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अतीत

डॉ. वंदना मिश्र ‘मोहिनी’
इन्दौर(मध्यप्रदेश)
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कितना कुछ बदल गया मेरे अंदर आज,मुझे वो छोटी-सी अल्हड़-सी राखी आज याद आ रही थी। अतीत जब दूर चला जाता है तो कहानी-सा नज़र आता है….ऐसा ही एक सच,जो अब सपना बन गया है,राखी के जीवन का। गाँव की वो कच्ची-पक्की पगडंडी जिसमें राखी नंगे पैर दौड़ा करती थी ,कभी किसी के पेड़ से अमरूद तोड़ना,फिर माँ की मार और डांट सिर झुकाकर सुनना मन ही मन यह सोचना कि,मदन के साथ वह कब तालाब पर जाएगी और खूब नहाएगी! मदन राखी के बचपन का मित्र,जिसे सब पागल कहते थे कि क्योकि वो शारीरिक रूप से थोड़ा अजीब-सी टेड़ी-मेड़ी आकृति का था। इसलिए कोई भी बच्चा उसके साथ नहीं खेलता,एक राखी ही थी जो उसके हरपल साथ रहती। सब उसका मजाक उड़ाते,पर राखी ठहरी अल्हड़,मस्त उसे कोई फर्क नहीं पड़ता। वो हमेशा उसकी ढाल बनकर खड़ी हो जाती थी।
दिन गुजर रहे थे,पता नहीं चला..कब राखी आठवीं में आ गई और मदन चौथी भी पास नहीं हो पाया। राखी को अब बाहर खेलने पर मनाही होने लगी कि,अब तुम बड़ी हो गई हो कोई जरूरत नहीं इधर-उधर भटकने की..घर बैठा करो चुपचाप,पर राखी कहाँ मानने वाली थीं। जब मौका मिलता,भाग जाती और घंटों मदन से बतियाती। उसकी पसन्द के मीठे अमरूद प्रेम से उसके लिए लाता और वह मदन से कहती-“तुम कितने अच्छे हो मेरे सबसे प्यारे दोस्त।” राखी की बात सुनकर कितना खुश था उस दिन मदन।
“सच,तुम हमेशा मेरी दोस्त रहोगी!”
इधर राखी अपनी फ्राक की जेब में अमरूद रखते हुए बोलती-“हाँ बाबा हमेशा,पर रोज अमरूद लाने होंगे मेरे लिए…..।” मदन हाँ में सिर हिला देता।
यह लड़की नहीं समझेगी,हमें इसे बाहर पढ़ने मुन्ना के पास भेज देना चाहिए। फिर क्या था राखी ने न जाने के लिए कोहरम मचा दिया, पर माँ भी कहाँ मानने वाली थीं। राखी अपने मुन्ना भैया के साथ आँखों में आँसू भरे मदन से दूर चली गई…।
मदन अब अकेला हो गया था,जैसे उसकी दुनिया खत्म हो गई हो। कुछ चेहरे कितने जिद्दी होते हैं न जो कभी हमारे अतीत से नहीं जाते..ऐसे ही था मदन के लिए राखी का चेहरा।
काल की वायु के साथ ही दिन और रात सूखे-हरे पत्ते की तरह उड़ गए। राखी अब बड़ी हो गई। इक्कीस वर्ष की पढ़ी-लिखी सुन्दर-सुडौल,छरहरी बदन की युवती,जो देखता उसे देखते रह जाता। इस दौरान वह एक बार गाँव गई पर,अब वो बदल गई थी..उसे अब गाँव अच्छा नहीं लगता था। जब …मदन उसके घर उससे मिलने आया तो बड़ी हिकारत की नजरों से राखी ने उसके टेढ़े कुरूप शरीर को देखा। उस दिन प्रेम से औपचारिक बात कर वह बस में बैठ गई और फिर कभी गाँव नहीं आईं,क्योंकि अब परिवार के सभी लोग गाँव से शहर चले गए थे। सिर्फ जमीन थी और गाँव का घर,जिसमें कभी-कभार माँ जाया करती थी सफाई के लिए।
राखी के दिल में मदन की यादें अब धूमिल पड़ गई थीं,या यूँ कहो कि पूरी तरह भूल चुकी थी।
राखी का विवाह अच्छे सम्पन्न घर में हो गया और वह अपनी गृहस्थी में मगन हो गई।
अचानक आज माँ से फोन पर बात करते-करते बोली-“माँ आप अपने गाँव कब से नही गई।”
“अरे! कल ही गई थी,वो जो हरिराम का बेटा था न मदन..अरे! वही तेरे बचपन का दोस्त जिसके साथ तू खेला करती थी…।”
“हाँ..हाँ..हाँ,क्या हुआ उसे,कैसा है वो! मैं तो भूल गई उसे।” राखी ने बड़े बेपरवाह अन्दाज में पूछा…।
“कल मर गया…सुनते हैं,पागल हो गया था बेचारा। पता है पूरे दिन आती-जाती बस के पीछे भागता-फिरता था। आ गया होगा कल किसी गाड़ी के नीचे, चलो,अच्छा हुआ उसके घर वालों को भी मुक्ति मिली ऐसे पागल से….।” माँ बोले जा रही थी।
“तू चुप क्यों हो गई? सुन रही है न ?
‘हाँ माँ।’ राखी को जैसे मन पर कोई गहरी चोट लगी हो..उसने फोन नीचे रख दिया। आज एक खालीपन,जो उसके हृदय में गांठ बनकर चुभ रहा था।
उसके हाथ में रखे पके हुए ताजे अमरूद उसे मुँह चिढ़ा रहे थे..उसे लगा कितना खुदगर्ज हो गयी थी मैं एकदम निष्ठुर…।

परिचय-डॉ. वंदना मिश्र का वर्तमान और स्थाई निवास मध्यप्रदेश के साहित्यिक जिले इन्दौर में है। उपनाम ‘मोहिनी’ से लेखन में सक्रिय डॉ. मिश्र की जन्म तारीख ४ अक्टूबर १९७२ और जन्म स्थान-भोपाल है। हिंदी का भाषा ज्ञान रखने वाली डॉ. मिश्र ने एम.ए. (हिन्दी),एम.फिल.(हिन्दी)व एम.एड.सहित पी-एच.डी. की शिक्षा ली है। आपका कार्य क्षेत्र-शिक्षण(नौकरी)है। लेखन विधा-कविता, लघुकथा और लेख है। आपकी रचनाओं का प्रकाशन कुछ पत्रिकाओं ओर समाचार पत्र में हुआ है। इनको ‘श्रेष्ठ शिक्षक’ सम्मान मिला है। आप ब्लॉग पर भी लिखती हैं। लेखनी का उद्देश्य-समाज की वर्तमान पृष्ठभूमि पर लिखना और समझना है। अम्रता प्रीतम को पसंदीदा हिन्दी लेखक मानने वाली ‘मोहिनी’ के प्रेरणापुंज-कृष्ण हैं। आपकी विशेषज्ञता-दूसरों को मदद करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिन्दी की पताका पूरे विश्व में लहराए।” डॉ. मिश्र का जीवन लक्ष्य-अच्छी पुस्तकें लिखना है।

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