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राजघाट चुपचाप

प्रियंका सौरभ
हिसार(हरियाणा)

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पंचायत लगने लगी,राजनीति का मंच।
बैठे हैं कुछ मसखरे,बनकर अब सरपंच॥

घोटालों के घाट पर,नेता करे किलोल।
लिए तिरंगा हाथ में,कुर्सी की जय बोल॥

अभिजातों के हो जहाँ,लिखे सभी अध्याय।
बोलो सौऱभ है कहाँ,वह सामाजिक न्याय॥

गली-गली में मौत है,सड़क-सड़क बेहाल।
डर-डर के हम जी रहे,देख देश का हाल॥

भ्रष्टाचारी कर रहे,रोज नए अब जाप।
आँखों में आँसू भरे,राजघाट चुपचाप॥

बच पाए कैसे भला,अपना हिन्दुस्तान।
बेच रहे है खेत को,आये रोज किसान॥

ये कैसा षड्यंत्र है,ये कैसा है खेल।
बहती नदियां सोखने,करें किनारे मेल॥

शायद जुगनू की लगी,है सूरज से होड़।
तभी रात है कर रही,रोज नये गठजोड़॥

कहाँ बचे भगवान से,पंचायत के पंच।
झूठा निर्णय दे रहें,सौरभ अब सरपंच॥

जिनकी पहली सोच ही,लूट,नफ़ा श्रीमान।
पाओगे क्या सोचिये,चुनकर उसे प्रधान॥

बनकर नेता गिन रहा,सौरभ किसके नोट।
अक्सर ये है पूछता ?,मुझसे मेरा वोट॥

बिकते कैसे आदमी,आलू-गाजर भाव।
देखना है देख तू,लड़कर एक चुनाव॥

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