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जान है तो जहान है

संजय जैन 
मुम्बई(महाराष्ट्र)

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नहीं लग रहा है मन,
अब अपने ही घर में।
इतने दिन गुजारे हैं तो,
और भी निकल जाएंगे॥

जो नहीं रहते थे घरों में,
अपने-अपने कामों के कारण।
सुबह से रात तक व्यस्त,
रहते थे अपने व्यवसाय में।
सबसे ज्यादा परेशानियां,
इन्हीं को ज्यादा हो रही।
और घर में रहना इन्हें,
बड़ा अजीब-सा लग रहा॥

यदि इस समय को ये लोग,
अच्छा समझें तो।
परिवार क्या होता है,
समझ में अब इन्हें आएगा।
और घर में बीबी-बच्चों के साथ,
ये वक्त मौज-मस्ती से निकल जाएगा।
और लोगों को परिवार का,
महत्व समझ आ जाएगा॥

जान है तो जहान है,
घर में रहना ही समाधान है।
पैसे-शोहरत कुछ भी,
काम नहीं आएगा।
जब ‘कोरोना’ रोग,
तुमको हो जाएगा।
तो खुद को बचाना,
मुश्किल हो जाएगा॥

इसलिए मौका मिला है,
साथ दिन बिताने का।
और निभाओ उन वचनों को,
जो तुम दोनों ने लिए थे।
यही वो वक्त है सुख-दु:ख का,
जो मिलकर साथ जीना है॥

परिचय–संजय जैन बीना (जिला सागर, मध्यप्रदेश) के रहने वाले हैं। वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। आपकी जन्म तारीख १९ नवम्बर १९६५ और जन्मस्थल भी बीना ही है। करीब २५ साल से बम्बई में निजी संस्थान में व्यवसायिक प्रबंधक के पद पर कार्यरत हैं। आपकी शिक्षा वाणिज्य में स्नातकोत्तर के साथ ही निर्यात प्रबंधन की भी शैक्षणिक योग्यता है। संजय जैन को बचपन से ही लिखना-पढ़ने का बहुत शौक था,इसलिए लेखन में सक्रिय हैं। आपकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। अपनी लेखनी का कमाल कई मंचों पर भी दिखाने के करण कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इनको सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के एक प्रसिद्ध अखबार में ब्लॉग भी लिखते हैं। लिखने के शौक के कारण आप सामाजिक गतिविधियों और संस्थाओं में भी हमेशा सक्रिय हैं। लिखने का उद्देश्य मन का शौक और हिंदी को प्रचारित करना है।

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