कुल पृष्ठ दर्शन : 483

You are currently viewing बहुत सितमगर हो…

बहुत सितमगर हो…

प्रिया सिंह
लखनऊ(उत्तरप्रदेश)

*****************************************************************************

तन्हाइयों के पन्नों को अश्कों से सजाया होगा,
एक दीप को रातभर आँखों से जलाया होगा।

बहुत संगदिली आ गई जाने क्यों उसके अंदर,
उसे किसी ने खूब मोहब्बत से सताया होगा।

ये लहर आ आकर लौट जाती है वापस क्यों,
समंदर पर उसका नाम अंगुली से बनाया होगा।

तूर का फ़ितूर आखिर क्या था कठोर हो गया,
जरूर उसका दिल पत्थर से सजाया होगा।

बेसब्री का बांध दिल थाम ना पाता कभी भी,
इसको किसी ने मोहब्बत से समझाया होगा।

मैं तुम कभी हम कैसे बन पाते सोचा है जरा!
जरूर इश्क बड़े जद्दोजहद से जताया होगा।

खुश्क पत्ते की तरह अलग हो जाते शजर से,
मैंने जमीर को अब इस खाक से उठाया होगा।

बहुत सितमगर हो बात-बात पर रूठ जाते हो,
किसी ने बहुत खुफिया तदबीर से मनाया होगा।

चाँद नींद आँखों में भर के देखता है छत पर,
दिल ने छल कर शब-बे-दारी से जगाया होगा॥

परिचय-प्रिया सिंह का बसेरा उत्तरप्रदेश के लखनऊ में है। २ जून १९९६ को लखनऊ में जन्मी एवं वर्तमान-स्थाई पता भी यही है। हिंदी भाषा जानने वाली प्रिया सिंह ने लखनऊ से ही कला में स्नातक किया है। इनका कार्यक्षेत्र-नौकरी(निजी)है। लेखन विधा-ग़ज़ल तथ कविता है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जन-जन को जागरूक करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महादेवी वर्मा को मानने वाली प्रिया सिंह देश के लिए हिंदी भाषा को आवश्यक मानती हैं।

Leave a Reply