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बुजुर्ग हमारे वजूद,बोझ नहीं

डॉ.सत्यवान सौरभ
हिसार (हरियाणा)
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हमारे देश में बुजुर्ग तेजी से बढ़ते जा रहे हैं,लेकिन उनके लिए उपलब्ध संसाधन कम होते जा रहे हैं। ऐसे में हम सबकी जिम्मेवारी बनती है कि उन्हें एक तरफ रखने के बजाय उनकी शारीरिक और मानसिक देखभाल करने के लिए समुदायों के जीवन में एकीकृत किया जाना चाहिए,जहां वे सामाजिक परिस्थितियों को सुधारने में पर्याप्त योगदान दे सकते हैं। बुजुर्गों की ‘समस्या’ को ‘समाधान’ में बदलने का प्रयास करना बेहद जरूरी है।
कोरोना काल में देश में बुजुर्ग जनसंख्या और स्वास्थ्य चुनौतियां उभर कर सामने आई हैl भारत में उम्रदराज हो रही आबादी के स्वास्थ्य,आर्थिक तथा सामाजिक निर्धारकों और परिणामों की वैज्ञानिक जांच का देश में सबसे बड़ा व्यापक राष्ट्रीय सर्वे किया गया है। यह भारत का पहला तथा विश्व का अब तक का सबसे बड़ा सर्वे है जो सामाजिक,स्वास्थ्य तथा आर्थिक खुशहाली के पैमानों पर वृद्ध आबादी के लिए नीतियां और कार्यक्रम बनाने के उद्देश्य से आँकड़े देता है। इसमें देश तथा राज्यों का विभिन्न राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों में तालमेल होगा।
विकसित होते भारत में भविष्य में जनसंख्या स्वस्थ होगी और अधिक समय तक जीवित रहेगी। अनुसंधान इंगित करता है कि भारत की १२फीसदी आबादी २०३० तक ६० वर्ष की आयु और संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या निधि के अनुसार होगी,यह २०५० तक १९.४ फीसदी होने की उम्मीद है। ६० से अधिक आयु वर्ग के पुरुषों की तुलना में अधिक महिलाएं होने जा रही हैं। लंबी उम्र बढ़ने से ८० वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की संख्या में वृद्धि हुई है, जो लगभग १.१ करोड़ लोगों के लिए जिम्मेदार है। १०० वर्ष से अधिक आयु के लगभग ६ लाख लोगों के साथ भारत में २०५० तक सबसे अधिक संख्या में लोग होंगे। ऐसे में उनके कल्याण के लिए कार्यक्रमों की आवश्यकता बढ़ जाती है।
जीवन प्रत्याशा में वृद्धि,परिवारों के केन्द्रीयकरण, उनके दिन-प्रतिदिन के रखरखाव और उम्र से संबंधित कठिनाइयों के लिए दूसरों पर निर्भरता, बुजुर्ग लोगों के जीवन के लिए एक कठिन चुनौती है। ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ ७० फीसदी बुजुर्ग रहते हैं, आर्थिक कारणों और चिकित्सा सेवाओं की खराब गुणवत्ता के कारण गंभीर स्थिति हैl विशेष रूप से ८० वर्ष से अधिक आयु वालों के लिए। वरिष्ठ नागरिकों के खिलाफ बढ़ते अपराधों के कारण बुजुर्ग लोगों की स्थिति दयनीय है।
भारत के वरिष्ठ नागरिकों का प्रतिशत हाल के वर्षों में बढ़ती दर से बढ़ रहा है तो बढ़ती आबादी की समस्या आज कई देशों के लिए चिंता का विषय है। अगले तीन दशकों में संख्या में तीन गुना वृद्धि की उम्मीद के साथ भारत को कई चुनौतियों का सामना करना होगा।
बदलते परिवेश में एकल परिवार बुजुर्गों को घर की दहलीज से दूर कर रहे हैंl बच्चों को दादी-नानी की कहानी की बजाय पबजी अच्छा लगने लगा है, बुजुर्ग अपने बच्चों से बातों को तरस गए हैं। वो घर के किसी कोने में अकेलेपन का शिकार हो रहे हैं। ऐसे में इनकी मानसिक-आर्थिक-सामाजिक समस्याएं बढ़ती जा रही है। महंगाई के आगे पेंशन कम होती जा रही है। इनकी देखभाल के साथ अलग से योजनाएं लाने की सख्त जरूरत है,ताकि हर घर में बुजुर्गों को आशीर्वाद के रूप में देखा जाए,बोझ नहीं।

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