डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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सामयिक चिंतन….
जब से सृष्टि का उदय हुआ और मानव युगल में हुए,तब से अपराध-पाप आदि शुरू हुए। कारण मानव में मन होने से वह सबसे अधिक समाज में विकृतियां फैलाई हैं,जिस कारण पुराण,शास्त्रों,वेदों में और तो और कानून की किताबें लिखी गई। आज विश्व में जितने भी क़ानून बने हैं,वे मात्र ५ पापों के लिए बनाए गए हैं,छठवा कोई पाप नहीं होता। हिंसा,झूठ,चोरी,कुशील एवं परिग्रह,और इनका इलाज़ मात्र पंच व्रतों में निहित हैं-अहिंसा, सत्य,अचौर्य,ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह।
इन पंच पापों और चार कषायों(क्रोध,मान, माया,लोभ) यानी संक्षेप में तो मोह के वशीभूत होकर राग-द्वेष से लिप्त होने के कारण संसार में परिभ्रमण करते हैं। इसी कारण संसार में हिंसा, व्यभिचार,परिग्रह,चोरी और असत्य का वातावरण फैला हुआ है। कानूनों की अपनी सीमा होती है,उसमें बहुत पोल होती हैं,इसलिए अपराधी निकल भागते हैं।
जीवित इतिहास में तो रावण ने सीता का अपहरण किया था। इस देश को इस स्थिति में लाने का श्रेय यदि किसी को है,तो वह पृथ्वीराज चौहान को जिन्होंने संयोगिता का अपहरण किया एवं जयचंद ने मोहम्मद गौरी को बुलाया और हम आज इस स्थिति में हैं।
यानी हमें ५ पापों से मुक्त होना है तो हमें अपने जीवन में ५ व्रतों का पालन करना ही होगा,इसके बिना कल्याण नहीं हैं। आज हमारे व्यक्तिगत, पारिवारिक,सामाजिक,राजनीतिक तथा धार्मिक क्षेत्रों में पापों की बहुलता होने से विश्व में विषम स्थितियां निर्मित हो रही हैं।
मनुष्य,त्रियंच और देवगति सम्बन्धी सर्व प्रकार की स्त्रियों में और काष्ठ,पुस्तक,भित्ति आदि पर चित्राम आदि से अंकित या स्थापित स्त्री चित्रों में यह मेरी माता हैं,यह बहिन है,यह लड़की है,इस प्रकार अवस्था के अनुसार कल्पना करके उनमें रागभाव का,उनके देखने का और उनकी कथाओं के करने का त्याग करना ब्रह्मचर्य महाव्रत माना गया है।
वाग्दत्ता,अल्पवयस्क या अवयस्क तथा रखैल के साथ मर्यादा के विपरीत आचरण इस अतिचार के अंतर्गत आता है। वर्तमान सन्दर्भों में इस प्रकार के संबंधों को शारीरिक,सामाजिक और कानूनी दृष्टियों से वर्जनीय माना जाता है। किसी भी प्रकार की पराई स्त्री या पर पुरुष के साथ समागम व्रत द्वारा निषेध है। सदगृहस्थ को चाहिए कि,वह एक विवाह के पश्चात दूसरा विवाह न करे। वर्तमान में जहाँ सम्बन्ध जुड़ना कठिनतर हो रहा है,विलम्बित विवाह और अविवाह की स्थितियां समाज में पैदा हो रही है,वहां इस सहयोग का मूल्य और बढ़ जाता है। ब्रह्मचर्य व्रत का मुख्य लक्ष्य भोगासक्ति घटाना और समाज में सदाचार की स्थापना करना है। विवाह इन्हीं उच्चतर लक्ष्यों से जुड़ा है। व्रती को कामोत्तेजना बढ़ाने वाली औषधियों व मादक चीज़ों का सेवन नहीं करना चाहिए।
यदि यह दृष्टिकोण व्यक्ति,परिवार,समाज,देश और विश्व में स्थापित हो जाए और इसे मान्य किया जाए तो अपराध बहुत कम हो सकते हैं,पर वर्तमान में अधिक शिक्षा और उच्च पद की नौकरियाँ और उसके पहले विद्यालय-महाविद्यालय की पढ़ाई में चारित्र की गिरावट शुरू होने लगती है। जब नौकरी में जाते हैं तो माँ-बाप उनकी देख-रेख को कभी नहीं जाते। इसके लिए कभी कभी अचानक निरीक्षण करना चाहिए,जिससे उनके क्रियाकलाप का पता चल जाता है।
