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ऋतुओं का महत्व

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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सुष्मित कुसुमित प्रकृति यह, सुरभित जीवन लोक।
सूरज चंदा अहर्निश, हरे तिमिर जग शोक॥

षड् ऋतुओं में प्रकृति सज, विविध रूप श्रृंगार।
शीताकुल खग पशु मनुज, दे वसन्त उपहार॥

मधुरिम वन मधु माधवी, मुकुलित चारु रसाल।
फागुन के नवरंग से, सरसिज गाल गुलाल॥

कू-कू करती कोकिला, पंचम स्वर मधु गान।
नव प्रभात अरुणिम किरण, प्रमुदित जग इन्सान॥

नव विकास जग चहुँमुखी, प्रकृति ग्रीष्म धर रूप।
औद्यौगिक अरु परिवहन, संचालन पा धूप॥

ग्रीष्मातप व्याकुल धरा, व्यथित लू अवसाद।
श्रावण भादो रूप में, बारिश प्रकृति प्रसाद॥

हरियाली हर्षित धरा, फसल खेत-खलिहान।
पुष्पित नव पादप विपिन, हरित-भरित उद्यान॥

कूप सरोवर सरित सब, भरे सलिल सब झील।
जल प्रपात निर्झर धरा, सागर में तब्दील॥

जल यौवन बन षोडशी, नदियाँ नशा उफ़ान।
जल प्लावन में लीन सब, जन-धन मिटे मकान॥

हेमन्त ऋतु मधुरागमन, हर आप्लावन वृष्टि।
आश्विन कार्तिक मास शुभ, प्रकृति चारुतम सृष्टि॥

दुर्गाराधन पर्व शुभ, महाविजय त्यौहार।
खुशी दीप दीपावली, बनी प्रकृति उपहार॥

शरद्काल पुलकित कृषक, पकी फ़सल लखि खेत।
मन्द-मन्द शीतल पवन, प्रवहित समतल रेत॥

अन्नपूर्ण करती प्रकृति, झूमे कृषक जहान।
लदे फलों से विविध तरु, वन औषधि हिमवान॥

थिथुरन कम्पन रूप में, प्रकृति शिशिर अवतार।
तुषार हार मुक्तामणि, तरुदल सज श्रृंगार॥

स्वच्छ प्रकृति कुसमित धरा, हो जीवन सुखधाम।
संरक्षण पर्यावरण, लगा वृक्ष अभिराम॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