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सिद्धि और साधना की कुंजी नवरात्रि

सुरेन्द्र सिंह राजपूत हमसफ़र
देवास (मध्यप्रदेश)
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सर्व मंगल मांगल्ये, शिव सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते॥

प्रत्येक संवत्सर (साल) में चार नवरात्र होते हैं, जिनमें विद्वानों एवं ज्योतिषाचार्यो ने वर्ष में दो बार नवरात्रों में माँ की आराधना का विधान बनाया गया है। विक्रम संवत के पहले दिन अर्थात चैत्र मास के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा (पहली तिथि) से नौ दिन नवमी तक नवरात्र होते हैं। इसी प्रकार छह माह बाद आश्विन मास शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से महानवमी विजयदशमी के एक दिन पूर्व तक देवी के नौ रूपों की उपासना की जाती है।
सिद्धि और साधना की दृष्टि से शारदीय नवरात्र को अधिक महत्वपूर्ण माना गया है। नवरात्र में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति संचय के लिए व्रत,संयम,नियम,भजन-पूजन,योग साधना आदि करते हैं। माँ शक्ति की उपासना आदिकाल से चली आ रही है। इसमें देवी के नौ रूपों शैलपुत्री, ब्राम्हचारिणी,चन्द्रघंटा,कूष्माण्डा,स्कंदमाता, कात्यायनी,कालरात्रि,महागौरी,स्कंदमाता की उपासना की जाती है। नवरात्रि में माँ के इन रुपों की पूजा विशेष विधि-विधान से की जाती है। मान्यताओं के अनुसार इन दिनों में रखे गए व्रत-पूजा,अनुष्ठान का फल कई गुना मिलता है। शारीरिक-मानसिक शांति के साथ धार्मिक लाभ भी मिलता है,मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। सब बाधाएं दूर होकर उन्नति होती है। धार्मिक पुराणों के अनुसार माँ का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए देवताओं और देवराज इन्द्र ने भी वृत्रासुर राक्षस का वध करने हेतु माँ की पूजा अर्चना की और नवरात्रि के व्रत किए। स्वयं भगवान शिव ने त्रिपासुर राक्षस का वध करने के लिए माँ भगवती की पूजा-अर्चना की। प्रभु श्रीराम ने भी रावण का नाश करने के लिए माँ की पूजा-अर्चना कर आशीर्वाद लिया। देवी की पूजा अर्चना से ही उन्हें अमोघ बाण प्राप्त हुआ, जिससे वे रावण का वध कर पाए। इस प्रकार आदि-अनादि काल से माँ की उपासना और आराधना का महत्व रहा है। धरती और देवलोक के अनेक ऋषि-मुनियों,तपस्वियों,देवों ने माँ जगदम्बे की आराधना से अपनी सर्व मनोकामनाएं पूर्ण की। आईए,हम सब भी इस जग के कल्याण हेतु, ‘कोरोना’ महामारी की समाप्ति हेतु और अच्छे लेखन से जन कल्याण का अलख जगाने हेतु माँ जगदम्बे के नौ रूपों का पूजन-अर्चन कर नवरात्रि पर्व का लाभ लें।
या देवि सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै-नमस्तस्यै,नमस्तस्यै-नमस्तस्यै नमो नमः॥

परिचय-सुरेन्द्र सिंह राजपूत का साहित्यिक उपनाम ‘हमसफ़र’ है। २६ सितम्बर १९६४ को सीहोर (मध्यप्रदेश) में आपका जन्म हुआ है। वर्तमान में मक्सी रोड देवास (मध्यप्रदेश) स्थित आवास नगर में स्थाई रूप से बसे हुए हैं। भाषा ज्ञान हिन्दी का रखते हैं। मध्यप्रदेश के वासी श्री राजपूत की शिक्षा-बी.कॉम. एवं तकनीकी शिक्षा(आई.टी.आई.) है।कार्यक्षेत्र-शासकीय नौकरी (उज्जैन) है। सामाजिक गतिविधि में देवास में कुछ संस्थाओं में पद का निर्वहन कर रहे हैं। आप राष्ट्र चिन्तन एवं देशहित में काव्य लेखन सहित महाविद्यालय में विद्यार्थियों को सद्कार्यों के लिए प्रेरित-उत्साहित करते हैं। लेखन विधा-व्यंग्य,गीत,लेख,मुक्तक तथा लघुकथा है। १० साझा संकलनों में रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है तो अनेक रचनाओं का प्रकाशन पत्र-पत्रिकाओं में भी जारी है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में अनेक साहित्य संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है। इसमें मुख्य-डॉ.कविता किरण सम्मान-२०१६, ‘आगमन’ सम्मान-२०१५,स्वतंत्र सम्मान-२०१७ और साहित्य सृजन सम्मान-२०१८( नेपाल)हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्य लेखन से प्राप्त अनेक सम्मान,आकाशवाणी इन्दौर पर रचना पाठ व न्यूज़ चैनल पर प्रसारित ‘कवि दरबार’ में प्रस्तुति है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समाज और राष्ट्र की प्रगति यानि ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद, मैथिलीशरण गुप्त,सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ एवं कवि गोपालदास ‘नीरज’ हैं। प्रेरणा पुंज-सर्वप्रथम माँ वीणा वादिनी की कृपा और डॉ.कविता किरण,शशिकान्त यादव सहित अनेक क़लमकार हैं। विशेषज्ञता-सरल,सहज राष्ट्र के लिए समर्पित और अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिये जुनूनी हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-
“माँ और मातृभूमि स्वर्ग से बढ़कर होती है,हमें अपनी मातृभाषा हिन्दी और मातृभूमि भारत के लिए तन-मन-धन से सपर्पित रहना चाहिए।”

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