राप्त हुआ है। इसके अलावा देश-विदेश की विभिन्न संस्थाओं से प्रशस्ति-पत्र एवं सम्मान और छग शासन से २०१६ में गणतंत्र दिवस पर उत्कृष्ट समाज सेवा मूलक कार्यों के लिए प्रशस्ति-पत्र एवं सम्मान मिला है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समाज और भविष्य की पीढ़ी को देश की उन विभूतियों से अवगत कराना है,जिन्होंने देश या समाज के लिए कीर्ति प्राप्त की है। मुंशी प्रेमचंद को पसंदीदा हिन्दी लेखक और उत्साह को ही प्रेरणापुंज मानने वाले श्री मुखर्जी के देश व हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिंदी भाषा एक बेहद सहजबोध,सरल एवं सर्वजन प्रिय भाषा है। अंग्रेज शासन के पूर्व से ही बंगाल में भी हिंदी भाषा का आदर है। सम्पूर्ण देश में अधिक बोलने एवं समझने वाली भाषा हिंदी है, जिसे सम्मान और अधिक प्रचारित करना सबकी जिम्मेवारी है।” आपका जीवन लक्ष्य-सामाजिक उन्नयन है।

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