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नव वर्ष-विक्रमी

जसवीर सिंह ‘हलधर’
देहरादून( उत्तराखंड)
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वर्ष नूतन आ गया लो प्यार के दीपक जलायें।
घिर रहा जो हर दिशा में रोग कोरोना भगायें।

बादलों में रवि छुपा है साँझ होने से भी पहले,
दीप संयम के जलाकर बांध दें तम की बलायें।

ये बला है व्योम की या चीन की ये चालबाजी,
भूमि से नभ को दिखायें चाँद जैसी सौ कलायें।

गरल भरती दृष्टियों का तोड़ दें झूठा दिलासा,
वेद मंत्रों के सहारे रोग को जड़ से मिटायें।

तोड़ दें हम धुंध कुहरे से बनी दीवार सारी,
सींच दीपों के उजाले जोड़ देवें श्रंखलायें।

इस समस्या का सुरक्षा ही बड़ा संधान यारों,
शक्ति का संचार करती हैं सदा वैदिक ऋचायें

सैनिकों की भांति लड़ते दिख रहे योद्धा चिकित्सक,
देश के इन बांकुरों को स्वर्ण लिपियों में सजायें।

काल का पैगाम है यह या नए युग का विगुल है,
हिन्द ‘हलधर’ का करेगा तय सभी दुर्गम दिशायें॥

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