कुल पृष्ठ दर्शन : 317

You are currently viewing पंचदेव में पूज्य गणेश

पंचदेव में पूज्य गणेश

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

**********************************************************

श्री गणेश चतुर्थी स्पर्धा विशेष…..

चरण कमल श्रद्धा नमन,करूँ गजानन आज।
उमातनय परमेश कुरु,स्वस्ति लोक गणराज॥

परशु पाणि!पूजन करुँ,लम्बोदर विघ्नेश।
गजमुख वरदायक नमन,गौरीपूत गणेश॥

एकदन्त गिरिजा तनय,शरणागत करुणेश।
रक्ताम्बर तनु देह है,दयावन्त अखिलेश॥

मंगलमय गौरीतनय,गणनायक बुद्धीश।
वाहन मूषकराज है,जगपालक जगदीश॥

पंचदेव में पूज्य हैं,गणभूतों के नाथ।
सकल मनोरथ पूर्ण कर,बुद्धि विधाता साथ॥

जय गणेश सानंद कर,कर सुखमय संसार।
पापों से जग दूर कर,विश्व शान्ति उपहार॥

राग द्वेष छल लोभवश,फँसे हुए जग लोग।
बुद्धि विनायक त्राण कर,तजें स्वार्थ हठयोग॥

मातु पिता चहुँ घूमकर,गणपति देव प्रधान।
ज्ञान बुद्धि सह तेज बल,दान करो भगवान॥

देवासुर चाहे मनुज,तन मन करते ध्यान।
सब विघ्नों को पारकर,पाते हैं सम्मान॥

दीप जला आरत करूँ,ले पूजन का थार।
कवि निकुंज संताप हर,भवसागर से पार॥

क्षमा करो हे गणपति,कर्महीन कृत पाप।
सत्पूजन तेरा करूँ,होऊँ मैं निष्पाप॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

Leave a Reply