राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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सामाजिक सम्बन्ध और दूरी स्पर्धा विशेष………..
एक कमरे में रहते हैं व्यक्ति चार,
चारों अलग फोन पर बतियाते हैं।
एक-दूजे से बात नहीं हो पाती उनकी,
अपनी दुनिया में व्यस्त वो हो जाते हैं।
फिर धीरे से उठ कर ‘गुड नाइट’ कहते हैं,
‘सुबह मिलेंगे’ कहकर हाथ हिला जाते हैं।
मैं सोचती हूँ…
धीरे-धीरे संबंधों में आई दूरी है,
ईश्वर ही जाने ये कैसी मजबूरी है ?
बच्चे शनि-रविवार का करते हैं इंतजार,
पापा! नया गेम दिलवाओ चलो बाजार।
बाकी के दिन सिर्फ ‘गुड मॉर्निंग’ हो जाती है,
‘गुड नाइट’ के इंतजार में बच्ची सो जाती है।
व्हाट्सएप पर हाय-बाय का चलन हो गया,
‘कैसी हो,दवाई ली’ संबंधों का निर्वाह हो गया।
कहना-सुनना बहुत है पर भाव कहां है ?
माँ का दिल सुनने को आतुर पर समय कहां है ?
कम्प्यूटर का युग है,मानव हुआ मशीनी,
मतलब की भाषा हुई,रिश्ते नहीं जमीनी।
परिचय–राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।