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राष्ट्रवाद:विश्व-बन्धुता की ओर कदम बढ़ना चाहिए

सुरेश चन्द्र ‘सर्वहारा’
कोटा(राजस्थान)
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मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज के बिना उसके अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। समाज का स्वरूप परिवार से लेकर पड़ौस,गाँव,शहर,राज्य,देश और दुनिया तक विस्तृत हो सकता है। प्रत्येक व्यक्ति को अपने जन्मस्थान,अपनी गली,गाँव,शहर और देश से लगाव होता है। इसी लगाव के कारण आदमी अपने देश की सेवा करता है और देश पर संकट आने पर बलिदान के लिए तत्पर रहता है। यह बिल्कुल सही,तर्कसंगत और न्यायोचित बात है। इसी भावना को देशभक्ति या देशप्रेम कहते हैं। जिस देश में व्यक्ति जन्मता,पलता और बढ़ता है,उसके प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाहन करना प्रत्येक देशवासी की नैतिक जिम्मेदारी है। बात तब बिगड़ती है,जब हम अपने देश से तो प्रेम और अन्य देशों से घृणा करने लगते हैं। राष्ट्रवाद
(नेशनलिज्म) से तात्पर्य अपने देश को सर्वश्रेष्ठ समझना और हर हाल में उसका समर्थन कर पक्ष लेना है। राष्ट्रवाद की यह उग्रता व्यक्ति को इतना आक्रोशित कर देती है कि वह सत्य और असत्य में अन्तर नहीं कर पाता। राष्ट्रवादी अपने देश की हर अच्छाई और बुराई का साथ देता है। उसके मन में बस एक ही बात होती है कि हम श्रेष्ठ, हमारा समाज श्रेष्ठ और हमारा देश सर्वश्रेष्ठ। हिटलर ने राष्ट्रवाद की भावना को सबसे ज्यादा बढ़ावा दिया। १९३९ में हिटलर द्वारा पौलैण्ड पर आक्रमण ही दूसरे विश्व युद्ध का कारण बना। राष्ट्रवाद एक राजनीतिक व्यवस्था के रूप में पूरी तरह अमानवीय मूल्यों पर आधारित है। इससे विश्व के विभिन्न मानव समूह एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं। जब यही राष्ट्रवाद चरम पर पहुँच जाता है,तो युद्ध की स्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। हमें इतिहास से सबक लेना चाहिए। राष्ट्रवाद की संकीर्ण सोच से निकलकर विश्व-बन्धुता की ओर कदम बढ़ना चाहिए। हमारे देश की भावना भी यही रही है-
“अयं निजः परोवेति,गणना लघुचेतसाम्।
उदार चरितानाम् तु, वसुधैव कुटुम्बकम्॥”
(यह अपना है यह पराया है,ऐसा मानना संकीर्ण सोच वालों का काम है। उदार हृदयवाले तो पूरी धरती को अपना परिवार और धरती पर बसने वाले सारे मनुष्यों को अपना परिजन समझते हैं।)

परिचय-सुरेश चन्द्र का लेखन में नाम `सर्वहारा` हैl जन्म २२ फरवरी १९६१ में उदयपुर(राजस्थान)में हुआ हैl आपकी शिक्षा-एम.ए.(संस्कृत एवं हिन्दी)हैl प्रकाशित कृतियों में-नागफनी,मन फिर हुआ उदास,मिट्टी से कटे लोग सहित पत्ता भर छाँव और पतझर के प्रतिबिम्ब(सभी काव्य संकलन)आदि ११ हैं। ऐसे ही-बाल गीत सुधा,बाल गीत पीयूष तथा बाल गीत सुमन आदि ७ बाल कविता संग्रह भी हैंl आप रेलवे से स्वैच्छिक सेवानिवृत्त अनुभाग अधिकारी होकर स्वतंत्र लेखन में हैं। आपका बसेरा कोटा(राजस्थान)में हैl

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