आज ‘लव जिहाद’ के सम्बन्ध में यदि व्यस्क लड़के-लड़की को इतनी जानकारी होती है कि,कौन किस जाति का है। वर्षों से मिल-जुल रहे हैं,सब-कुछ हो जाता है और उसके बाद अलग-अलग कहानियां-प्रताड़ना मिलना और कभी कभी मौतों का होना,अपराध बनना।
वर्षों से प्यार चलता रहता है,और माँ-बाप परिवारजन बेफिक्र। जब सिर से पानी निकलने लगता हैं,तब आँख खुलती है। कौन दोषी है,कहना मुश्किल है,पर प्रभाव प्रभावित होने वालों पर होता है। कानून और सामाजिक संस्थाएं कितना बचाव और योगदान दे सकते हैं,मालूम नहीं पर हम अपने परिवार में ऐसी बातों की शंका होने पर बच्चों को समझाया जाए और उसके बाद क्या-क्या परेशानी उठानी पड़ती हैं,बताया जाए।
आजकल एकल परिवार में सीमित संख्या होने से अधिकतर लोग समझौता करते हैं। प्रभावित परिवार को दो-चार दिन संवेदनाएं मिलती हैं,उसके बाद कोई मतलब नहीं होता है।
‘लिव इन रिलेशन’ को कानूनी मान्यता मिलने के कारण इसका चलन बहुत है। इसके दुष्परिणाम शुरुआत में नहीं मिलते पर अंत सुखद नहीं होता है। इससे मानसिक तनाव के कारण सामाजिक जीवन सुखद नहीं होता। उन्हें कोई भी सामाजिक प्रतिष्ठा नहीं मिलती। वे अपने-आपमें मस्त रह सकते हैं,पर दुष्परिणाम भोगना पड़ते हैं।
दुष्कर्म यानी जबरदस्ती सुख की प्राप्ति,जबकि यह आपसी प्रेम के कारण होता है। यह एक मानसिक रोग है। इसके लिए बहुत नियम कानून बने हैं,और सुधार किए जा रहे हैं पर जितने अधिक कानून,उससे अधिक अपराध। यह सड़क और घर में निजी से,नजदीकी रिश्तेदारों द्वारा,पिता-भाई-चचेरे-ममेरे एवं मित्र आदि द्वारा किया जा रहा है। इससे सिद्ध होता है कि सामाजिक मूल्य समाप्त हो रहे हैं। अब प्रश्न आ रहा है कि किस पर विश्वास करें ?
इसी तरह अपहरण भी एक प्रकार की मानसिक-सामाजिक बीमारी है। इसके दो लक्ष्य होते हैं-पहला यौनाचार और कभी कभी अर्थ की मांग। कुल मिला कर इसमें कई घटक कार्य करते हैं-पहला परिवारजन का बहुत अधिक नियंत्रण रखना या बहुत अधिक छूट देना,परिवार में स्वच्छ वातावरण न होना,परिवार में नैतिकता न होना,बहुत अधिक गरीबी या धनवान होना,कम उम्र में मोबाइल,पिक्चर,टी.वी. में जो नहीं देखना,वो देखना ,आकर्षित होना,छोटे-छोटे प्रलोभन में फंसना,गलत सोहबत-सत्संग में रहना,नशे का सेवन करना, होटलबाज़ी करना,अकेले रहने के दुष्परिणाम और आय से अधिक खर्च के कारण अन्य आय से अपने शौक की पूर्ति करना है।
इन सबसे बचने का सुगम उपाय अपने जीवन में अच्छी बातें सीखना,धर्म की बातों को अंगीकार करना,अच्छा साहित्य पढ़ना,माँ-बाप को अपनी संतान को मित्रवत व्यवहार कर क्या अच्छा और क्या बुरा होता है समझाना,बच्चों को अपने साथ हुई घटना को तुरंत बताना,गुरु से कुछ नियम लेना है।
यह सब व्यक्ति के साथ परिजन की जिम्मेदारी है। शासन मात्र दंड देने के लिए अधिकृत है,पर कर्म का फल स्वयं को भोगना पड़ता है। आजकल कुशील पाप के बहुतायत का इलाज़ मात्र ब्रह्मचर्य व्रत से ही सम्भव है। इसको समझने की जरुरत है कि एक क्षण का अपराध जीवनभर के लिए गुनाहगार बना देता है।
शासन के नियम के अलावा यदि सब पत्नी को छोड़कर अन्य स्त्री को माता,बहिन, पुत्री मानें तो अपराध बहुत सीमा तक नियंत्रित हो सकता है। यह पाप सर्वव्यापी रोग है जैसे कोरोना। इसमें स्वयं बचाव की जरुरत है।
परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।