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लालजी टंडन:राजनीति में नैतिक मूल्यों के एक युग की समाप्ति

ललित गर्ग
दिल्ली

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उत्तरप्रदेश की राजनीति के शीर्ष व्यक्तित्व एवं मध्यप्रदेश के राज्यपाल लालजी टंडन का ८५ वर्ष की उम्र में मंगलवार को निधन हो गया। उनका निधन न केवल उत्तर प्रदेश,देश की राजनीति बल्कि भाजपा के लिए बड़ा आघात है,अपूरणीय क्षति है। उनके निधन को राजनीति में चारित्रिक एवं नैतिक मूल्यों के एक युग की समाप्ति कह सकते हैं। आज भाजपा जिस मुकाम पर है, उसे इस पर पहुंचाने में जिन लोगों का योगदान है,उनमें लालजी टंडन अग्रणी हैं। वे राजनीति के ही नहीं,कुश्ती के अखाड़े के भी रहे पहलवान रहे। उन्होंने लखनऊ की तस्वीर बदली,शिया-सुन्नी विवाद का समाधान कराया। १९६२ से अपना राजनीतिक सफर शुरु करने वाले लालजी ने जेपी आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाई एवं १९ महीने तक जेल में रहे।
कन्नौज की माटी से रिश्ता रखने वाले अपनी माता-पिता की सबसे छोटी संतान होने के कारण ‘लल्लू’ नाम से पुकारे जाने वाले लल्लू से लालजी टंडन बने भारतीय राजनीति के इस जुझारू एवं जीवट वाले नेता ने राजनीति में कर्मयोगी की भांति जीवन जीया। वे राष्ट्र के थे,राष्ट्रनायक थे। देश की वर्तमान राजनीति में वे दुर्लभ व्यक्तित्व थे। उदात्त संस्कार,लोक जीवन से इतनी निकटता,इतनी सादगी-सरलता,इतना संस्कृति प्रेम और इतनी सच्चाई ने उनके व्यक्तित्व को बहुत और बहुत ऊँचा बना दिया था। वे अन्तिम साँस तक देश की सेवा करते रहे। उनका निधन एक राष्ट्रवादी सोच की राजनीति का अंत है। वे सिद्धांतों एवं आदर्शों पर जीने वाले व्यक्तियों की श्रृंखला के प्रतीक थे। उनके निधन को राजनीतिक जीवन में शुद्धता ,मूल्यों,संस्कृति,राजनीति,आदर्श के सामने राजसत्ता को छोटा गिनने या सिद्धांतों पर अडिग रहकर न झुकने,न समझौता करने की समाप्ति समझा जा सकता है। लालजी ने छह दशक तक सक्रिय राजनीति की,अनेक पदों पर रहे,पर सदा दूसरों से भिन्न रहे। उनके जीवन से जुड़ी विधायक धारणा और यथार्थपरक सोच ऐसे शक्तिशाली हथियार थे, जिसका वार कभी खाली नहीं गया।
जरूरतमंदों की सहायता करते हुए,नये राजनीतिक चेहरों को गढ़ते हुए,मुस्कराते हुए और हँसते हुए छोटों से स्नेहपूर्ण व्यवहार और हम-उम्र लोगों से बेलौस मजाक करने वाले श्री टंडन की जिंदगी प्रेरक,अनूठी एवं विलक्षण इस मायने में मानी जाएगी कि उन्होंने जिंदगी के सारे सरोकारों को छुआ। वह राजनेता थे,तो उन्होंने पत्रकारिता व साहित्य में भी कलम आजमाई। आंदोलनकारी और राजनीतिक घटनाक्रमों के सूत्रधार भी रहे। क्रांतिकारियों व वरिष्ठ स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के सरोकारों से भी वह हमेशा जुड़े दिखे। बड़े व व्यस्त राजनेता होने के बावजूद साहित्यकारों के साथ सहज भागीदारी,रामलीला के आयोजनों से सीधा सरोकार तो होली के जुलूस में आम आदमी जैसे उत्साह से भागीदारी-उनके जीवन के विविध आयाम थे। गंदी हो रही गोमती को सजाने व संवारने के साथ उसे स्वच्छ करने की चिंता भी उन्हें थीं। लखनऊ के सरोकारों, संस्कृति और इतिहास से जुड़ा शायद ही कोई पहलू ऐसा रहा हो जो दिल की धड़कन में न रहा हो। अपनी पुस्तक ‘अनकहा लखनऊ’ में उन्होंने कई ऐतिहासिक तथ्यों एवं सत्यों को उद्घाटित किया।
लालजी टंडन का जन्म १२अप्रैल १९३५ को हुआ। उनका राजनीतिक भविष्य पार्षद बनने से शुरू हुआ और कई उतार-चढ़ाव आए। वे अटल बिहारी वाजपेयी के अनन्य सहयोगी रहे,वाजपेयी को पिता,भाई,राजनीति गुरु एवं अपना दोस्त मानते थे। अटल जी के सक्रिय राजनीति से दूरी बनाने के बाद लखनऊ सीट से लालजी टंडन चुनाव लड़े थे। सांसद,राज्यपाल आदि रहे लालजी टंडन ने अपनी सादगी एवं सरलता से राजनीति को एक नया दिशाबोध दिया। वे युवावस्था में नंगे पाँव चलने वाले एवं लोगों के दिलों पर राज करने वाले राजनेता थे,उनके दिलो-दिमाग में जनता हर समय बसी रहती थी। काश! सत्ता के मद,भ्रष्टाचार के कद व अहंकार की जद में जकड़े-अकड़े रहने वाले राजनेता उनसे एवं निधन से बोधपाठ लें। निराशा,अकर्मण्यता, असफलता और उदासीनता के अंधकार को उन्होंने अपने आत्मविश्वास और जीवन के आशा भरे दीपों से सदा पराजित किया। उनके जीवन की कोशिश रही कि लोग उनके होने को महसूस ना करें,बल्कि काम इस तरह किया कि लोग तब याद करें,जब वे उनके बीच में ना हों। इस तरह उन्होंने अपने जीवन को एक नया आयाम दिया और जनता के दिलों पर छाए रहे। आपके जीवन की धारा एक दिशा में प्रवाहित नहीं हुई,बल्कि विविध दिशाओं का स्पर्श किया। आपके जीवन की खिड़कियाँ राष्ट्र व समाज को नई दृष्टि देने के लिए सदैव खुली रही। इन्हीं खुली खिड़कियों से आती ताजी हवा के झोंकों का अहसास भारत की जनता सुदीर्घ काल तक करती रहेगी।

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