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भारतीय गणतंत्र में जनता की भागीदारी

शशांक मिश्र ‘भारती’
शाहजहांपुर(उत्तरप्रदेश)

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गणतंत्र दिवस स्पर्धा विशेष………

भारतीय संघ की विविधता में एकता सांस्कृतिक चेतना का प्रतीक `गणतंत्र दिवस` का महत्वपूर्ण पर्व दस्तक दे चुका हैl दिल्ली के राजपथ पर झांकियों के रूप में हम सब भारत के आगत-अनागत को देखते हैंl दुनिया दांतों तले उंगली दबा लेती है,दुश्मन सहम जाते हैंl हर साल गणतंत्र दिवस पर सम्पूर्ण देश यह नारा लगाता है `अमर रहे गणतंत्र हमारा` लेकिन कैसे ? बड़ा महत्वपूर्ण प्रश्न है। भारत का इतिहास गणतंत्र के मामले में बहुत पुराना है। बालि,जरासन्घ,कंस,दुर्योधन,नन्द जैसे राजा गणतंत्र को कमजोर या समाप्त करने के प्रयास करते रहे,पर जनसमर्थन योग्य राजनीतिज्ञों-कूटनीतिज्ञों ने सबके प्रयास असफल कर लोकतंत्र तो बचाया ही,राष्ट्र और समाज का अहित भी कम से कम होने दिया।

वर्तमान विश्व में अनेक गणतंत्र हैं,सबकी अपनी-अपनी व्यवस्था-शासन प्रणालियां हैंl जहां-जहां सत्ता व सत्ता में बैठे लोग कमजोर हुए,जनता ने गलत निर्णय किया,वहां या उन देशों में गणतंत्र की कई बार हत्या हुईl सरकारें और सरकार में बैठे लोग अपदस्थ हुए अथवा किए गए,पर हमारे भारत देश में ऐसा संकट न पहले कभी था,न अब है और न आगे कभी होगा। यह हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों परम्पराओं की परिवक्वता का परिचायक तो है ही,साथ ही हमारे संविधान व उसमें निहित तत्वों की विशिष्टता भी। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के बाद भी हमारी शासन प्रणाली के अंगों की परिपक्वता इसको कमजोर नहीं होने देती। सारे अंग चाहें कार्यपालिका हो, विधायिका या न्यायपालिका,सब आपस में जुड़ें हैं और मिलकर कभी-कभी एक-दूसरे पर दृष्टि रख इसको कमजोर नहीं होने देतेl इनका संतुलन हमारे देश की,गणतंत्र की सबसे बड़ी ताकत है,जो हमको दुनिया के अन्य गणतंत्रों से अलग करती है। पानी के बुलबुलों की भांति लगने वाले झटके इसको कमजोर नहीं कर पाते।

हमारे गणतंत्र में संविधान हमें अधिकार ही नहीं देता,अपितु कर्तव्य की ओर भी उन्मुख करता है। हमारा जीवन दो तरह से है एक अपने-अपनों के लिए और दूसरा देश के लिए। देश के लिए जो हमारा जीवन है,उसको जीने का तरीका और उसमें गम्भीरता-निष्ठा ही गणतंत्र की मजबूती का आधार है। कई बार हमारे देश में कई क्षेत्रीय मुद्दों पर या अन्य कई अवसरों पर कुछ क्षेत्रीय राष्ट्रीय दलों ने संघ से अलग राय रख कमजोर करने का प्रयास किया है। ऐसा दिखाने का प्रयास किया है कि हमें केन्द्र की सरकार या उसकी सहायता की आवश्यकता नहीं। कई मामलों में केन्द्र से अलग राय रख दी,पर राष्ट्रीय स्तर पर जनसमर्थन न मिलने,जनता द्वारा बार-बार नकार दिए जाने से ऐसे तत्वों को कमजोर होना पड़ा,अन्यथा क्षेत्रवाद,भाषावाद,वर्गवाद और क्षेत्रीय मुद्दों पर अलग दृष्टिकोण बहुत नुकसान कर देता।

