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हे नीलकंठ! जग कष्ट हरो

डॉ.धारा बल्लभ पाण्डेय’आलोक’
अल्मोड़ा(उत्तराखंड)

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(रचनाशिल्प:कुल- ३२ मात्राएं)
हे नीलकंठ! करुणामय मेरे,
दया सिंधु अब लाज धरो।
है आज जगत में त्राहि मची,
हे जगदीश्वर! जग कष्ट हरो।
तुमने ही जगहित धारण कर विष,
कंटक कालन कंठ धरो।
अब दीनन के दु:ख दूर करो प्रभु,
शंभु हरे-हर, विपद हरो॥

त्राहि मची है आज भुवन में,
हे भुजंगधर शिवशंकर हे!
‘कोरोना’ से है त्रस्त जगत,
इस मायावी को मृत कर दे।
तुम ही स्वामी हो अनाथ के,
अब कष्ट हरो जग हरि-हर हे!
प्रभु मानव की अब रक्षा करो,
भय टेरि हरो करुणाकर हे!

तुमने ही सागर मंथन पर,
जग की विपदा को टारा था।
महा हलाहल विष पीकर,
सब कंठन ही निज धारा था।
गंगा की निर्मल वेगमयी,
जलधारा सिर पर धारा था।
सब विषधर सर्पों की माला,
गल में ही आप उतारा था॥

आज बचा लो हे जगदीश्वर!
हे शमशानी! हे कैलाशी!
तुम्हीं से जीवन पाया है,
जग रचा तुम्हीं ने सन्यासी।
जन्म व पालक जग संहारक,
हो त्रिविध रूप हे अविनाशी।
भस्म भूत बन ध्यानमग्न नित,
वंदनीय हे अधिशासी॥

परिचय-डॉ.धाराबल्लभ पांडेय का साहित्यिक उपनाम-आलोक है। १५ फरवरी १९५८ को जिला अल्मोड़ा के ग्राम करगीना में आप जन्में हैं। वर्तमान में मकड़ी(अल्मोड़ा, उत्तराखंड) आपका बसेरा है। हिंदी एवं संस्कृत सहित सामान्य ज्ञान पंजाबी और उर्दू भाषा का भी रखने वाले डॉ.पांडेय की शिक्षा- स्नातकोत्तर(हिंदी एवं संस्कृत) तथा पीएचडी (संस्कृत)है। कार्यक्षेत्र-अध्यापन (सरकारी सेवा)है। सामाजिक गतिविधि में आप विभिन्न राष्ट्रीय एवं सामाजिक कार्यों में सक्रियता से बराबर सहयोग करते हैं। लेखन विधा-गीत, लेख,निबंध,उपन्यास,कहानी एवं कविता है। प्रकाशन में आपके नाम-पावन राखी,ज्योति निबंधमाला,सुमधुर गीत मंजरी,बाल गीत माधुरी,विनसर चालीसा,अंत्याक्षरी दिग्दर्शन और अभिनव चिंतन सहित बांग्ला व शक संवत् का संयुक्त कैलेंडर है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में बहुत से लेख और निबंध सहित आपकी विविध रचनाएं प्रकाशित हैं,तो आकाशवाणी अल्मोड़ा से भी विभिन्न व्याख्यान एवं काव्य पाठ प्रसारित हैं। शिक्षा के क्षेत्र में विभिन्न पुरस्कार व सम्मान,दक्षता पुरस्कार,राधाकृष्णन पुरस्कार,राज्य उत्कृष्ट शिक्षक पुरस्कार और प्रतिभा सम्मान आपने हासिल किया है। ब्लॉग पर भी अपनी बात लिखते हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-हिंदी साहित्य के क्षेत्र में विभिन्न सम्मान एवं प्रशस्ति-पत्र है। ‘आलोक’ की लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा विकास एवं सामाजिक व्यवस्थाओं पर समीक्षात्मक अभिव्यक्ति करना है। पसंदीदा हिंदी लेखक-सुमित्रानंदन पंत,महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’,कबीर दास आदि हैं। प्रेरणापुंज-माता-पिता,गुरुदेव एवं संपर्क में आए विभिन्न महापुरुष हैं। विशेषज्ञता-हिंदी लेखन, देशप्रेम के लयात्मक गीत है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का विकास ही हमारे देश का गौरव है,जो हिंदी भाषा के विकास से ही संभव है।”

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