कुल पृष्ठ दर्शन : 150

प्रधानमंत्री का भाषण:सराहनीय,साथ लेकर चलना प्रशंसनीय

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
**********************************************************************
‘कोरोना’ पर प्रधानमंत्री के संदेश से जो लोग यह आस लगाए बैठे थे कि वे तालाबंदी में ढील की घोषणा करेंगे,उन्हें निराशा जरुर हुई होगी लेकिन उन्हें संतोष भी हुआ होगा कि उन्होंने २० अप्रैल से उसके शुरु होने का संकेत दिया है। कहां-कितनी ढील दी जाएगी,यह उन्होंने स्थानीय प्रशासनों पर छोड़ दिया है। उन्होंने यह भी ठीक ही कहा है कि जैसे ही कहीं ढील के नतीजे उल्टे दिखे,वे सख्ती करेंगे। उम्मीद है कि २० अप्रैल तक कोरोना का प्रकोप घटेगा तो ढील बढ़ेगी,जिसका फायदा लोगों को रोजमर्रा के जीवन में तो मिलेगा ही,अर्थ-व्यवस्था भी पटरी पर लौटने लगेगी। यह अच्छा हुआ कि उन्होंने ढील की घोषणा आज से ही नहीं कर दी,अगर कर देते तो भगदड़ मच जाती। पता नहीं,देश में क्या होता! तालाबंदी की हड़बड़ी से उन्होंने यह सबक सीखकर खुद का और देश का भला किया। ३ मई भी शायद उन्होंने इसीलिए चुना है कि २ और ३ तारीख को शनिवार और रविवार है। कोई आश्चर्य नहीं कि तालाबंदी को जल्दी ही इतना ढीला कर दिया जाए कि स्थिति सामान्य-सी लगने लगे,लेकिन यह तभी होगा जबकि तालाबंदी का प्रकोप जमाते-तबलीग के पहले-जैसा हो जाए। प्रधानमंत्री,भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने जमात की धींगामुश्ती को ज्यादा तूल नहीं दिया,यह उनकी परिपक्वता और राष्ट्रीय जिम्मेदारी का प्रमाण है। कोरोना का एक जबर्दस्त फायदा यह भी हुआ है कि नरेंद्र मोदी में एक कार्यकर्ता की विनम्रता लौट आई है। उन्होंने लोगों को हुए कष्टों के लिए जिन शब्दों में खेद जताया है और उन्हें ७ सत्कर्म करने के लिए प्रेरित किया है,वह उन्हें राजनेता के पद से ऊंचा उठाकर राष्ट्रनेता बनाता है। उन्होंने भाषण में विरोधी दलों की हमेशा की तरह टांग नहीं खींची,यह भी सिद्ध करता है कि वे सबको साथ लेकर चलना चाहते हैं। इस बीच उन्होंने सर्वदलीय बैठक बुलाई,सभी मुख्यमंत्रियों से बात की और सब निर्णय सर्वसम्मति से ले रहे हैं,यह सराहनीय है। कोरोना-विरोधी अभियान में जो सरकारी देरी हुई,उस पर उन्होंने जो लीपा-पोती की,उससे सहमत होना कठिन है,लेकिन उन्होंने केंद्र और राज्य सरकार को अब कोरोना के विरुद्ध एकजुट किया है,वह अन्य पड़ौसी राष्ट्रों के लिए भी प्रेरक है। खुशी है कि नरेन्द्र मोदी ने आयुष मंत्रालय के घरेलू नुस्खों का जिक्र भी किया। इन पर उन्होंने जोर क्यों नहीं दिया ? कोरोना संबंधी अंग्रेजी शब्दों के हिंदी पर्याय मैं कई बार बता चुका हूं लेकिन फिर भी श्री मोदी नौकरशाहों की नकल पर डटे हुए हैं।

परिचय–डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

Leave a Reply