वास्तव में गणतंत्र में संविधान एक बीज की तरह है,जिसको पल्लवित-पुष्पित और फलित करने का काम जनता का है जिसको भारतीय जनमानस ने समय-समय पर भली-भांति किया हैl कई बार देश की राजनीति व उसमें घुस रही क्षुद्रता को सबक भी सिखा दिया। उसको अपनी ताकत का अनुभव करवा दिया। सांप-सीढ़ी के खेल की भांति ऐसे तत्वों का राजनीतिक फलक पर ऊपर-नीचे करती रही। `सावधान हो,सुधर जाओ` का संकेत भी दिया। हालांकि,नब्बे के दशक के बाद तेजी से गिरते राजनीतिक स्तर को न रोका जा सका।कई दल केवल सत्तासुख के लिए अपने को,अपनी नीति और नियत को बदलते रहे। कई बार ऐसा आभास हुआ कि,कुछ जनमानस की अपेक्षाओं,देश के प्रति कम दुश्मन देशों के हाथों अधिक खेल रहे हैं,जिस पर देश में आक्रोश विशेषकर युवाओं में देखा गया। इससे कई बड़े आन्दोलन भी खड़े हुए,तथा आम जनता तेजी से उनसे जुड़ी भी।

इसीलिए `अमर रहे भारतीय गणतंत्र` के सन्दर्भ में मेरा मानना है कि,चूंकि जनता जनप्रतिनिधि चुनती है,इसलिए उसकी सहभागिता,जागरूकता व मतदान में शतप्रतिशत भागीदारी देश-समाज हित अपने निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर सहयोग-असहयोग का प्रदर्शन सबसे महत्वपूर्ण है। जब देश में हो रहे चुनावों में जनप्रतिनिधियों के साथ-साथ जनता द्वारा भी जाति-वर्ग और क्षेत्र के आधार मतदान किया जाता है,या राजनीति होती है तो कष्ट होता है। यह प्रश्न उठता है कि हमारे पढ़े-लिखे इक्कीसवीं सदी में होने से क्या लाभ ? जब हम निर्णय सामन्तवाद जाति आधारित व्यवस्था से ले रहे हों। अतः,जनता के जागरूक होने के साथ-साथ देश के विविध जनसंचार माध्यमों को अपनी भूमिका निष्पक्षता-निडरता के साथ निभानी चाहिए,जो केवल निभायी नहीं जाए,अपितु जनता को दिखे भी। तभी उद्देश्य सार्थक होगा,अन्यथा `अपनी ढपली-अपना राग` से कुछ अधिक न होगा,जैसा आजकल कुछ माध्यम करते हैं और उन पर इसका ठप्पा भी लगता रहता है।

यही कहना चाहूंगा कि,जनता के साथ-साथ जनसंचार माध्यमों-सोशल मीडिया का बड़ा दायित्व है कि सजगता से अपना दायित्व निभाएं,तभी सत्ता व सत्ता में बैठे लोग सावधान रहेंगेl गणतंत्र शासन व्यवस्था का लाभ गांधी जी के सपने के अनुसार आखिरी व्यक्ति तक पहुंचेगा और हमारा गणतंत्र अधिकाधिक मजबूत जीवन्त और अमर होगा।

परिचय–शशांक मिश्र का साहित्यिक उपनाम-भारती हैl २६ जून १९७३ में मुरछा(शाहजहांपुर,उप्र)में जन्में हैंl वर्तमान तथा स्थाई पता शाहजहांपुर ही हैl उत्तरप्रदेश निवासी श्री मिश्र का कार्यक्षेत्र-प्रवक्ता(विद्यालय टनकपुर-उत्तराखण्ड)का हैl सामाजिक गतिविधि के लिए हिन्दी भाषा के प्रोत्साहन हेतु आप हर साल छात्र-छात्राओं का सम्मान करते हैं तो अनेक पुस्तकालयों को निःशुल्क पुस्तक वतर्न करने के साथ ही अनेक प्रतियोगिताएं भी कराते हैंl इनकी लेखन विधा-निबन्ध,लेख कविता,ग़ज़ल,बालगीत और क्षणिकायेंआदि है। भाषा ज्ञान-हिन्दी,संस्कृत एवं अंगेजी का रखते हैंl प्रकाशन में अनेक रचनाएं आपके खाते में हैं तो बाल साहित्यांक सहित कविता संकलन,पत्रिका आदि क सम्पादन भी किया है। जून १९९१ से अब तक अनवरत दैनिक-साप्ताहिक-मासिक पत्र-पत्रिकाओं में रचना छप रही हैं। अनुवाद व प्रकाशन में उड़िया व कन्नड़ में उड़िया में २ पुस्तक है। देश-विदेश की करीब ७५ संस्था-संगठनों से आप सम्मानित किए जा चुके हैं। आपके लेखन का उद्देश्य- समाज व देश की दशा पर चिन्तन कर उसको सही दिशा देना है। प्रेरणा पुंज- नन्हें-मुन्ने बच्चे व समाज और देश की क्षुभित प्रक्रियाएं हैं। इनकी रुचि- पर्यावरण व बालकों में सृजन प्रतिभा का विकास करने में है।

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