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राष्ट्र वंदना

डॉ. पुष्पलता
मुजफ्फरनगर(उत्तरप्रदेश)
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गणतंत्र दिवस स्पर्धा विशेष……….


जय धरती जय हिंदुस्तान,
तुम पर अपनी जां कुर्बान
वतन परस्तों याद करो तुम खून दिया था वीरों ने,
तड़प रहे थे जब हम सारे पड़े हुए जंजीरों में
प्राण दिए जो वीर जवान,
जंग लड़ी रणवीरों ने
आन बान ये अपनी शान।
जय धरती जय हिंदुस्तान,
तुम पर अपनी जां कुर्बान…॥

डाल के अपने गले में फंदा कुछ फांसी पर झूल गए,
हम इतने नाकाबिल निकले कुर्बानी तक भूल गए
आजादी का मोल न समझा,
घेर लिए शमसीरों ने
गौरव गाथा का सम्मान।
जय धरती जय हिंदुस्तान,
तुम पर अपनी जां…॥

सरहद पर जो खड़े हुए हैं मार झेलते मौसम की,
अपने घर-परिवार छोड़कर लाज रखे हैं परचम की
देश बचाया अन्नदाता ने और उन्हीं रणधीरों ने,
इसकी खातिर देंगे जान।
जय धरती जय हिंदुस्तान,
तुम पर अपनी जां कुर्बान…॥

मेहनतकश को डसे विवशता,जहर भरा है सीनों में,
उनकी हमको फिक्र नहीं जो दबे हुए संगीनों में
भूख गरीबी नाच रही है ढकी हुई है चीरों ने,
जय किसान जय वीर जवान।
जय धरती जय हिंदुस्तान,
तुम पर अपनी जां कुर्बान…॥

सहमे बैठे लोग शत्रु के,
गाँव बसे हैं आँगन में
कैसे हम मुस्काएं,कैसे बच्चे खेलें प्रांगण में,
रहजन रहबर बने हुए हैं छोड़े हुए वजीरों ने
माटी मांग रही बलिदान।
जय धरती जय हिंदुस्तान,
तुम पर अपनी जां कुर्बान…॥

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