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जमाना फिर होगा उल्लास का

संजय गुप्ता  ‘देवेश’ 
उदयपुर(राजस्थान)

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दरख्तों पर ठिकाना हो गया है,मानो पतझड़ का
कयामत का ठहराव-सा कुछ पल की हरकतों का,
ये शाखाएं सूख कर भी खड़ी हैं हाथों को फैलाए
अब आने वाला है वक्त इन पर फिर फूलों पत्तों का।

ये उत्तुंग चट्टानें यूँ ही नहीं खड़ी,अडिग हैं रहतीं
हौंसला समेटे हैं,सहने को इन लहरों की हदों का,
ज्येष्ठ आषाढ़ में भी जो स्नान करते हैं अग्नि से
उन्होंने कब किया इन्तज़ार सावन और भादों का।

यूँ ही नहीं वीरान खड़ी है झोपड़ी,उजड़े गाँव बाहर
हकीकत बयाँ कर रही है कभी खुशहाल यादों का,
इन्सान बसा ही लेगा,फिर एक बार अपनी दुनिया
जानता है श्रम परिंदों का,बसाने को उन घरौंदों का।

भय और डर से सूखे हैं सागर तालाब और नदियाँ
पर आदमी जानता है पता,छुपे जल के सोतों का,
पर शरीर का जल बने स्वेद,ना कि आँखों के आँसू
हौंसलों वालों का है जीवन,मौत किस्मत के रोतों का॥

परिचय-संजय गुप्ता साहित्यिक दुनिया में उपनाम ‘देवेश’ से जाने जाते हैं। जन्म तारीख ३० जनवरी १९६३ और जन्म स्थान-उदयपुर(राजस्थान)है। वर्तमान में उदयपुर में ही स्थाई निवास है। अभियांत्रिकी में स्नातक श्री गुप्ता का कार्यक्षेत्र ताँबा संस्थान रहा (सेवानिवृत्त)है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप समाज के कार्यों में हिस्सा लेने के साथ ही गैर शासकीय संगठन से भी जुड़े हैं। लेखन विधा-कविता,मुक्तक एवं कहानी है। देवेश की रचनाओं का प्रकाशन संस्थान की पत्रिका में हुआ है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जिंदगी के ५५ सालों के अनुभवों को लेखन के माध्यम से हिंदी भाषा में बौद्धिक लोगों हेतु प्रस्तुत करना है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-तुलसीदास,कालिदास,प्रेमचंद और गुलजार हैं। समसामयिक विषयों पर कविता से विश्लेषण में आपकी  विशेषज्ञता है। ऐसे ही भाषा ज्ञानहिंदी तथा आंगल का है। इनकी रुचि-पठन एवं लेखन में है।

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